डॉ अजय कृष्ण चतुर्वेदी
वाराणसी। एक जुनून कुछ हासिल करने का। एक जज्बा देश के लिए कुछ करने का। ऐसा ही है इन लड़कियों की कहानी। इनका एक ही सपना है, एक ही लक्ष्य, बस हमें तो देश के लिए ओलंपिक का मेडल जीतना है। इसकी खातिर ये दिन रात एक किए हैं। और कोई शौक नहीं, और कोई लत नहीं। बस और बस एक ही गोल। ये लड़कियां हैं कुश्ती की। ये सोते-जागते, खाते-पीते बस एक ही बात करती हैं, कैसे अपना सपना पूरा किया जाए। इसके लिए घंटों मैदान में रियाज मारती हैं। सुबह रियाज, शाम रियाज। बीच का समय पढाई का। इन्हें पूरा विश्वास है कि इनका सपना एक दिन पूरा होगा, ये एक दिन कामयाबी का झंडा गाड़ के रहेंगी।
अब इन लड़कियों को एक फिल्म ने और भी जजबाती बना दिया है। फिल्में कितनी प्रेरणादायक होती हैं उसका जीता जागता प्रमाण हैं बनारस की ये लड़कियां। इन्होंने एक फिल्म देखी दंगल और जुट गईं ओलंपिक की तैयारी में। इन लड़कियों का हौसला देख स्कूल प्रशासन ने भी इन्हें पूरा सहयोग दिया। कुश्ती का प्रशिक्षक रखा। अब ये लड़कियां रोजाना सुबह सुबह जब और लोग नींद में होते हैं ये जागती हैं और पहुंच जाती हैं खेल मैदान पर। रोजाना ढाई घंटे की प्रैक्टिस होती है। फिर क्लास और शाम को क्लास से छूटने के बाद फिर से मैदान पर। इनका जोश व जज्बा देख कर ही लगता है कि ये एक न एक दिन कामयाब जरूर होंगी।