शुरू हुआ वाराणसी का ऐतिहासिक रथयात्रा मेला, पहले दिन ही लाखों भक्तों की भीड़

बनारस के लक्खी मेलों में शुमार है यह रथयात्रा मेला

इसी से शुरू होता है मेलों और त्योहारों का सिलसिला, जो चलेगा कार्तिक पूर्णिमा तक

वाराणसी।ऐतिहासिक रथयात्रा मेला के साथ काशी में मेलों और त्योहारों का मौसम गुरुवार को शुरू हो गया। वाराणसी के रथयात्रा चौराहे पर लकड़ी के विशाल रथ पर भगवान जगन्नाथ, बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की काष्ट प्रतिमा के दर्शन पूजन का सिलसिला गुरवार की भोर में आरंभ हो गया जो आधी रात तक चलेगा। यह क्रम लगातार तीन दिन तक जारी रहेगा। पहले ही दिन काशी के लक्खी मेलों में शुमार इस मेले में भक्तों का सैलाब उमड़ा। श्रद्धालुओं का जत्था आता रहा और भगवान के दिव्य दर्शन कर पुण्य लाभ अर्जित करता रहा।

बता दें कि ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को भगवान जगन्नाथ भक्तों के अतिशय प्रेम के वशीभूत हो कर अत्यधिक स्नान के बाद बीमार पड़ गए थे। 15 दिन तक उन्हें जड़ी-बटियों के काढ़े का भोग लगाया गया। आसाढ़ कृष्ण अमावष्या को भगवाव जगन्नाथ स्वस्थ हो गए। उस रोज दिनभर अस्सी स्थित मंदिर में दर्शन पूजन का क्रम चला। बुधवार की शाम भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा संग डोली में सवार हो कर शहर के सैर सपाटे पर निकले। इसके तहत अस्सी स्थित जगन्नाथ मंदिर से निकलेगी भव्य पालकी यात्रा। देर शाम रथयात्रा स्थित बेनीराम के बगीचे में पहुंची। यहां उनकी आरती उतारी गई। फिर आधी रात के बाद 14 पहियों वाले विशाल रथ पर तीनों देवाताओं के विग्रह स्थापित किए गए।

तीनों विग्रहों को रथ में प्रतिस्थापित करने से पहले रथ की पूजा की गई। आरती उतारी गई उसके पश्चात विग्रहों को स्थापित किया गया। बता दें कि यह रथ 14 पहिए वाला और 20 फीट चौड़ा व 18 फीट लंबा है। इस रथ में सवार भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और बहन सुभद्रा के विग्रहों का दर्शन-पूजन गुरुवार की सुबह मंगला आरती से हुआ।
इसी के साथ काशी के प्राचीन लक्खी मेलों में शुमार तीन दिवसीय रथयात्रा मेला शुरू हो गया । बतादें कि पुरी के बाद वाराणसी में ही इतने बड़े पैमाने पर रथयात्रा मेला मनाया जाता है।

*इस तरह होंगे तीन दिवसीय कार्यक्रम

पहले दिन यानी गुरुवारको भोर में पीतांबर परिधान में भगवान जगन्नाथ,बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा ने दर्शन दिया। गेंदे की माला और रजनीगंधा के पुष्प से श्रृंगार हुआ। सुबह 5.11 मिनट पर मंगला आरती के बाद दर्शनार्थियों के लिए पट खोल दिया गया। सुबह आठ बजे दूध का नैवेद्य भगवान को चढ़ाया गया। इसके बाद दर्शन-पूजन का जो सिलसिला शुरू होगा वह आधी रात तक जारी रहा। बीच-बीच में जैसे दोपहर में भगवान को विविध पकवान का भोग लगाया गया। रात में भोग और शयन आरती के बाद आधी रात को पट बंद हो जाएगा।

दूसरे दिन शुक्रवार को पुनः सुबह 5.11 बजे मंगला आरती होगी। इसके बाद प्रभु को लाल परिधान पहनाया जाएगा। लाल फूलों से श्रृंगार होगा। सुबह नौ बजे कुंवर अनंत नारायण प्रभु का दर्शन करेंगे।

तीसरे व अंतिम दिन यानी शनिवार को भी सुबह 5.11 बजे मंगला आरती होगी। छह बजे इस्कान मंदिर की मंडली चैतन्य महाप्रभु के भजनों की प्रस्तुति देगी। नौ बजे छौंके हुए मूंग-चना,पेड़ा,गुड़,खांडसारी,नीबू का तुलसी मिश्रित शर्बत का भोग लगेगा।

पहले दिन मगही पान का भोग
बतादें कि मान्यता के अनुसार इन तीन दिनों में सबसे पहले मगही पान का भोग भी भगवान जगन्नाथ को लगाया जाता है। मान्यता यह भी है कि इन तीन दिनों में भगवान के विशाल रथ का पहिया अगर बारिश से भींग जाए तो वर्ष पर्यंत धन धान्य की कमी नहीं रहती। फसर अच्छी रहती है। ऐसे में भक्तजन यह कामना करते हैं कि तीन दिनों में देवराज इंद्र की कृपा हो और भगवान जगन्नाथ के रथ का पहिया जरूर से भींगे।

सजी हैं नॉन खटाई की दुकानें
मेला क्षेत्र में खास नॉनखटाई की दुकानें सज गई हैं। इसके अलावा बच्चों के मनोरंजन के साधन भी जुटे हैं। कहीं सिनेमा बाईस्कोप का पंडाल लगा है तो कहीं झूला-चरखी लगी है। दैनिक उपयोग वाली वस्तुओं की दुकानें भी सज गई हैं। बता दें कि यह मेला क्षेत्र काशी के महमूरगंज से लेकर गिरिजाघर और कमच्छा से लेकर सिगरा तक फैला है। दर्शनार्थियों की सुविधा के लिए ट्रैफिक डायवर्जन भी किया गया है।

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