हिन्दू राष्ट्रवाद बनाम बांग्ला राष्ट्रवाद की लड़ाई में फंसा बंगाल

उत्कर्ष सिन्हा
कभी बंगाल कम्युनिष्टो के लाल झंडे से भरा रहता था लेकिन फिलहाल चल रहे लोकसभा चुनावो में बंगाल की जमीन हिंसा से लाल हो रही है।
कोलकाता में मंगलवार को अमित शाह के रोड शो के दौरान हुई हिंसा के बीच ईश्वरचंद विद्यासागर की मूर्ति तोड़े जाने पर लोगों का विरोध प्रदर्शन जारी है। वामदलों के विरोध के बाद अब तृणमूल कांग्रेस(टीएमसी) का छात्र विंग सड़कों पर उतरा है। योगी आदित्यनाथ की रैली भी नहीं हो पाई और इलेक्शन कमीशन भी बंगाल में असहाय हालत में दिखाई देने लगा है।
लेकिन इन सबके बीच बंगाल में होने वाले आखिरी चरण के चुनावो में अचानक ईश्वर चंद्र विद्यासागर महत्वपूर्ण हो गए हैं। मंगलवार की हिंसा में ईश्वर चंद्र विद्यासागर कालेज में लगी उनकी मूर्ति क्या टूटी, ममता बनर्जी की रणनीति में भी अचानक तब्दीली आ गई। ममता ने पहले भाजपा पर इस मूर्ति को तोड़ने का आरोप लगाया और बुधवार की सुबह सोशल मीडिया पर ममता सहित पूरी तृणमूल कांग्रेस के डीपी में ईश्वर चंद्र विद्यासागर की तस्वीर दिखाई देने लगी है। सत्ता का दुरूपयोग करने का आरोप झेल रही ममता बनर्जी ने आखिर ऐसा क्यों किया?
जरा ममता के ट्विटर पेज को देखिये तो उनकी रणनीति साथ हो जाएगी। काली माँ की पूजा करती तस्वीर के साथ अब ईश्वर चंद्र विद्या सागर है। एक तस्वीर उनपर हिन्दू विरोधी होने के दावे की काट है और दूसरी बंगाल की अस्मिता की। ममता इसके जरिये पूरी लड़ाई को बंगाली बनाम बाहरी बनाने में जुटी हैं।
ममता का ये कदम अनायास नहीं है। ईश्वर चंद्र विद्यासागर की तस्वीर के बहाने वे एक बार फिर से बांग्ला राष्ट्रवाद का दांव खेलने में जुट गई है। अंतिम रण की 9 सीटों पर होने वाले चुनावो के पहले ममता पूरी लड़ाई को भाजपा के हिन्दू राष्ट्रवाद बनाम बांग्ला राष्ट्रवाद की ओर ले जा रही हैं।
ममता के किले में सेंध लगाने के लिए भाजपा ने भी जम कर हिन्दू कार्ड खेला है। बीते 5 सालों से अमित शाह की टीम बंगाल में मुस्लिम तुष्टिकरण को एक बड़ा मुद्दा बनाने में लगी हुई है। दुर्गापूजा बनाम मुहर्रम का नारा योगी आदित्यनाथ भी लगते रहे हैं। अमित शाह ने तो उत्तर भारत में करीब करीब निष्प्रभावी हो चुके जय श्री राम के नारे को बंगाल में नए सिरे से प्रतीक बनाने की कोशिश की है।
भाजपा को इसका फायदा भी हुआ है, जहाँ चुनाव दर चुनाव उसके वोटो के प्रतिशत में इजाफा दिखाई दे रहा है। मगर समस्या ये है कि ममता बनर्जी के वोट भी काम होने की बजाय लगातार बढ़ रहे हैं। भाजपा – तृणमूल की इस लड़ाई में असल नुकसान वाम दलों और कांग्रेस का हुआ है।ऐसा नहीं है कि ममता पहली बार बांग्ला राष्ट्रवाद का सहारा ले रही है। स्थानीय पत्रकार जतिन डेका का कहना है कि – “नागरिकता रजिस्टर के बाद उठे बवंडर में भी ममता ने इसे बंगाली बनाम उत्तर भारतीय बना दिया था और इस के जरिये वे बंगाल में होने वाले नुकसान से बच गई। अब एक बार फिर बांग्ला राष्ट्रवाद ममता का हथियार बना है, ये कितना कामयाब होता है ये 23 मई को आने वाले नतीजे ही बताएँगे।”
बंगाल के एक कालेज में प्रोफ़ेसर शांतनु धर बताते हैं- “बांग्ला राष्ट्रवाद की जड़े बहुत मजबूत हैं और उसमें ईश्वर चंद्र विद्यासागर की भूमिका भी बड़ी रही है, बंगाल में समाज सुधार, शिक्षा, बाल विवाह और छुआछूत मिटाने में उन्होंने बहुत काम किया। बंगाल के अब तक सांप्रदायिक राजनीति से बचे रहने का एक कारण ये भी है कि बंगालियों में हिन्दू – मुसलमान के बीच शादियाँ भी बहुत होती है। यहाँ धर्म से ज्यादा बंगाली होना महत्वपूर्ण है।”
मगर ईश्वर चंद्र विद्यासागर की मूर्ति के टूटने के बाद भाजपा रक्षात्मक जरूर हो गयी है। अमित शाह लगातार कह रहे हैं कि ये मूर्ति तृणमूल के लोगो ने तोड़ी और ममता का आरोप है कि कोई बंगाली ईश्वर चंद्र विद्यासागर का अपमान नहीं कर सकता, अमित शाह ने दूसरे राज्यों से जो गुंडे बुलाये थे, वे ही बंगाल की संस्कृति को नहीं जानते और उन्होंने ही ये मूर्ति तोड़ दी।
अमित शाह और ममता में से किसकी बात बंगाल का वोटर मानेगा?

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