उद्धव ठाकरे आज महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेंगे। एक पेशेवर फोटोग्राफर से लेकर महाराष्ट्र की सत्ता का सिरमौर बनने तक की उद्धव की कहानी उस फिल्म की तरह है जिसमें हर पल एक नया ट्विस्ट आता रहा।
नई दिल्ली:।
उद्धव ठाकरे आज महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेंगे। एक पेशेवर फोटोग्राफर से लेकर महाराष्ट्र की सत्ता का सिरमौर बनने तक की उद्धव की कहानी उस फिल्म की तरह है जिसमें हर पल एक नया ट्विस्ट आता रहा। उद्धव ने राजनीति का ककहरा पिता बाल ठाकरे से सीखा, संपादकीय लिखा, समाजसेवा की, राजनीतिक कार्यकर्ता बने, फिर पार्टी प्रमुख बने और अब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने। एक शख्सियत में कई किरदारों को समेटकर जीने वाले का नाम है उद्धव ठाकरे। मुंबई के ऐतिहासिक शिवाजी पार्क में महाराष्ट्र के 29वें सीएम के तौर पर उनकी ताजपोशी के साथ ही आज इतिहास बदलेगा, इतिहास बनेगा और इतिहास टूटेगा।
उद्धव का राजनीति में आना कोई संयोग नहीं था। एक अकाट्य सत्य था। वो उस परिवार के चिराग हैं जो राजनीति करने में नहीं, राजनीति चलाने में यकीन करता था। उद्धव की जुबान आम आदमी की जबान है। सादगी से भरी और मीठी लेकिन खरी खरी बोली इसलिए हमेशा उद्धव में बाला साहेब का अक्स नजर आया।
मातोश्री से राजनीति की जो लकीर बाला साहेब ने खींची थी, उद्धव ने उस लकीर को थोड़ा मोडिफाई किया। नतीजा सत्ता को रिमोट से चलाने वाला परिवार आज खुद सत्ता की ड्राइविंग सीट पर बैठने वाला परिवार बनने जा रहा है इसलिए आज का दिन शिवसेना और शिवसैनिकों के लिए बेहद अहम है।
किसी को राजनीति अगर आसानी से मिल जाए तो इसका मतलब ये भी नहीं होता कि उसने कोई त्याग या जतन किया ही नहीं। उद्धव ठाकरे को नहीं जानने वाले लोग अक्सर उनके योगदान को नकार देते हैं।
उद्धव ठाकरे ने दशकों तक किसानों की लड़ाई लड़ी, फोटोग्राफी प्रदर्शनियों के जरिए किसान के लिए फंड जुटाया, आम आदमी के हक के लिए आवाज उठाई, वर्षों तक समाजसेवा करते रहे। उद्धव ने महाराष्ट्र की सड़कों के गड्ढों को भरने का रिकॉर्ड बनाया। वो शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ के प्रधान संपादक रहे और 2002 में बीएमसी में शिवसेना की जीत के सूत्रधार रहे।
शिवसेना प्रमुख बनने से लेकर महाराष्ट्र सूबे का प्रमुख बनने तक उद्धव के सियासी मौके चलकर आए और कला से ग्रेजुएट करने वाले उद्धव ने हर मौके पर खुद को कलाकार साबित किया। 1993 में ही उद्धव ठाकरे शिवसेना के कार्यकारी अध्यक्ष बने और 2004 में बाल ठाकरे ने पूरी तरह से उद्धव को कमान सौंप दी।
2006 में नाराज राज ठाकरे ने अलग पार्टी बनाकर लाखों समर्थक अपने साथ ले गए। 2012 में बाल ठाकरे के निधन के बाद बिखरती शिवसेना को संभालने की जिम्मेदारी उनपर आ गई। उद्धव के सामने बड़ी चुनौती थी। पिता का साया छूट गया था तो भाई राज ठाकरे भी अलग होकर समर्थकों में सेंध लगा रहा था।
शिवसेना का ग्राफ ढलान पर था लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी झटकों से उबरी ही थी कि कुछ ही महीने बाद विधानसभा चुनाव में बीजेपी के साथ 25 साल पुराना गठबंधन टूट गया लेकिन उद्धव ने कार्यकर्ताओं को पार्टी से जोड़े रखा। चुनाव के बाद फिर से बीजेपी शिवसेना मिले और महाराष्ट्र में एनडीए की सरकार बनी।