जीवन मंत्र । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से श्रीसूक्त पाठ विधि…….
धन की कामना के लिए दैनिक पूजन के साथ श्री सूक्त का पाठ अत्यन्त लाभकारी रहता है।
(श्रीसूक्त के इस प्रयोग को हृदय अथवा आज्ञा चक्र में करने से सर्वोत्तम लाभ होगा, अन्यथा सामान्य पूजा प्रकरण से ही संपन्न करें .)
प्राणायाम आचमन आदि कर आसन पूजन करें :- ॐ अस्य श्री आसन पूजन महामन्त्रस्य कूर्मो देवता मेरूपृष्ठ ऋषि पृथ्वी सुतलं छंद: आसन पूजने विनियोग: । विनियोग हेतु जल भूमि पर गिरा दें ।
अब सर्वप्रथम संकल्प करना है। जैसे हर एक अनुष्ठान में करते है। संकल्प करने के लिए सर्व प्रथम अपने दाए हाथ में जल पकडे श्री सूक्त का नित्य संकल्प
ॐ मम स कुटुम्बस्य स परिवारस्य नित्य कल्याण प्राप्ति अर्थं अलक्ष्मी विनाशपूर्वकं दरशविध लक्ष्मी प्राप्ति अर्थं श्री महालक्ष्मी प्रीत्यर्थं यथा शक्ति श्रीसूक्तस्य पाठे विनियोगः।
(जपे-होमे) हाथ में पकड़ा हुआ जल छोड़े।
अर्थ :
मेरे पुरे कुटुंब सहित समग्र परिवार का कल्याण हो तथा अलक्ष्मी का विनाश हो और देश प्रकार की लक्ष्मी की प्राप्ति के लिये महालक्ष्मी की प्रसन्नता के लिये यथा शक्ति पाठ करने का में संकल्प कर रहा हहु या कर रही हु।
अब पृथ्वी पर रोली से त्रिकोण का निर्माण कर इस मन्त्र से पंचोपचार पूजन करें – ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवी त्वं विष्णुनां धृता त्वां च धारय मां देवी पवित्रां कुरू च आसनं ।ॐ आधारशक्तये नम: । ॐ कूर्मासनायै नम: । ॐ पद्मासनायै नम: । ॐ सिद्धासनाय नम: । ॐ साध्य सिद्धसिद्धासनाय नम: ।
तदुपरांत गुरू गणपति गौरी पित्र व स्थान देवता आदि का स्मरण व पंचोपचार पूजन कर श्री चक्र के सम्मुख पुरुष सूक्त का एक बार पाठ करें ।
निम्न मन्त्रों से करन्यास करें :-
1 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ऐं क ए ई ल ह्रीं अंगुष्ठाभ्याम नमः ।
2 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं ह स क ह ल ह्रीं तर्जनीभ्यां स्वाहा ।
3 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं सौं स क ल ह्रीं मध्यमाभ्यां वष्ट ।
4 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ऐं क ए ई ल ह्रीं अनामिकाभ्यां हुम् ।
5 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं ह स क ह ल ह्रीं कनिष्ठिकाभ्यां वौषट ।
6 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं सौं स क ल ह्रीं करतल करपृष्ठाभ्यां फट् ।
निम्न मन्त्रों से षड़ांग न्यास करें :-
1 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ऐं क ए ई ल ह्रीं हृदयाय नमः ।
2 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं ह स क ह ल ह्रीं शिरसे स्वाहा ।
3 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं सौं स क ल ह्रीं शिखायै वष्ट ।
4 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ऐं क ए ई ल ह्रीं कवचायै हुम् ।
5 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं ह स क ह ल ह्रीं नेत्रत्रयाय वौषट ।
6 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं सौं स क ल ह्रीं अस्त्राय फट् ।
श्री पादुकां पूजयामि नमः बोलकर शंख के जल से अर्घ्य प्रदान करते रहें ।
श्री चक्र के बिन्दु चक्र में निम्न मन्त्रों से गुरू पूजन करें :-
1 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री गुरू पादुकां पूजयामि नमः ।
2 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री परम गुरू पादुकां पूजयामि नमः ।
3 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री परात्पर गुरू पादुकां पूजयामि नमः ।
श्री चक्र महात्रिपुरसुन्दरी का ध्यान करके योनि मुद्रा का प्रदर्शन करते हुए पुन: इस मन्त्र से तीन बार पूजन करें :- ॐ श्री ललिता महात्रिपुर सुन्दरी श्री विद्या राज राजेश्वरी श्री पादुकां पूजयामि नमः ।
अब श्रीसूक्त का विधिवत पाठ करें :-
ॐ हिरण्यवर्णा हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम् । चन्द्रां हिरण्यमयींलक्ष्मींजातवेदो मऽआवह ।।1।।
तांम आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् । यस्या हिरण्यं विन्देयंगामश्वं पुरुषानहम् ।।2।।
अश्वपूर्वां रथमध्यांहस्तिनादप्रबोधिनीम् । श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मा देवीजुषताम् ।।3।।
कांसोस्मितां हिरण्यप्राकारामाद्रां ज्वलन्तींतृप्तां तर्पयन्तीम् । पद्मेस्थितांपद्मवर्णा तामिहोपह्वयेश्रियम् ।।4।।
चन्द्रां प्रभासांयशसां ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवीजुष्टामुदाराम् । तांपद्मिनींमीं शरण प्रपद्येऽलक्ष्मीर्मे नश्यतांत्वां वृणे ।।5।।
आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः । तस्य फ़लानि तपसानुदन्तुमायान्तरा याश्चबाह्या अलक्ष्मीः ।।6।।
उपैतु मां देवसखःकीर्तिश्चमणिना सह । प्रादुर्भूतोसुराष्ट्रेऽस्मिन्कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ।। 7।।
क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मींनाशयाम्यहम् । अभूतिमसमृद्धिं च सर्वा निर्णुद मे गृहात् ।।8।।
गन्धद्वारांदुराधर्षां नित्यपुष्टांकरीषिणीम् । ईश्वरींसर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम् ।।9।।
मनसः काममाकूतिं वाचःसत्यमशीमहि । पशुनांरुपमन्नस्य मयिश्रीःश्रयतांयशः ।।10।।
कर्दमेन प्रजाभूता मयिसम्भवकर्दम । श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ।।11।।
आपःसृजन्तु स्निग्धानिचिक्लीतवस मे गृहे । नि च देवी मातरं श्रियं वासय मे कुले ।।12।।
आर्द्रा पुष्करिणीं पुष्टिं पिंगलां पद्मालिनीम् । चन्द्रां हिरण्मयींलक्ष्मी जातवेदो मेंआवह ।।13।।
आर्द्रा यःकरिणींयष्टिं सुवर्णा हेममालिनीम् । सूर्या हिरण्मयींलक्ष्मींजातवेदो म आवह ।।14।।
तां मऽआवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् । यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वन्विन्देयं पुरुषानहम् ।।15।।
यःशुचिः प्रयतोभूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम् । सूक्तमं पंचदशर्च श्रीकामःसततं जपेत् ।।16।।
पद्मानने पद्मविपद्मपत्रे पद्मप्रिये पद्मदलायताक्षी ।
विश्वप्रिये विष्णु मनोsनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि सं नि धत्स्व ।।17।।
पद्मानने पद्मऊरु पद्माक्षि पद्मसम्भवे ।
तन्मे भजसि पद्माक्षि येन सौख्यं लभाम्यहम ।।18।।
अश्वदायी गोदायी धनदायी महाधने ।
धनं मे जुषतां देवि सर्वकामांश्च देहि मे ।।19।।
पुत्रपौत्रधनं धान्यं हस्त्यश्वाश्वतरी रथम ।
प्रजानां भवसि माता आयुष्मन्तं करोतु मे ।।20।।
धनमग्निर्धनं वायुर्धनं सूर्यो धनं वसु: ।
धनमिन्द्रो बृहस्पतिर्वरुणो धनमश्विना ।।21।।
वैनतेय सोमं पिब सोमं पिबतु वृत्रहा ।
सोमं धनस्य सोमिनो मह्यं ददातु सोमिन: ।।22।।
न क्रोधो न च मात्सर्य न लोभो नाशुभा मति: ।
भवन्ति कृतपुण्यानां भक्त्या श्रीसूक्तजापिनाम ।।23।।
सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतरांशुक गन्धमाल्यशोभे ।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम ।।24।।
विष्णुपत्नीं क्षमां देवीं माधवीं माधवप्रियाम ।
लक्ष्मीं प्रियसखीं भूमिं नमाम्यच्युतवल्लभन ।।25।।
महालक्ष्मै च विद्महे विष्णुपत्न्यै च धीमहि ।
तन्नो लक्ष्मी: प्रचोदयात ।।26।।
आनन्द: कर्दम: श्रीदश्चिक्लीत इति विश्रुता: ।ऋषय: श्रिय: पुत्राश्च श्रीर्देवीर्देवता मता: ।।27।।
ऋणरोगादिदारिद्रयपापक्षुदपमृत्यव: ।
भयशोकमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा ।।28।।
श्रीर्वर्चस्वमायुष्यमारोग्यमाविधाच्छोभमानं महीयते ।धनं धानं पशुं बहुपुत्रलाभं शतसंवत्सरं दीर्घमायु: ।।29।।
इसके बाद माँ को प्रणाम कर आसन के आगे जल छोड़कर माथे पर लगाये और खड़े हो कर मां की आरती करें।