पुलिस और न्यायालय गरीबों में भय उत्पन्न करने वाली संस्था बन गई हैं।
लखनऊ/दिनांक:16.05.2019।जनपद अम्बेडकरनगर के ग्राम-जैतपुर निवासी विजयपाल सिंह ने ग्रेटर शारदा सहायक समादेश क्षेत्र विकास एवं जल प्रबंधन परियोजना में अनुरेखक पद पर 37 वर्ष सेवा करने के बाद 31 दिसंबर, 2017 को सेवा-निवृत्त हुए लेकिन लगभग डेढ़ वर्ष गुजरने के बावजूद भी आज तक उसकी पेंशन विभाग ने जारी नहीं किया जबकि उन्होंने इसके लिए उन्होंने उच्च-न्यायालय लखनऊ में रिट भी दायर की थी उसके बाद उनसे परिवार की फोटो इत्यादि विभाग को उपलब्ध कराने कहा गया जिसे उन्होंने 15 मार्च 2019 को उपलब्ध करा दिया उसके बाद विभाग ने पत्र द्वारा सूचित किया कि आपकी पेंशन आनलाईन कर दी गई है जबकि पता करने पर पीड़ित को ज्ञात हुआ कि विभाग झूंठ बोल रहा है ऐसा कुछ भी नहीं किया गया है लेकिन अब विभाग कह रहा है कि आपकी ग्रेड परिवर्तित जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि विभाग प्रार्थी और उसके परिवार को परेशान करना चाहता है l
उन्होंने कहा कि सेवानिवृत्ति के समय ही अधिकारियों ने पेंशन जारी करने के एवज में पैसे की मांग की थी यदि उन्होंने दे दिया होता तो उनकी पेंशन जारी हो चुकी होती और अदलत के चक्कर न काटने पड़ते और उनका पूरा परिवार पेंशन के अभाब में जलालत पूर्ण जीवन यापन न कर रहा होता उन्होंने अध्यक्ष एवं प्रशासक, भूमि संरक्षण अधिकारी एवं अपर निदेशक,कोषागार एवं पेंशन को पत्र लिखकर कहा कि विभाग कोर्ट के ऊपर है क्योंकि कोर्ट जाने के बावजूद भी उसे पेंशन आज तक नहीं मिली क्योंकि कोर्ट में अंतिम-आदमी की समस्या पर नहीं अधिकारियों की सुविधा देखकर कार्य करती है उन्हें कोर्ट पर कम भरोसा है लेकिन इसके अलावा इस देश के पीड़ित लोगों के पास कोई रास्ता नहीं है l
उन्होंने कहा कि कोर्ट भी इन लोगों से यह नहीं पूँछ सकती कि आखिर अभी तक पेंशन क्यों नहीं मिली न्यायालय तो अधिकारियों से अधिक भय उत्पन्न करने वाला हो गया है क्योंकि काउंटर और रिज्वाइंडर में केश जहां गया तब तो प्रकरण के विचाराधीन होने का बहाना लेकर पेंशन जारी करने से ही अधिकारी मना कर देंगें और कोर्ट में न तारीख लगेगी और न सुनवाई पूरी होगी और पेंशन हमारे बच्चे मेरे मरने के बाद ही पायेंगें l उन्होंने दुःख व्यक्त करते हुए कहा कि अधिकारी न्यायालय से बड़े है क्योंकि जितनी परेशानी और खर्च न्यायालय में उन्होंने किया उससे बहुत ही कम पैसे में विभाग उनकी पेंशन जारी कर देता लेकिन उन्होंने कहा कि मैंने इस बात को नहीं समझा कि जब अधिकारी ने उच्चतम न्यायालय के आदेश और नियमावली का पालन नहीं किया और कोर्ट यह नहीं पूंछ पा रही है कि आखिर 37 साल नौकरी के बाद पेंशन क्यों नहीं जारी की गयी यदि कोई विभागीय कमी है तो उसको विभाग नियत समय में पूरा करके कोर्ट में लाए, तो हमें वही समझ जाना चाहिए था कि न्यायालय से बड़े अधिकारी है क्योंकि इनसे पूंछने वाला कोई नहीं हैं, न्यायालय तो मेरे जैसे कमजोर लोगों के लिए निवेदन करने का एक फोरम है, जहाँ अधिकार नहीं अनुकम्पा मिलती है नहीं तो कोर्ट जिम्मेदार अधिकारी की तनख्वाह काटकर पीड़ित को देकर उसको कठोर दंड देती जिससे पीड़ित को लगता कि उसके साथ न्याय हुआ l
विजयपाल सिंह ने अपने पत्र में कहा है कि न्यायालय में तो स्थिति ठीक विपरीत है वहां तो जुर्माना भी अधिकारी से पूँछ्कर किया जाता है वह भी दुबारा वकील द्वारा शोषण और दौड़ भाग के बाद, इसे ही आज-कल न्याय के रूप में परिभाषित करने की परम्परा विकसित हो गई है, हमारी न्यायपलिका पुलिस से कम भय लोगो में उत्पन्न नही कर रही है जिसका लाभ अधिकारी उठा रहे है, क्योंकि पहले पीड़ित को न्यायालय पर इतना भ्र्रोसा था की वह अन्याय करने वाले के विरुद्ध इसका प्रयोग एक हथियार के रूप में करता था लेकिन आज तो अन्याय करने वाले अधिकारी कोर्ट की धमकी देकर पीड़ित को डराते है सीधे कहते है मैं तुम्हारा कार्य नहीं करूंगा कोर्ट चले जाओ वहां से अपना अधिकार प्राप्त कर लो, क्योंकि अधिकारी को मालूम है कि लोगों में न्यायालय का भय पुलिस के भय की तरह स्थान बना चुका है लोग न्यायालय जाने के नाम से डरने लगे है, जो लोग जाते हैं मजबूरी में जाते हैं, क्योंकि उनके सामने कोई रास्ता नहीं है इसी का परिणाम है मेरे जैसे लोगो 37 साल नौकरी के बाद भी पेंशन के लिए भटक रहे है और परिवार भुखमरी का शिकार है l पूरा विभाग जानता है कि कितने खर्च के बावजूद भी मेरा पुत्र स्वर्गवासी हो गया, प्रार्थी कर्ज से दबा हुआ है, लेकिन उसकी सुनवाई कहीं नहीं है
पीड़ित के अधिवक्ता रहे विजय कुमार पाण्डेय ने कहा कि अधिकारियों की मनमानी के कारण गरीबों का धन और समय बर्बाद हो रहा है जबकि, इस प्रकरण में किसी प्रकार की कानूनी कार्यवाही की आवश्यकता ही नहीं नहीं थी l सरकार ने अनावश्यक मुकदमों से संबंधित नीति बनाई है जिसका उद्देश्य सरकार के समय एवं लोकवित्त के अपव्यय को रोंकना है, लेकिन अधिकारियों पर न तो इसका कोई प्रभाव पड़ रहा है और न ही कोई कोई इनसे पूंछने वाला ही है कि आखिर अभी तक पेंशन क्यों नहीं जारी की गई l विजय कुमार पाण्डेय ने कहा कि पेंशन जैसे संवेदनशील विषय पर अधिकारियों ने जो रुख अपना रखा है वह सेवा-नियमावली और न्यायलय के निर्णयों के विपरीत है क्योंकि सेवानिवृति के 6 माह पूर्व ही पेशन की कार्यवाही विभाग द्वार्रा प्रारंभ कर देनी चाहिए और सेवानिवृत्ति के अगले दिन से पेंशन प्रारंभ हो जानी चाहिए लेकिन आज तक पीड़ित न्यायालय और वकील के चक्कर लगा रहा है और उसकी पेंशन नहीं जारी की गई
(विजय कुमार पाण्डेय) , अधिवक्ता