शहीद के गांव भैरोपुर को शहीद गांव का दर्जा नहीं मिला, जिसके लेकर गांव के लोगों में मलाल है।
गाजीपुर।1999 में हुए भारत-पकिस्तान के बीच कारगिल युद्ध में भारत के तकरीबन 527 जवान शहीद हो गए थे और 1363 जवान घायल हुए थे। 527 शहीद जवानों में से 6 जवान यूपी के गाजीपुर के थे। शेषनाथ यादव, संजय सिंह यादव, कमलेश सिंह, जय प्रकाश यादव, रामदुलार यादव और इश्तियाक गाजीपुर जिले के रहने वाले थे। कारगिल विजय दिवस के मौके पर हमारी टीम ने शहीद के परिवारों का हाल जानने का प्रयास किया।
कारगिल शहीद कमलेश सिंह के पिता कैप्टन अजनाथ सिंह से की फोन से बातचीत हुई। बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि शहीद कमलेश सिंह की शहादत पर क्षेत्र के लोगों को गर्व है। तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के घोषणा के बाद भी आज तक शहीद के गांव भैरोपुर को शहीद गांव का दर्जा नहीं मिला, जिसके लेकर गांव के लोगों में मलाल है। गांव के लोगों ने बताया कि शहीद के गांव की सड़क कई वर्षों से खराब है लेकिन आज तक नही बना। भैरोपुर गांव निवासी कारगिल शहीद कमलेश सिंह चार भाई थे। बड़े भाई रामशब्द सिंह, उसके बाद शहीद कमलेश सिंह और दो छोटे भाई राजेश सिंह और राकेश सिंह है। बिरनो थाना क्षेत्र के भैरोपुर गांव निवासी कमलेश सिंह 15 जून 1999 को कारगिल युद्ध में शहीद हो गए। 7 जून 1999 को वह छुट्टी आने वाले थे, लेकिन ऑपरेशन विजय शुरु होने पर उन्हें छुट्टी नहीं मिल पाई।
पांच गार्ड की टुकड़ी के साथ कारगिल जाकर उन्होंने द्वितीय राज राइफल के साथ लड़ाई में हिस्सा लिया। 15 जून 1999 को इस युद्ध में वह वीर गति को प्राप्त हो गए। यह जानकारी शहीद के पिता अजनाथ सिंह ने बताया । शहीद के पिता भी सेना में कैप्टन से रिटायर है। शहीद कमलेश सिंह के पिता ने बताया कि बेटे की शहादत के बाद सरकार की तरफ से पत्नी के नाम पेट्रोल पम्प और सहायता के रूप में बड़ी राशि उपलब्ध कराई गई थी, लेकिन सहायता मिलने के बाद कुछ माह बाद कमलेश की पत्नी रंजना अपने मायके रहने लगी, शहीद की कोई संतान नही है। परिवार से कोई वास्ता नहीं है। इस समय पत्नी लखनऊ में मायके वालों के साथ रहती है। उनकी शहादत पर पिता अजनाथ सिंह और मां केशरी देवी के साथ ही जिले के लोगों की आंखों से फक्र के आसू बहे थे। 1965 में अपनी बहादुरी का परिचय दे चुके पिता का बेटे की शहादत पर सीना चौड़ा हो गया था, लेकिन सरकार की तरफ से सहायता मिलने के बाद शहीद की पत्नी के परिवार से अगल होने के बाद शहीद के माता-पिता दुखी है।
उन्होंने कहा कि देश की सेवा में शहीद होने वाले जवानों की पत्नियों को सरकार सहायता उपलब्ध कराती है, लेकिन वह यह नहीं सोचती है कि शहीद के बूढ़े मां-बाप कैसे अपना जीवन-जावन करेंगे। मेरी जानकारी में सिर्फ अकेला शहीद का वह पिता नहीं हूं, जिसकी बहू पति की शहादत के बाद सरकार से मिलने वाली सहायता के बाद परिवार से अलग हो गई हो।
शहीद कमलेश सिंह का जन्म 15 मई 1967 को हुआ था। कमलेश की तैनाती 457 एफआरआई भटिंडा में लांस नायक पद पर हुई थी। ऑपरेशन विजय में उनके अदम्य साहस के फलस्वरूप उन्हें सेना मेडल से नवाजा गया था। कमलेश सिंह की शहादत के बाद केंद्रीय मंत्री डा महेंद्रनाथ पांडेय के प्रयास से बिरनो थाना के सामने तिराहे पर उनकी प्रतिमा का निर्माण हुआ।
शहीद शेषनाथ यादव की 20वीं पुण्यतिथि 15 जून को नंदगंज के धरवां स्थित इंडेन सर्विस गैस गोदाम परिसर में मनाई गई थी। इस दौरान शहीद की बेवा सरोज यादव समेत परिवार के अन्य लोग प्रतिमा पर माल्यार्पण व श्रद्धासुमन अर्पित कर श्रद्धांजलि देने पहुंचे थे । शेषनाथ यादव ने देश की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी, उनकी शहादत पर क्षेत्र ही नहीं पूरा जनपद को गर्व महसूस होता है।
शहीद रामदुलार यादव के घर पहुंचने पर परिवार में किसी से मुलाकात नहीं हो पाई। ग्रामीणों से जानकारी ली गई तो पता चला कि वो लोग कहीं बाहर रहते है। ऐसे ही मोहम्मदाबाद के पखनपुरा गांव के रहने वाले कारगिल शहीद इश्तियाक के घर पहुंचा, जहां पता चला कि शहीद इश्तियाक के माता पिता का भी निधन हो चुका है, और शहीद के छोटे भाई का भी निधन हो चुका है। परिवार में और कोई नहीं है, ऐसे ही कारगिल के बाकी अन्य शहीदों के परिवार जिले से बाहर ही रहते है।
बता दें कि गाजीपुर वीर सपूतों की धरती के रूप में जाना जाता है। यहां की माटी में पैदा होने वाला जवान भारत माता की रक्षा के लिए अपना सबकुछ न्यौयछावर करने के लिए अग्रिम पंक्ति में खड़ा होता है।