अनुच्छेद 370 के खत्म करने के मोदी के निर्णय से आतंकियों में बोखलाहट

कृष्णमोहन झा/
जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को खत्म कर उसे केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा देने का मोदी सरकार का फैसला राज्य की आतंकवादी ताकतों को बिल्कुल रास नहीं आ रहा है। इन्हे राज्य में अमन चैन और विकास का नया युग प्रारंभ होने से अपनी दशकों पुराने दुकानदारी बंद होने का खतरा सता रहा है। इसलिए वे राज्य में सामान्य स्थिति बहाल करने की सरकारी कोशिशों को विफल करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। जम्मू कश्मीर में हालात सामान्य हो रहे हैं तो उनका डर बढ़ता जा रहा है। अनुच्छेद 370 के जरिए जम्मू कश्मीर को मिले हुए विशेष राज्य के दर्जे का नाजायज लाभ उठाकर ये आतंकवादी ताकतें और पाकिस्तान परस्त राजनीतिक दल वर्षों से क्षेत्र की जनता को बरगलाकर जिस तरह अपनी दुकानदारी चला रहे थे ,उसके पीछे छुपे मंसूबों को अब राज्य की जनता अच्छी तरह समझ चुकी है। यही बात है कि इन अलगाववादी ताकतों और उनका परोक्ष समर्थन करने वाले राजनीतिक दलों के नेताओं को भयभीत किए हुए है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के प्रति राज्य की जनता के बढ़ते हुए भरोसे ने राज्य में सामान्य स्थिति की बहाली में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। राज्य की जनता को शनै शनै यह बात समझ में आने लगी है कि जम्मू कश्मीर को अनुच्छेद 370 से मुक्त करने का मोदी सरकार का फैसला राज्य के हित में है। जनता यह हकीकत को खुले दिल से स्वीकार करने में लगी है कि राज्य में आतंकवाद को बढ़ावा मिलने की जड़ में यही अनुच्छेद 370 का प्रावधान था ,जो राज्य के विकास के मार्ग में अवरोध पैदा कर कर रहा था। इसमें कोई संदेह नहीं है कि जम्मू कश्मीर में और विशेषकर कश्मीर घाटी में रातों-रात सब कुछ सामान्य नहीं हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने भी माना कि कश्मीर में हालात बेहद संवेदनशील है, इसलिए इस समय वहां से पाबंदिया हटा लेने के बारे में तत्काल कोई आदेश नहीं दिए जा सकते है। सरकार को इसके लिए कुछ समय मिलना ही चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए जो टिप्पणी की है ,उससे सारी स्थिति को समझा जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जम्मू कश्मीर में स्थिति गंभीर है, उसका किसी को अंदाजा नहीं है। अगर हम पाबंदियां हटाते हैं और किसी की जान चली जाती है तो कौन जिम्मेदार होगा। सरकार धीरे-धीरे पाबंदी नियमों में ढील दे रही है, परंतु पाबंदियां हटते ही जिस तरह समाज विरोधी ताकतें स्थिति को बिगाड़ने में जुट जाती हैं, उसे देखते हुए सरकार को पुनः पाबंदियों में ढील देने के बारे में पुनर्विचार करने के लिए विवश होना पड़ता है। सुप्रीम कोर्ट में भी सरकार की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने जानकारी दी है कि एक वर्ग है, जो स्थिति को बिगाड़ने के लिए मौके का इंतजार कर रहा है। ऐसे सबूत है कि अलगांववादी आम लोगों को भड़का सकते हैं। वे सीमा पार से मिल रहे निर्देशों के पर ऐसा कर सकते है।

जम्मू कश्मीर को अनुच्छेद 370 के प्रावधान से मुक्त किए जाने के बाद पाकिस्तान द्वारा जिस तरह भड़काऊ बयान दिए जा रहे हैं और पुलवामा आतंकी हमले जैसे और हमले होने की धमकियां दी जा रही हैं, उन्हें देखते हुए सरकार ने वहां लागू पाबंदियों को चरणबद्ध तरीके से शनै शनै हटाने का जो फैसला किया है, वह एकदम सही प्रतीत होता है। सरकार रोजाना स्थिति की समीक्षा कर रही है और उसके बाद जिस नतीजे पर पहुँचती है ,उसी के अनुसार वह अगला कदम तय करती है। इसमें दो राय नहीं हो सकती कि अनुच्छेद 370 को खत्म करने के बाद सरकार की जिम्मेदारियां बड़ी है। सरकार अपनी इन जिम्मेदारियों को भली भांति समझती है और उन जिम्मेदारियों के निर्वहन में कोई कोताही बरतने का सवाल ही नहीं होता, परंतु अगर जम्मू कश्मीर और विशेषकर कश्मीर घाटी में हालातों को तेजी से सामान्य करना है तो उसमें स्थानीय लोगों के सहयोग की अत्यंत जरूरत है। स्थानीय जनता के सकारात्मक सहयोग से ही परिस्थितियां सामान्य होगी और रोजमर्रा की जिंदगी सामान्य गति से चलने लगेगी।

जम्मू कश्मीर में बकरीद के समय सरकार ने धारा 144 और कई अन्य प्रतिबंधों में ढील देकर शांति और सौहाद्र का वातावरण निर्मित करने की जो पहल की थी, उसके आशा जनक परिणाम सामने आए है। जम्मू कश्मीर के इलाकों में भी बकरा ईद का त्योहार उत्साह से मनाया गया। वहां तैनात सीआरपीएफ के जवानों ने लोगों से गले मिलकर उन्हें ईद की मुबारकबाद दी और उन्हें मिठाई खिलाई। लोगों ने ईद के अवसर पर बाजारों में जाकर खरीदारी की। लोगों की सुविधाओं के लिए 300 लैंडलाइन फोन सेवाएं भी उपलब्ध कराई गई, परंतु अलगाववादियों को भला यह कैसे पसंद आ सकता था कि राज्य में अमन चैन के दौर की बहाली हो। इसलिए माहौल को बिगाड़ने की गुपचुप कोशिश है भी की गई। राज्य में स्थिति को सामान्य होते देख गत शुक्रवार को प्रशासन ने पचास हजार लैंडलाइन के साथ ही 2 जी मोबाइल इंटरनेट सेवा प्रारंभ की थी ,परंतु इसके बाद अफवाहों का बाजार गर्म होने की स्थिति बिगड़ने की आशंका को देखते प्रशासन को जम्मू कश्मीर के जिलों में 2 दिन बाद रविवार को मोबाइल इंटरनेट सेवा बंद करने के लिए विवश होना पड़ा। इलाकों में प्रदर्शन और सुरक्षाबलों से टकराव की घटनाएं दर्ज की गई। फल स्वरुप प्रशासन को दी गई ढील को वापस लेना पड़ा।

यहां एक आश्चर्य की बात यह है कि इंटरनेट पर पाबंदी के बावजूद अलगाववादी नेता शैयद अली शाह गिलानी का मोबाइल इंटरनेट 8 दिनों तक चालू रहा। इन सब छुटपुट घटनाओं के बावजूद स्थिति में सुधार के आसार नजर आ रहे हैं। 15 दिन के अंतराल के बाद श्रीनगर में लाल चौक पर पुनः चहल-पहल दिखाई देने से इन उम्मीदों को बल मिला है कि कश्मीर घाटी में स्थिति में सुधार की गति तेज हो गई है। श्रीनगर के कुछ इलाकों में लाल चौक तक पहुंच मार्गों पर एहतियात के तौर पर जो कटीले तारों के अवरोधक लगाए गए थे, उन्हें हटा लिया गया है। कहा जाता है कि 2016 में स्थिति सामान्य होने में लगभग 6 माह लग थे और इस बार यदि 15 दिनों में ही हालात सामान्य होने लगे हैं तो इसका मतलब साफ है कि लोगों की दिलचस्पी अमन-चैन की बहाली में है। इस बीच श्रीनगर के 200 स्कूल खुल चुके हैं। यद्यपि इन स्कूलों में छात्रों की उपस्थिति काफी कम रही परंतु प्रशासन ने स्कूल खुलने के बाद कोई अप्रिय घटना नहीं होने से राहत की सांस ली है। इसे प्रशासन सकारात्मक संकेतों के रूप में देख रहा है और आशा कर रहा है कि स्कूलों में छात्रों की उपस्थिति भी जल्द ही सामान्य हो जाएगी।

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