हिंदू मुस्लिम एकता की अनोखी मिसाल है लखनऊ का यह ताजिया

लखनऊ 20 अक्टूबर। आज कानपुर रोड, एलडीए कॉलोनी, पराग डेयरी, गोल मार्केट, DD1/694 से एक ऐसा ताजिया निकला जो मानवता, हिंदू- मुस्लिम भाईचारा की अनोखी मिसाल था। मीरा सैयद हुसैन व हसन हुसैन के इस ताजिए को संजय सोनकर उर्फ बाबा जी ने अपने उपरोक्त आवास से बड़ी धूमधाम से हुसैन के भक्तों के साथ निकाला था, जिन्होंने या अली और हसन हुसैन को कर्बला तक याद करते हुए बड़े ही एहतराम के साथ ले जाकर वहां ठंडा किया। भक्तों की इस भीड़ में पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं एवं बच्चों का उत्साह भी देखते बनता था। जिसे देखकर राह चलने वालों ने भी हसन हुसैन को याद करते हुए ताजिए को सज़दा किया।

इस ताजिए और इसके रखने वाले संजय सोनकर उर्फ बाबा जी की व इस स्थान की कहानी भी अपने आप में अद्भुत और हिंदू मुस्लिम भाईचारा की अनोखी मिसाल है।
ज्ञात हो कि उपरोक्त आवास संजय सोनकर उर्फ बाबा जी का निवास है, जहां उन्होंने मां काली और बाबा भैरव का मंदिर बना रखा है और उसी स्थान पर मीरा सैय्यद हुसैन की दरगाह भी स्थापित कर रखी है। ऐसे अनोखे स्थान लखनऊ तो क्या पूरे उत्तर प्रदेश में शायद ही कहीं देखने को मिले।
जहां मां काली, बाबा भैरव और बाबा मीरा सैय्यद हुसैन एक साथ विराजमान है।
*एक ऐसा स्थान है जहां ईश्वर और अल्लाह दोनों एक साथ पूजे जाते हैं
जहां आज एक तरफ लोग जाति, धर्म और मजहब के नाम पर लड़ते झगड़ते नजर आते हैं, वहीं दूसरी तरफ संजय सोनकर उर्फ बाबा जी का उक्त आवास गंगा जमुनी तहजीब का जीता जागता प्रमाण है। सबसे बड़ी आश्चर्य की बात यह है कि इस स्थान पर आने वाले सभी भक्तों के दिलों में ईश्वर और अल्लाह दोनों के प्रति समान भाव, भक्ति और प्रेम नजर आता है। यह स्थान लोगों की समस्याओं के समाधान के लिए भी मशहूर है। आने वाले लोगों की माने तो अब तक इस स्थान पर हजारों लोग जो 10-10/ 20-20 साल से अनेक तरह की भूत प्रेत एवं अन्य बाधाओं और बिमारियों से ग्रसित थे, उन्हें अपनी सभी समस्या व बिमारियों से मुक्ति मिल चुकी है।
इस स्थान पर आने वाले पीड़ित व्यक्तियों ने बताया की बड़े बड़े डॉक्टरों के तरफ से निराश होने के बाद इस स्थान पर आने और पूजा पाठ और इबादत कर के उन्हें औलाद की प्राप्ति हुई है।और सबसे बड़ी बात यह है कि जिन जिन लोगों को औलाद मिली उन्हें केवल पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई है।
संजय सोनकर उर्फ बाबा जी का कहना है कि यह कार्य उनकी तीन पीढ़ियों से होता चला आ रहा है।
यह केवल सामाजिक सेवा भाव से किया गया कार्य हैं। यहां पर आने वाले भक्तों से किसी भी प्रकार का धन व दक्षिणा नहीं ली जाती है। न ही किसी प्रकार की बहुमूल्य वस्तु ली जाती है। साथ ही न कोई चढ़ावा चढ़ता है। आने वाले भक्तों को केवल धूप और अगरबत्ती ही लानी होती है।
नि:स्वार्थ भाव से इस स्थान पर हिंदू और मुस्लिम दोनों समान भाव से ईश्वर और अल्लाह दोनों की सेवा करते हैं और उनके आशीर्वाद से शुभ फल को प्राप्त करते है।
यह अपने में एक अलग तरीके से हिंदू मुस्लिम समाज को जोड़ने व धार्मिक एकता को बढ़ाने व सभी को एक सूत्र में बांधने का अथक प्रयास है।
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