कांग्रेस का मिला साथ, जंगल काटे हर हाथ

▪ रमन ने चार तो भूपेश सरकार ने
पांच खदानें दी अडानी को
▪ एक लाख पेड़ काटने का
ठेका अडानी को मिला

रायपुर। (रमेश कुमार रिपु”)छत्तीसगढ़ में एक नारा इन दिनों गूंज रहा है। जंगल काटो डरने की क्या बात है,कांग्रेस हमारे साथ है। बात सच भी है। विरोध करने वाले हाथ, यदि हाथ मिला लें तो फिर डर कैसा। कभी पीसीसीए अध्यक्ष रहे भूपेश बघेल छत्तीसगढ़ में अडानी को पिछले दरवाजे से कोयला खदानें देने के लिए मोदी सरकार ने एमडीओ का रास्ता निकाला था तो, ट्वीट कर विरोध किये थे। उन्होंने सूरजपुर व सरगुजा में हसदेव परसा केे कोल ब्लॉक के पर्यावरण मंजूरी का विरोध किया था। लेकिन आज भूपेश बघेल की सरकार अडानी की भक्त होती दिख रही है। डाॅ रमन सिंह ने पन्द्रह साल में चार खदानें अडानी को दिये और भूपेश बघेल की सरकार ने छह माह में पांच खदाने दी। दोनों सरकारें छत्तीसगढ़ को अडानीगढ़ बनाने के लिए दोषी हैं। यहां के लोग ऐसा कह सकते हैं। छत्तीसगढ़ में हसदेव अरण्य परसा कोल ब्लॉक के वन क्षेत्र में लगभग एक लाख पेड़ काटने का आर्डर अडानी को दिया गया।

▪दिखावे की राजनीति..
हैरानी की बात है कि सात जून को किरंदुल में 5000 से ज्यादा आदिवासी नेशनल मिनरल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन(एनएमडीसी) के दफ्तर के बाहर डेरा डाल कर बैलाडिला की पहाड़ियों पर हो रहे लौह,खनन का विरोध किया था। क्यों कि बैलाडीला की खदान और 25 हजार पेड़ काटने का ठेका गौतम अडानी को दिया गया था। आदिवासियों का तर्क था कि इस खनन से यहां नंदीराज पहाड़ी के अस्तित्व को खतरा है। जिसे गोंड, धुरवा, मुरिया और भतरा समेत दर्जनों आदिवासी समूह अपना देवता मानते हैं और उसकी पूजा करते हैं। भूपेश बघेल ने पूर्व सरकार पर आरोप लगाया कि उन्होंने गलत तरीके से 2014 में ग्राम सभा से फर्जी तरीके से प्रस्ताव पास कराया था। भूपेश सरकार ने आदिवासियों का दिल जीतने के लिए अडानी के ठेका को रद्द करने की बात कही। सच तो यह है कि दिखावे की राजनीति के पट खुल गए हैं।

▪आपत्ति नहीं की छग सरकार..
हसदेव अरण्य परसा कोल ब्लॉक का वन क्षेत्र सेंट्रल इंडिया का सबसे बड़ा ओर सबसे पुराना फॉरेस्ट क्षेत्रों में से एक है। यहां गोंड आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं। परसा कोल ब्लॉक में अडानी को ओपन कास्ट माइनिंग के लिए पर्यावरण विभाग से 12 जुलाई को मंजूरी मिली। इसे विभाग की वेबसाइट में देखा जा सकता है। ताज्जुब करने वाली बात यह है कि केन्द्रीय वन पर्यावरण एवं क्लाइमेट चेंज मंत्रालय की पर्यावरणीय प्रभाव आंकलन समिति की बैठक में भूपेश बघेल की सरकार ने कोई आपत्ति नहीं जताई।

▪जंगल खतरे में..
वन मंत्रालय ने 2100 एकड़ के परसा ओपनकास्ट माईन का फारेस्ट क्लीयरेंस 15 जनवरी 2019 को दिया। भूपेश बघेल सरकार की अनुमति का इंतजार किया जा रहा था, अब यह अनुमति भी उसे मिल गयी है। अडानी की कंपनी कुछ दूसरी कंपनियों के साथ मिल कर इन कोयला खदानों में (एमडीओ) माइन डेवलपर कम ऑपरेटर के तौर पर कोयला खनन का काम करेगी। जाहिर सी बात है कि हसदेव अरण्य के लगभग पौने दो लाख हेक्टेयर में फैले घने जंगलों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा।

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