सोनिया की जीत में छिपी है हार, कड़े कदम कड़वी दवा जरूरी

कांग्रेस-परिक्रमा, चरणवन्दना वालो से दूरी आवश्यक, गलतियों से सीखने का समय।

रायबरेली। लोकतंत्र में राजनैतिक दलो का अस्तित्व उसकी निरन्तर सक्रियता, कर्मठता और जनसंवाद की नींव पर टिका होता है, कांग्रेस के पास राष्ट्रीय से लेकर स्थानीय स्तर तक एक समय विचारवान जमीनी कार्यकर्ताओ की लंबी फौज थी, जो दल समय की धारा को पकड़ते है वही जनता के मध्य अपना अस्तित्व बचाते है। रायबरेली में कांग्रेस निरन्तर गलती दर गलती करती रही है, उसके पास जमीनी कार्यकर्ताओ की शून्यता है। पूर्व विधायको में कोई ऊर्जा उत्साह नही वह सिर्फ नेहरू गांधी परिवार के नाम पर सदन में जाकर माननीय बनने का स्वप्न देखते रहते है। सांसद प्रतिनिधि का तीन तिकड़म कथित अभिजात्य वर्ग के चंद लोगो मे सिमटा हुआ है, उनकी कार्यशैली में अहंकार के अतिरिक्त कुछ नही है, बड़े नाम कद के सहारे बहुत दिनों तक राजनीति नही की जा सकती है। श्रीमती सोनिया गांधी के रायबरेली आगमन से लेकर वर्तमान समय तक किशोरी लाल शर्मा ने जिला संगठन को एक अपनी परिक्रमा करने वालो व एक जाति विशेष तक संकुचित कर दिया, जिस किसी कार्यकर्ता ने सोनिया तक अपनी बात पहुचने का प्रयास किया उसका अस्तित्व कांग्रेस में समाप्त किया, जिस कांग्रेस के समक्ष भाजपा के कद्दावर नेता विनय कटियार अपनी जमानत नही बचा सके थे उसी भाजपा के सामने कांग्रेस इस लोकसभा चुनाव में हांफ ती कांपती नजर आयी। आज कांग्रेस के पास दो जातियो को छोड़कर अन्य वर्गों जैसे दलित, पिछड़े व मुस्लिमो का कोई चेहरा नही है। यही कारण है कि कांग्रेस आज यहां शून्य की तरफ बढ़ती जा रही और इस शून्यता की नैतिक जिम्मेदारी सांसद प्रतिनिधि से लेकर जनपदीय संगठन के वर्तमान पदाधिकारियो की है। उनको स्वयं मंथन करना चाहिये कि वह आज क्यों इस जगह पर आकर खड़े है। कांग्रेस यहां सांसद प्रतिनिधि या संगठन के बल पर नही बल्कि नेहरु गांधी परिवार के प्रति जनता के असीम प्रेम के बल पर टिकी है जिसने उत्तर प्रदेश में एकमात्र सीट जीतकर उसकी लाज रख ली, अन्यथा कांग्रेस का उत्तरप्रदेश में सूपड़ा साफ हो जाता है। श्रीमती गांधी की विजय मतदाताओं के साथ समाजवादी पार्टी व बहुजन समाज पार्टी की महत्वपूर्ण भूमिका से इनकार नही किया जा सकता क्योंकि दोनों दलों का एक बड़ा समर्थक समूह यहां मौजूद है, कल्पना कीजिये यदि दोनों दलों में किसी एक ने अपना प्रत्यासी लड़ा दिया होता तो शायद यहा का परिणाम कांग्रेस के लिये चिंताजनक होते। समाजवादी पार्टी का यहाँ बड़ा जनाधार हर विधानसभा चुनाव में यहां साबित हुआ है, कांग्रेस यदि जनपद में अपना अस्तित्व बचाना चाहती है तो उसे वर्तमान स्टाफ को कार्यालय में छोड़कर सामाजिक राजनैतिक कार्यकर्ताओ के हाथों में संगठन की बागडोर सौपने की दिशा में आगे बढऩा होगा, अन्यथा अमेठी जैसा हश्र कोई रोक नही पायेगा।

*अब बदलाव आवश्यक*
रायबरेली में प्रियंका गांधी अपनी माँ के चुनाव अभियान में सक्रिय भूमिका निभाती रही है, अब समय बड़े बदलाव का है जनता को परिवार के रसूख के बल पर बहुत दिनों तक मोहित नही रखा जा सकता है। प्रियंका गांधी को अब सोचना होगा कि रोड शो, हाय हेलो से तमाशबीनों की भीड़ एकत्रित करने से अच्छा संगठन के स्तर पर नए लोगो को जोड़कर घिसे पीटे चेहरों से संगठन को बाहर निकालना चाहिए और जन जन से संगठन का सम्पर्क संवाद बड़े इस दिशा में कार्ययोजना बनानी चाहिए।

*जीत में छिपी हार समझे कांग्रेस*
अबकी बार पांच लाख पार का नारा लगाने वाले कांग्रेसी जनता में दौड़ रहे विद्युत प्रवाह को भांपने में असमर्थ रहे या यूं कहें उन्हें इसकी समझ ही नही थी। सोनिया गांधी की जीत में कभी संशय नही रहा है लेकिन सोनिया विरोध में पड़े भारी मतों में भविष्य की राजनीति छिपी हुई है है। कांग्रेस जनों को इसे अपनी पराजय के रूप में लेकर नए सिरे से शुरुआत करनी चाहिये इसकी अनदेखी भविष्य में अत्यधिक घातक साबित होगी।

*केएल को बदलनी चाहिए अपनी सोच*
सोनिया गांधी के प्रतिनिधि पण्डित किशोरी लाल शर्मा के इर्द गिर्द जनपद की कांग्रेस है, उनकी मर्जी के विपरीत एक पत्ता भी नही हिलता, उनके लिये लोकसभा चुनाव परिणाम आत्ममंथन का विषय होंना चाहिए। रायबरेली के सम्पर्क में आने के बाद से उनकी राजनीति कथित अभिजात्य वर्गीय जातियों के ड्राईंग रूम या बैठकों तक सीमित रही है। दलित पिछडो अल्पसंख्यको को उनके कार्यकाल में हासिये पर रखा गया, बल्कि सच यह है उनके लिये तिलक भवन के दरवाजे एक तरह से बंद रखे गए, जो आते-जाते भी है उनका समाज उन्हें भाव नही देता, वह परिक्रमा करके चले जाते है। यदि सांसद प्रतिनिधि कांग्रेस गांधी परिवार के प्रति समर्पित है तो उन्हें अपने अंदर से बदलाव की शुरुआत करनी चाहिये, जिससे नेहरू परिवार के गढ़ में उसके प्रति जनता में मोह बना रहे यह सब कागजो पर नही जमीन पर उतरकर करना होगा, रचनात्मक दिशा में बढऩे पर कांग्रेस का अस्तित्व बचेगा।

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