उम्भा नरसंहार के बाद प्रशासन की नीद टूटी तो बन भूमि पर अबैध कब्जा धारक सोनभद्र के नामी गिरामी सूरमा आये प्रशासन के रडार पर

अनपरा सोनभद्र ।उम्भा नरसंहार के बाद प्रशासन की नीद टूटी तो सोनभद्र के नामी गिरामी सूरमा आये प्रशासन के रडार पर करोडों रुपयों की भूमि औने पौने दाम पर राजस्व अधिकारियो की मिली भगत से ली गयी अब फिर बन क्षेत्र के हवाले जा सकता है।लखनऊ। सोनभद्र के घोरावल के उम्भा गांव की घटना के बाद अब वहां एक लाख हेक्टेयर से ज्यादा वन भूमि अवैध रूप से कब्जाए जाने का मामला भी गरमा गया है। योगी सरकार ने पांच साल से शासन स्तर पर दबी तत्कालीन वन संरक्षक एके जैन की रिपोर्ट का परीक्षण करना शुरू कर दिया है।

सोनभद्र में हजारो हेक्टेयर से ज्यादा वन भूमि पर अवैध रूप से नेता, अफसर और दबंग काबिज हैं।

सोनभद्र में हजारो हेक्टेयर से ज्यादा वन भूमि पर अवैध रूप से नेता, अफसर और दबंग काबिज हैं। जिन अफसरों की यहां तैनाती हुई, उनमें से अधिकतर ने अपनी आने वाली कई पीढ़ियों के भरण-पोषण का इंतजाम कर दिया।
इसमें वन और राजस्व विभाग के कार्मिकों की मिलीभगत जगजाहिर है। पीढ़ियों से जमीन जोत रहे लोगों का शोषण भी किसी से छिपा नहीं है।

पूर्ब मुख्य वन संरक्षक एके जैन ने अबैध अतिक्रमण को लेकर शासन को रिपोर्ट दी थी। साथ ही मामले की सीबीआई जांच की सिफारिश भी की थी,

सोनभद्र में जमीन पर कब्जे को लेकर नरसंहार की बुनियाद कोई एक दिन में नहीं रखी गई। इस क्षेत्र को जानने वाले विशेषज्ञों का मानना है कि अगर समय रहते उचित कदम नहीं उठाए गए तो इस तरह की वारदातों को रोक पाना और भी मुश्किल होगा। हालांकि, इन हालात से वर्ष 2014 में ही तत्कालीन मुख्य वन संरक्षक (भू-अभिलेख एवं बंदोबस्त) एके जैन ने शासन व सरकार को अवगत करा दिया था।

जैन की रिपोर्ट के मुताबिक, सोनभद्र में जंगल की जमीन की लूट मची हुई है। अब तक हजारो हेक्टेयर से ज्यादा जमीन अवैध रूप से बाहर से आए ‘रसूखदारों’ या उनकी संस्थाओं के नाम की जा चुकी है। यह प्रदेश की कुल वन भूमि का छह प्रतिशत हिस्सा है। जैन ने पूरे मामले से सुप्रीम कोर्ट को अवगत कराने की सिफारिश भी की थी।

रिपोर्ट के अनुसार, सोनभद्र में 1987 से लेकर अब तक एक लाख हेक्टेयर भूमि को अवैध रूप से गैर वन भूमि घोषित कर दिया गया है, जबकि भारतीय वन अधिनियम-1927 की धारा-4 के तहत यह जमीन ‘वन भूमि’ घोषित की गई थी।

सुप्रीम कोर्ट की अनुमति के बिना इसे किसी व्यक्ति या प्रोजेक्ट के लिए नहीं दिया जा सकता। इतना ही नहीं, आहिस्ता-आहिस्ता अवैध कब्जेदारों को असंक्रमणीय से संक्रमणीय भूमिधर अधिकार यानी जमीन एक-दूसरे को बेचने के अधिकार भी लगातार दिए जा रहे हैं।

इसे वन संरक्षण अधिनियम-1980 का सरासर उल्लंघन बताते हुए बताया गया कि 2009 में राज्य सरकार की ओर से उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर की गई थी। इसमें कहा गया था कि सोनभद्र में गैर वन भूमि घोषित करने में वन बंदोबस्त अधिकारी (एफएसओ) ने खुद को प्राप्त अधिकारों का दुरुपयोग करके अनियमितता की।

लेकिन 19 सितंबर 2012 को तत्कालीन सचिव (वन) के मौखिक आदेश पर विभागीय वकील ने यह याचिका चुपचाप वापस ले ली। हालात का अंदाजा इससे लगा सकते हैं कि चार दशक पहले सोनभद्र के रेनूकूट इलाके में 1,75,896.490 हेक्टेयर भूमि को धारा-4 के तहत लाया गया था, लेकिन इसमें से मात्र 49,044.89 हेक्टेयर जमीन ही वन विभाग को पक्के तौर पर (धारा-20 के तहत) मिल सकी। यही हाल ओबरा व सोनभद्र वन प्रभाग और कैमूर वन्य जीव विहार क्षेत्र में है।

क्या है धारा-4 और धारा-20

भारतीय वन अधिनियम-1927 की धारा-4 के तहत सरकार किसी भूमि को वन भूमि में दर्ज करने की मंशा जाहिर करती है। इस पर आम लोगों से आपत्तियां भी मांगी जाती हैं। इन आपत्तियों की सुनवाई एसडीएम स्तर का अधिकारी करता है। सुनवाई की प्रक्रिया में उसे वन बंदोबस्त अधिकारी का दर्जा दिया जाता है।

इन आपत्तियों पर सुनवाई के बाद धारा-20 के तहत कार्यवाही होती है, जिसमें भूमि को अंतिम रूप से बतौर वन भूमि दर्ज कर लिया जाता है। आपत्तियां जायज होने पर वन बंदोबस्त अधिकारी को यह अधिकार होता है कि धारा-4 की जमीन को वादी के पक्ष में गैर वन भूमि घोषित कर दे।

जिन पर सरकारी जमीन बचाने की जिम्मेदारी, वही करवा रहे कब्जा
सोनभद्र में कानून की आड़ लेकर वन विभाग की जमीन कब्जाने का सिलसिला आज तक नहीं थमा है। इस गोरखधंधे में सरकारी कर्मचारियों, अफसरों और राजनेताओं से लेकर आम लोग तक शामिल हैं। जिन पर जंगल बचाने की जिम्मेदारी है, वे इस गैरकानूनी काम में और भी आगे हैं।

राजस्व व वन विभाग के सूत्रों के मुताबिक, रेनुकूट डिवीजन के गांव जोगेंद्रा में एक राजनेता वन विभाग की 250 बीघा जमीन पर काबिज हैं। उनके सामने सारे कानून बौने नजर आ रहे हैं।

इसी तरह सोनभद्र के गांव सिलहट में एक पूर्व विधायक ने 56 बीघा जमीन का बैनामा अपने भतीजों के नाम करा दिया। इस काम में सरकारी मुलाजिम भी पीछे नहीं हैं।

ओबरा वन प्रभाग के वर्दिया गांव में एक कानूनगो ने अपने पिता के नाम जमीन कराई और बाद में उसे बेच दिया। घोरावल रेंज के धोरिया गांव में ऐसे ही एक रसूखदार ने 18 बीघा जमीन 90 हजार रुपये में खरीदी दिखाई और इसकी आड़ में और भी जमीन कब्जा ली।

ओबरा डिवीजन के गांव वर्दिया में एक परिवार ने राजा बढ़हर का 26 मई 1952 का पट्टा दिखाकर 101 बीघा जमीन पर अपना दावा ठोक दिया। बताते हैं कि जिस तारीख का यह पट्टा है, उस दिन तक परिवार के दो सदस्य पैदा ही नहीं हुए थे, जबकि उनके नाम पट्टे में दर्ज हैं।

इतना ही नहीं, भारतीय वन अधिनियम-1927 की धारा-4 और धारा-20 में विज्ञापित जमीन को रसूखदारों के कहने पर चकबंदी में शामिल कर लिया जा रहा है, जबकि नियमानुसार ऐसा नहीं हो सकता।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नए कदम से भू-माफियाओं की नींद उड़ी हुई है

उम्भा नर संहार के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कड़े तेवर से भू-माफियाओं की नींद उड़ी हुई है।चिन्हित बन क्षेत्र भूमि पर हुये राजस्व अधिकारियों के मिली भगत से सर्वे सेटेलमेंट में अबैधनिक तरीके से धारा 4 की भूमि को अपने नाम कराने वाले एनजीओ व्यक्ति पर कड़ी कार्यवाही के भी निर्देश दिए जा चुके है।सोनभद्र के घोरावल के उम्भा गांव की घटना के बाद अब एक लाख हेक्टेयर से ज्यादा वन भूमि अवैध रूप से कब्जाए जाने का मामला भी गरमा गया है। योगी सरकार ने पांच साल से शासन स्तर पर दबी तत्कालीन वन संरक्षक एके जैन की रिपोर्ट का परीक्षण करना शुरू कर दिया है।

अबतक सोनभद्र आधा दर्जन एंटी भू-माफिया घोषित किये जा चुके है।दरअसल मुख्यमंत्री ने योजना भवन में एंटी भू-माफिया पोर्टल एवं खतौनी के ऑनलाइन नामांतरण के पोर्टल के लोकार्पण कई वर्ष पहले कर चुके है। सीएम ने बहुत पहले से सार्वजनिक भूमि को खाली कराने का अभियान और तेज किया जाए. इतना ही नहीं, जमीन खाली कराने में आने वाला खर्च भू-माफियाओं से ही वसूला जाए।उन्होंने कहा कि बीते 2017 में प्रदेश में ग्राम सभा राजकीय भूमि पर कब्जा करने वाले लगभग 1,53,808 अतिक्रमणकारियों करने वालों को पूर्ब चिह्नित किया गया है। बीते वर्षो में लगभग 1,035 भू-माफियाओं को चिह्नित करते हुए उनके खिलाफ गुंडा एक्ट व गैंगस्टर एक्ट के तहत कार्रवाई की गई है।गौर तलब है कि अभी हाल का आंकड़ा नही मिल पाया है नही तो कुछ और ही मिलता।

वन भूमि पर अवैध कब्जा करने वालों की अब खैर नहीं। लंबे अरसे बाद नींद से जागा वन महकमा

वन भूमि पर अवैध कब्जा करने वालों की अब खैर नहीं। लंबे अरसे बाद नींद से जागा वन महकमा वन भूमि को कब्जा मुक्त करने के लिये मिशन शुरू करने जा रहा है। पहले चरण में पूरे प्रदेश में सर्वे की अवैध रूप से कब्जा की गई वन भूमि को चिह्नित किया जाएगा।

भूमि का चिह्निकरण सटीक हो सके इसके लिये जीआईएस तकनीक का सहारा लिया जाएगा। दूसरे चरण में भूमि से कब्जे हटाये जाएंगे।बताते चले सूबे के सर्वाधिक आदिवासी जनसंख्या वाले जनपद सोनभद्र में ग्राम समाज की भूमि पर तो कब्जा है ही लेकिन सर्वाधिक अवैध कब्जा वन विभाग की जमीन पर है। यहां के

ओबरा व रेणुकूट वन प्रभाग को मिलाकर हजारो बीघा जमीन कब्जे में है।

सोनभद्र, ओबरा व रेणुकूट वन प्रभाग को मिलाकर हजारो बीघा जमीन कब्जे में है। यानि वन विभाग का अच्छा खासा रकबा विभाग के कब्जे से दूर है। ऐसे में चिन्हीकरण के बावजूद कब्जा हटाने में हो रही देरी को लेकर तमाम प्रकार के सवाल उठ रहे हैं।अब विषय बस्तु यह भी बनता है क्या इस बन क्षेत्र को सिकोड़ने में योगदान देने वाले अधिकारी नपेंगे क्या फिर आला अधिकारियों के ठंडे बस्ते में पड़ जायेगा।

सूत्रों की मानें तो राजस्व अधिकारी एवं कभी वन कर्मियों की मिलीभगत तो कभी समय पर पर्यवेक्षण, निरीक्षण न होने से वन क्षेत्रों में रहने वाले कुछ लोगों द्वारा अवैध कब्जा कर लिया गया। गतदिनों प्रदेश सरकार के निर्देश पर कब्जे की भूमि को चिन्हित किया गया। जब स्थान चिन्हीकरण शुरू हुआ तो अवैध कब्जा करने वालों में खलबली मच गई। हालांकि तमाम अवरोधों के बावजूद सोनभद्र, रेणुकूट, ओबरा वन डिवीजन ने अवैध कब्जे को चिन्हित कर रिपोर्ट शासन को भेजा। इसके बाद शुरू हुई कब्जा हटाने की कवायद। लेकिन पर्याप्त स्टाफ न होने, जगह जगह अवरोध से अतिक्रमण हटाने में व्यवधान आने लगा। हालांकि अभी तक छह सौ हेक्टेयर भूमि को ही अतिक्रमण मुक्त कराया जा सके शेष 3500 हेक्टेयर भूमि अभी भी अवैध कब्जे में है। इनमें सर्वाधिक कब्जा रेणुकूट क्षेत्र में है। यहां करीब 2000 हेक्टेयर भूमि पर अतिक्रमण है। इसे हटाने की दिशा में काम भी हो रहा है। वनभूमि को लेकर अक्सर होता है विवाद

जिले में वन भूमि पर कब्जा करने के लिए तथाकथित लोगों एवं नामचीन एनजीओ द्वारा किए जा रहे प्रयास और वन कर्मियों द्वारा उस पर रोक लगाने के दौरान कई बार खूनी संघर्ष भी हो चुका है। कभी लाठी-डंडे से तो कभी अन्य हथियारों से लैस अवैध कब्जा करने वाले वन व पुलिस टीम पर धावा भी बोलते हैं। ताजा मामला म्योरपुर ब्लॉक क्षेत्र के लिलासी का है। यहां वनभूमि को कब्जा कर रहे लोगों को हटाने गई पुलिस व वन विभाग की टीम पर हमला कर दिया गया था। क्या कहते हैं जिम्मेदार

वनभूमि पर हुए अतिक्रमण को हटाने को लेकर विभागीय अधिकारी बेहद सतर्क हैं। कहते हैं कि हमारे पास जितनी टीम है। मुख्य बन संरक्षक झा ने कहा कि जहां-जहां वनभूमि पर कब्जा है उसे चिन्हित कर हटाने की दिशा में काम किए जा रहा है। प्रभाग क्षेत्र के करीब छह सौ हेक्टेएयर वनभूमि को अवैध कब्जे से मुक्त कराया जा चुका है, आगे भी कराया जाएगा।लखनऊ

अनपरा में भी बन क्षेत्र में अतिक्रमणकारियो की खैर नही

उर्जान्चल के अनपरा परिक्षेत्र भी अतिक्रमण से अछूता न रहा यह भी रसूखदार नेता राजस्व एवं बन विभाग के मिली भगत से सैकड़ो एकड़ धारा चार की भूमि को सर्वे सेटेलमेंट में अपने नाम कराने वाले जांच में आएंगे।वह दिन दूर नही जब बन विभाग कई सूरमाओ पर गाज गिरा सकती है।

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