दिल्ली ।
लोकसभा चुनाव में भाजपा की जितनी बड़ी जीत हुई है, चुनौतियां भी उतनी ही बड़ी मुंह बाए खड़ी हैं। दो तिहाई से अधिक सीटें जीतने वाले एनडीए सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती लोगों की आसमान छूती आकांक्षाओं को पूरा करने की है। इसके अलावा रोजगार और गंगा सफाई के लिए बड़े कदम उठाने होंगे। अमेरिका-चीन ट्रेड वार के बीच अर्थव्यवस्था को पटरी पर बनाए रखने के साथ देश की बाहरी व आंतरिक सुरक्षा चाक चौबंद करना चुनौती होगी ।
रोजगार के अवसर बढ़ाना बड़ा काम
सबसे अधिक युवाओं की संख्या वाला देश भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था भी बन कर उभरा है। इंडियन स्कूल आफ बिजनेस में प्रोफेसर रहे डॉ. विकास सिंह का कहना है कि नई सरकार की मुख्य चुनौतियों में अर्थव्यवस्था की विकास की धीमी रफ्तार, बाजार की कमजोर मांग, निजी निवेशमें कमी और वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता है। रोजगार के अवसर बढ़ाना सरकार की पहली प्राथमिकता होगी, क्योंकि हर साल लगभग एक करोड़ युवा रोजगार के लिए बाजार में आ जाते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अर्थव्यवस्था की रफ्तार को तेज कर देने से ही काफी समस्या का समाधान हो जाएगा।
इस साल चुनाव से पहले अंतरिम बजट के जरिये आयकर में छूट की सीमा दोगुनी करने के प्रस्ताव को अब पूर्ण बजट के जरिये नियमित किया जाएगा। सरकार के सामने मध्यम वर्ग को और राहत देने की चुनौती है। सरकार ने मानक कटौती बढ़ाकर 50 हजार और जमा पर मिलने वाले 40 हजार रुपये तक के ब्याज को कर मुक्त किया था। इससे आम निवेशकों के लिए लघु बचत योजनाओं, पीपीएफ, एनपीएस, जीवन बीमा, म्यूचुअल फंड में ज्यादा निवेश का मार्ग खुला था। ऐसे में करदाता धारा 80सी के तहत अच्छी खासी बचत कर सकते हैं। ऐसे में 7.75 लाख रुपये तक सालाना आय वाले पूरी आय पर कर छूट का लाभ उठा सकते हैं। अंतरिम बजट में तीन महीने के लिए खर्च की अनुमति ली गई थी इसलिए इसमें पेश प्रस्तावों को पूर्ण बजट में शामिल करना जरूरी है।
नमामि गंगे अविरल गंगा, निर्मल गंगा
2014 में सरकार बनते ही प्रधानमंत्री मोदी ने पहला बड़ा फैसला गंगा की सफाई का लिया था। गंगा के लिए अलग मंत्रालय बनाया, उमा भारती को प्रभार दिया। 70 हजार करोड़ की योजना बनाई। लेकिन, पांच साल बाद भी वे मकसद में आंशिक रूप से कामयाब हो पाए। दूसरी पारी में उनके सामने गंगा का प्रवाह अविरल रखने और पूरी तरह निर्मल बनाने की चुनौती होगी। उमा भारती के बाद इस मंत्रालय का प्रभार नितिन गडकरी के पास था। प्रयागराज कुंभ के दौरान करोड़ों लोगों ने गंगा जल को पहले से बेहतर पाया। कारण, कानपुर की टेनरी से गिरने वाले रसायन और वाराणसी के अस्सी नाले तक हर जगह काम युद्ध स्तर पर चला। चुनाव से ठीक पहले गडकरी ने दावा किया कि 28 हजार करोड़ की लागत से 10 प्रतिशत काम हुआ है, लेकिन मार्च 2020 तक सौ फीसदी काम पूरा होने की आशा है। वे गंगा की 40 सहायक नदियों पर भी ध्यान दे रहे हैं।
राम जन्मभूमि मंदिर मामला
मोदी सरकार के सामने राम जन्मभूमि मंदिर मामला जल्द से जल्द निपटाने की चुनौती है। चूंकि संघ परिवार का उस पर धारा 370 हटाने, समान नागरिक संहिता लागू करने और राम मंदिर बनवाने का दबाव बढ़ सकता है, इसलिए मोदी चाहेंगे कि यह मामला बिना विवाद के या तो मध्यस्थता से या फिर अदालत से जल्द निपट जाए। सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता कमेटी को 15 अगस्त तक सभी पक्षों से बात कर कुछ रास्ता निकालने का अवसर दिया है। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय पीठ मामले की सुनवाई कर रही है। केंद्र सरकार पहले ही राम जन्मभूमि परिसर स्थित 67 एकड़ अविवादित भूमि मंदिर निर्माण के लिए देने की इच्छा जता चुकी है। उसने सुप्रीम कोर्ट से मंदिर निर्माण शुरू कराने के लिए यह जमीन न्यास को देने की अनुमति मांगी है। इस बार केस की सुनवाई रेगुलर संभव है। ऐसा हुआ तो पहले उसे केंद्र सरकार के अविवादित भूमि राम जन्मभूमि न्यास को दिए जाने के आग्रह पर फैसला लेना होगा। इसके बाद ही वह इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2010 के उस फैसले को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई करनी होगी, जिसमें विवादित जमीन के तीन हिस्से कर राम जन्मभूमि न्यास, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी बोर्ड में बांटना था।
तमाम दावों के बावजूद नक्सलवाद बड़ी चुनौती
सरकार के नक्सलवाद पर अंकुश लगाने के तमाम दावों के बावजूद नक्सली हमला पहले से ज्यादा उग्र रुप सामने आया है। पिछले कुछ सालों में ऐसे नक्सली वारदात की संख्या भले कम हो गई हो, हमले के तौर तरीके से सुरक्षा एजेंसियों की चिंता कम नहीं हो रही। पिछली सरकार ने नक्सलियों के शहरी माड्यूल पर शिकंजा कसा है। अब जंगलों में नक्सलियों की आर्म्ड मिलिशिया का खात्मा नई सरकार की अगली बडी चुनौती होगी। सुरक्षा जानकारों के मुताबिक देश के भीतर आतंकी हमले नगण्य हो गए हैं। आईएस के नाम पर कुछ युवकों ने वारदात करने की कोशिश जरुर की। जम्मू-कश्मीर में हिंसा ऐसा मसला है जिसका असर पूरे देश पर पड़ता है। कश्मीर की राजनीति, वहां सक्रिय अलगाववाद व आतंकवाद और मौजूदा पाकिस्तानी हस्तक्षेप की वजह से यह मसला न सिर्फ जटिल है बल्कि नई सरकार के लिए बड़ी चुनौतियों में एक है। अधिकारी के मुताबिक, भाजपा को दोबारा भारी बहुमत के बाद गोरक्षा के स्वयंभू कार्यकर्ता सुरक्षा एजेंसियों के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकते हैं।
भारत-पाक संबंध : पड़ोसी मुल्क के पास अब अकड़ने की गुंजाइश नहीं
भारत की वाह्य सुरक्षा का सबसे जटिल आयाम पाकिस्तान का मसला दिलचस्प मुकाम पर है। पिछले पांच सालों में भारत की कूटनीति ने पाकिस्तान को अमेरिका, रूस, फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन जैसे विकसित देशों से अलग-थलग कर दिया है। चीन को भी पाकिस्तान से दूरी बनानी पड़ी। घर में घुसकर आतंकवाद का जवाब देने की योजना पर काम करने वाले रणनीतिकारों मानते हैं कि अब पाकिस्तान को भारत की शर्तों पर बातचीत के लिए मजबूर करना होगा। पाकिस्तान और मुस्लिम देशों के साथ संबंधों पर काम करने वाले एक अधिकारी के अनुसार भारत के साथ मिलकर चलने के अलावा पाक के पास दूसरा रास्ता नहीं है। अब उसके साथ सऊदी अरब और यूएई जैसे कुछ देशों के अलावा कोई नहीं। सरकार के पास मुस्लिम देशों में भी पाकिस्तान का तिलिस्म तोड़ने की योजना है। मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में ऑर्गनाईजेशन ऑफ इस्लामिक कंट्रीज के देशों के प्रमुखों को आमंत्रित कर इसकी शुरुआत की जा सकती है। पाकिस्तान में भारत के उच्चायुक्त रहे जी पार्थसारथी मानते हैं कि इमरान खान भले अच्छे संबंधों की बात कर रहे हों लेकिन वह सेना के खिलाफ नहीं जा सकते। लिहाजा वहां की सरकार के साथ ठोस बैक चैनल के जरिए सेना से बातचीत का रास्ता भी खोलना होगा।
चीन-अमेरिका ट्रेड वार का असर तेल के दामों पर
चीन एक आर्थिक और सामरिक सुपर पॉवर बन चुका है। लेकिन, अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप यह मानने का तैयार ही नहीं हैं। वे चीन के सामानों की अमेरिका में आयात पर तरह-तरह के प्रतिबंध और कर लगा रहे हैं। जवाब में, चीन ने भी अमेरिकी कंपनियों को टेलीकॉम कंपनी हुआवे से व्यापार करने पर रोक लगा दी। एप्पल जैसी अधिकतर अमेरिकी कंपनियां हुआवे के पुर्ज़े ही इस्तेमाल करती हैं। इनसे कई बड़ी कंपनियों के भारी नुकसान होने की आशंका है। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि चीन और अमेरिका के बीच ट्रेड वार से वैश्विक आर्थिक मंदी आने वाली है। भारत भी इसके चपेट में आ सकता है। इससे कई कंपनियों का व्यापार प्रभावित होगा, नौकरियां जा सकती हैं और लोगों को प्रमोशन और वेतन वृद्धि के लिए इंतजार करना पड़ सकता है। वहीं ईरान के तेल निर्यात पर प्रतिबंध का असर भारत पर पड़ने के आसार कम ही हैं। मोदी सरकार ने अमेरिका से कच्चे तेल के आयात का करार कर लिया है। यह बात और है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें बढ़ जाने से अगले कुछ दिनों में पेट्रोल और डीज़ल की क़ीमत दो से ढाई रुपये प्रति लीटर तक बढ़ने की संभावना है।