★ पूर्णिमा के दिन मानव शरीर पर चंद्रमा का अधिक असर
★ समुद्री ज्वार भाटों की तरह मानवीय तरंगों पर भी प्रभाव
★ सर्वे के अनुसार, इस दिन बढ़ जाती हैं आपराधिक घटनाएं
★ इस दिन नशीले पदार्थ से अपेक्षाकृत ज्यादा बढ़ती है ‘मदहोशी’
नई दिल्ली।सौरमंडल परिवार में चंद्रमा है तो एक उपग्रह, जोकि हमारी धरती के चक्कर काटता है, लेकिन प्रतीक के तौर इसके अलग अलग मायने हैं। चांद किसी के लिए महबूब, किसी के लिए उसकी प्रेयसी, बच्चों के लिए मामा और आध्यात्मिक दृष्टि से देवता माने जाते हैं। चंद्रग्रहण के समय चंद्रमा, पृथ्वी और सूर्य एक सीध में आ जाते हैं। पूर्णिमा के दिन ऐसा होने से चंद्रमा का प्रभाव अन्य दिनों की अपेक्षा ज्यादा पड़ता है।
चंद्रग्रहण यूं तो एक खगोलीय प्रक्रिया है, लेकिन इसका प्रभाव मानव शरीर और मन मस्तिष्क से लेकर प्रकृति के अन्य संसाधनों पर भी पड़ता है। ब्रह्मांड में जितने भी ग्रह हैं, उन सभी का व्यक्ति के जीवन पर विशेष प्रभाव पड़ता है, वैसे ही चंद्रमा का भी।
चंद्रमा को मन का अधिष्ठाता कहा जाता है। मन की कल्पनाशीलता चंद्रमा की स्थिति से प्रभावित होती है। इंसान का दिमाग कितना स्थिर और कितना चंचल होगा, वह मानसिक तौर पर कितना कमजोर या दृढ़ होगा यह सब उसकी कुंडली में चंद्रमा की स्थिति को देखकर समझा या आंका जा सकता है।
90 के दशक में भी यह बात प्रमाणित हो चुकी है, जब पटना मेडिकल कॉलेज के डॉ चंद्रशेखर प्रसाद ठाकुर ने अपने दो साथी चिकित्सकों के साथ इस संबंध में शोध किया था। डॉ ठाकुर के अध्ययन के अनुसार, समुद्र में उठने वाले ज्वार भी काफी ज्यादा उछाल वाले होते हैं। स्तंभकार और लेखक सुरेंद्र कुमार महाचंद्र ने अपने एक लेख में इसकी चर्चा की है।
★ पूर्णिमा के दिन बढ़ती है आपराधिक प्रवृत्ति
सागर और लहरों का संबंध चंद्रमा के साथ निर्धारित करने के पीछे बड़ी वजह है। मानव शरीर भी 70% पानी से बना है, ऐसे में जाहिर है चंद्रमा का प्रभाव मानव शरीर पर भी पड़ता होगा। वैज्ञानिकों का मानना है कि सोडियम, पोटाशियम और कैल्शियम की जो मात्रा समुद्र के जल में पाई जाती है, लगभग वैसी ही मात्रा हमारे शरीर में खून(रक्त) में भी होती है।
इसलिए समुद्र के ज्वार-भाटे की तरह मानव शरीर में भी उतार-चढ़ाव होता है। शरीर में जैव रासायनिक परिवर्तन होने लगते हैं। शरीर और दिमाग में इन उफान मारती तरंगों का ही असर होता है कि पूर्णिमा के दिन अपराध करने की प्रवृत्ति भी बढ़ जाती है।
पूर्णिमा के दिन अपराधों की संख्या बढ़ने के पीछे चंद्रमा के चुंबकीय प्रभाव से पैदा हुई मानवीय ज्वार तरंगें होती है। सर्वे और अध्ययनों के अनुसार, इस दिन ज्यादातर मामले जहर खाने या देने संबंधी होते हैं। इस दिन या इसके बाद अस्पतालों में भी जहर खाने या खिलाने वाले मामले अन्य दिनों की अपेक्षा ज्यादा आते हैं।
इस दिन नशीले पदार्थों का भी अपेक्षाकृत ज्यादा असर होता है। मादक पदार्थ इस दिन तेज प्रभाव छोड़ते हैं। आपराधिक घटनाओं में वृद्धि का एक कारण यह भी होता है।
महिलाओं के जीवन में मासिक चक्र अहम भूमिका निभाता है। चिकित्सक बताते हैं कि महिलाओं में होने वाला मासिक धर्म भी चंद्रमा से प्रभावित होता है। स्त्री रोग विशेषज्ञ और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की सदस्य डॉ विनीता सिन्हा के अनुसार, अधिसंख्य महिलाओं में मासिक धर्म अमावस्या या पूर्णिमा के आसपास ही होता है।
मासिक चक्र में ज्यादा रक्तस्नाव (खून बहना) और हार्मोन में कमी और वृद्धि महिलाओं के स्वास्थ्य और व्यवहार को काफी प्रभावित करती है। यह उनका चिड़चिड़ापन भी बढ़ा देता है। वहीं, अमावस्या के दिन मासिक धर्म होने वाली महिलाएं पूर्णिमा के दिन मासिक धर्म होने वाली महिलाओं की अपेक्षा कम चिड़चिड़ी होती हैं।
विशेषज्ञ बताते हैं कि पूर्णिमा के दिन का चंद्रमा महिलाओं में अवसाद और मानसिक तनाव पैदा करता है। पूर्णिमा को जन्म लेने वाली महिलाएं ज्यादातर पूर्णिमा के दिन ही गर्भवती होती हैं।
कई अन्य अध्ययन भी इस बात की पुष्टि करते हैं कि हम अपने जीवन में चंद्रमा के प्रभाव का स्पष्ट अनुभव करते हैं। चंद्रमा का सृष्टि पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। संपूर्ण प्रकृति, भले ही वह जड़ हो या चेतन, उसमें कंपन, धड़कन या स्पंदन होता है और वह परिवर्तनशील है।