★ वही हुआ जो होना था, बसपा – सपा की राहें जुदा , ■ हेमंत तिवारीलखनऊ।मुसलमानों के वोट मुकम्मल करने और नरेंद्र मोदी की आंधी से जान बचाने की बुनियाद पर यूपी में हुई हालिया मुताह शादी बेवक्त टूट गई है । सियासी फायदे के लिए मौका परस्ती की अपनी आदत के लिए मशहूर बसपा सुप्रीमो मायावती फिलहाल फायदे में हैं जबकि अपनी सियासत चमकाने के लिए बाप और चाचा से बगावत करने वाले अखिलेश यादव को जोर का झटका धीरे से लगा है। दरअसल जिन मायावती को मुलायम सिंह यादव ने कभी बहन जी के तौर पर स्वीकार नहीं किया उन्हें बबुआ अखिलेश यादव ने बुआ समझने की भूल की। उत्तर प्रदेश की राजनीति में आखिरकार वही हुआ जिसकी उम्मीद थी। लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के दस दनों के भीतर ही मायावती ने अपने चिरपरिचित अंदाज में सपा-बसपा गठबंधन की नाकामी की ठीकरा अखिलेश यादव पर फोड़ते हुए राहें जुदा कर लीं । औपचारिक रुप से गठबंधन तोड़ने का एलान मंगलवार को किया गया है लेकिन मायावती ने चौबीस घंटे पहले ही काफी कुछ साफ कर दिया था । । पहली बार मायावती ने उपचुनाव भी लड़ने का एलान किया है जहां वह उन्ही अखिलेश से फिर मुकाबिल होंगी , जिनके साथ महीना भर पहले तक चुनावी मंचों से भाजपा के सफाये के दावे करती थीं और सपा मुखिया उन्हें प्रधानमंत्री बनने के सपने दिखाते थे । दोनों के सपने टूट गए तो दोनों का साथ भी छूट गया है । पिछले पांच सालों से लगातार चैंपियन रही भाजपा के लिए अब आगे का भी रास्ता निष्कंटक है । हालिया लोकसभा चुनाव में सपा के साथ गठबंधन के बावजूद उम्मीद के अनुसार नतीजे न आने से नाखुश बसपा सुप्रीमो मायावती ने पार्टी की मीटिंग में कहा कि यूपी के 11 सीटों पर होने वाले उपचुनाव में उनकी पार्टी अकेले लड़ेगी. दिल्ली के सेंट्रल ऑफिस में सोमवार को हुई समीक्षा बैठक में ही मायावती ने नतीजों पर नाखुशी जताते हुए गठबंधन तोड़ने का एलान अपने खास सिपहसालारों के बीच कर दिया था । एक दिन बाद माया ने अपना फैसला सार्वजनिक कर दिया तब तक अखिलेश यादव को इसका यकीन नहीं था । दरअसल मायावती जब दिल्ली में गठबंधन तोड़ने का फैसला कर रही थी तो ठीक उसी वक़्त चुनाव जीतने के बाद पहली बार आज़मगढ़ पहुंचे अखिलेश यादव मायावती और गठबंधन की शान में कसीदे पढ़ रहे थे । अखिलेश यादव को शायद इतने बड़े राजनीतिक धोखे की उम्मीद नहीं थी । 2014 के लोकसभा चुनाव में शून्य और यूपी के विधानसभा चुनाव में महज डेढ़ दर्जन के स्कोर पर धड़ाम हो चुकी मायावती ने कहा कि गठबंधन से उनकी पार्टी को फायदा नहीं हुआ. यादव का वोट हमारी पार्टी को ट्रांसफर नहीं हुआ. बीएसपी पदाधिकारियों से मिले फीडबैक के बाद मायावती ने कहा कि गठबंधन का वोट चुनावों में ट्रांसफर नहीं हुआ. लिहाजा आगामी उपचुनाव में बीएसपी अकेले ही लड़ेगी. मायावती की दलील है कि समाजवादी पार्टी को तो अपने गढ़ में भी यादवों के वोट नहीं मिले वरना कन्नौज बदायूं और फिरोजाबाद से यादव परिवार के लोग चुनाव नहीं हारते । लोकसभा चुनाव में बीएसपी के 10 प्रत्याशी संसद पहुंचे हैं जबकि पत्नी डिंपल यादव और चचेरे भाइयों अक्षय और धर्मेंद्र यादव की सीटें गवाने वाले अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के कुल पांच सदस्य ही लोकसभा पहुंच सके हैं । ध्यान रहे कि सियासी रसूख में लगातार वृद्धि करने वाले सैफई के यादव परिवार के सिर्फ दो सदस्य ही अभी तक चुनाव हारे हैं । 2019 लोकसभा चुनाव में बीएसपी को संतोषजनक सीटें न मिलने और कुछ प्रदेशों में करारी हार को लेकर मायावती ने पार्टी कार्यकर्ताओं की अखिल भारतीय स्तर पर मीटिंग बुलाई. यूपी के सभी बसपा सांसदों और जिलाध्यक्षों के साथ बैठक में मायावती ने कहा कि पार्टी सभी विधानसभा उपचुनाव में लड़ेगी और अब 50 फीसदी वोट का लक्ष्य लेकर राजनीति करनी है. ★ उपचुनाव नहीं लड़ती बसपाजानकारों की मानें, तो उपचुनाव लड़ने का फैसला चौंकाने वाला है, क्योंकि बसपा के इतिहास को देखें तो पार्टी उपचुनाव में प्रत्याशी नहीं उतारती है. वर्ष 2018 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों में भी पार्टी ने प्रत्याशी नहीं उतारे थे और सपा को समर्थन दिया था. इसी आधार पर लोकसभा चुनाव में भी गठबंधन बना, लेकिन परिणाम मनमाफिक नहीं आए. अब अगर मायावती अकेले उपचुनाव में उतरने का फैसला करती हैं तो गठबंधन के भविष्य पर सवाल उठाना लाजमी है. मायावती को लगता है की विधानसभा उपचुनाव में उन्हें दलितों के साथ मुसलमानों के भी वोट मिलेंगे और यह बसपा के लिए भविष्य की राजनीति का एक परीक्षण भी हो जाएगा । ★ 38 सीटों पर थे बसपा प्रत्याशीगौरतलब है कि सपा से गठबंधन के तहत बसपा ने यूपी में 38 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिसमें सिर्फ 10 सीटों पर उसे जीत हासिल हुई. जबकि 37 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली सपा के खाते में महज पांच सीटें ही आईं.★ ईवीएम का रोना जारी यूपी के सांसदों, विधायकों, पार्टी पदाधिकारियों, जोनल इंचार्जों और जिलाध्यक्षों के साथ समीक्षा बैठक की. बैठक में मायावती ने लोगों को समझाया है कि वे अपने क्षेत्रों में जाकर समर्थकों को समझाएं कि आज की बैठक में महागठबंधन की समीक्षा की गई. साथ ही ईवीएम में गड़बडी हमारी हार की वजह है । ऐसा समझने से उनके समर्थक दलित और मुसलमान एकजुट बने रहेंगे ।. मायावती चाहती है कि बैलेट पेपर से ही चुनाव हो । कि बसपा की मांग है कि बैलट पेपर से चुनाव हो. ★ माया की गाज नेताओं पर लोकसभा चुनाव में बसपा ने 10 और सपा ने पाँच सीटें जीती। बीजेपी ने राज्य से 62 सीटों के साथ भारी अंतर से जीत हासिल की। बता दें कि लोकसभा चुनाव से पहले बड़ी तैयारी के बाद सपा, बसपा और आरएलडी के बीच गठबंधन हुआ था। तीनों दलों ने यूपी में 50 से ज़्यादा सीटें जीतने का दावा किया था। लेकिन लोकसभा चुनावों के परिणाम उम्मीदों के उलट रहा।लोकसभा चुनाव में ख़राब प्रदर्शन के बाद मायावती ने एक दिन पहले ही रविवार को छह राज्यों के चुनाव संयोजकों और दोB राज्यों के अध्यक्षों को हटा दिया था। उन्होंने उत्तराखंड, बिहार, झारखंड, राजस्थान, गुजरात और ओडिशा के समन्वयकों को हटा दिया ।: ★ हताश और भौचक्के अखिलेश मायावती के एकतरफा फैसले के बाद सियासी तौर पर मजबूर और कमजोर साबित हुए सपा मुखिया और आजमगढ़ से सांसद अखिलेश यादव के पास और कोई रास्ता नहीं बचा था, इसलिए उन्हें एलान करना पड़ा कि विधानसभा की11 सीटों पर उनकी पार्टी अकेले चुनाव लड़ेगी । आज़मगढ़ और गाजीपुर के दौरे पर निकले अखिलेश यादव के चेहरे पर हताशा के भाव थे लेकिन सियासी मजबूरी में दावा करना पड़ा कि 2022 में उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार बनेगी। अखिलेश ने कहा ‘अगर गठबंधन टूटा है और जो बातें कही गई हैं …मैं उन पर बहुत सोच समझकर विचार करूंगा। जब उपचुनाव में गठबंधन है ही नहीं, तो सपा भी 11 सीटों पर राय मशविरा करके अकेले चुनाव लड़ेगी। अगर रास्ते अलग-अलग हैं तो उसका भी स्वागत है मायावती ने अपने चिर परिचित अंदाज में एलान किया कि बसपा विधानसभा उपचुनाव अकेले लड़ेगी। हालांकि, उन्होंने गठबंधन जारी रखने के लिए शर्तें जोड़ दी हैं। मायावती ने कहा कि लोकसभा चुनाव में सपा का वोट बसपा को ट्रांसफर नहीं हुआ।यही कारण है कि यादव परिवार के डिंपल, धर्मेंद्र व अक्षय भी चुनाव हार गए। उन्होंने कहा कि बसपा एक मिशनरी, अनुशासित व कैडर आधारित पार्टी है जबकि सपा में अभी काफी सुधार की जरूरत है। मायावती ने कहा कि अखिलेश अपने कार्यकर्ताओं को मिशनरी बनाएं।मायावती का कहना है कि राजनीतिक मजबूरियों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है इसलिए हमने अकेले उपचुनाव लड़ने का फैसला किया है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि गठबंधन हमेशा के लिए समाप्त नहीं हो रहा है। अगर हमें लगेगा कि सपा इस स्थिति में है कि गठबंधन से लाभ हो सकता है तो हम जरूर साथ आएंगे नहीं तो अलग-अलग रहना ही ज्यादा बेहतर होगा।मायावती कहती है कि अखिलेश यादव और डिंपल यादव ने मुझे बहुत सम्मान दिया और मैंने भी देश व समाज हित में पुराने मतभेद भूलकर उनका आदर किया। हमारे रिश्ते राजनीतिक नहीं हैं और हमेशा बने रहेंगे। ★ पांच माह भी पूरा नही कर सका गठबंधनइस साल 12 जनवरी को गठबंधन की घोषणा के दौरान लखनऊ में अखिलेश यादव और मायावती ने अपने आदर्श डॉ भीमराव अंबेडकर और राम मनोहर लोहिया की बड़ी बड़ी तस्वीरों के सामने कहा था कि ये दोस्ती स्थायी है। हम ना सिर्फ लोकसभा बल्कि विधानसभा चुनाव भी साथ लड़ेंगे। यह साथ सिर्फ 144 दिन चला और उस दिन खत्म हुआ जिस दिन समाजवादी पार्टी के चुनाव निशान साइकिल को पूरी दुनिया में साइकिल दिवस के रूप में मनाया जाता है ।