शंघाई. चीन के शंघाई इंटरनेशनल सर्किट पर रविवार को चाइनीज ग्रांप्री फॉर्मूला1 रेस होगी। इसमें कुल 10 टीमों के 20 ड्राइवर हिस्सा ले रहे हैं। इनमें लुइस हेमिल्टन और सेबेस्टियन वेटल भी शामिल हैं। लेकिन इन सब बातों से बढ़कर चाइनीज ग्रांप्री इसलिए और भी अहम है, क्योंकि ये फॉर्मूला1 के इतिहास की 1000वीं रेस होगी। एफ1 रेस के 69 साल के इतिहास में अब तक 999 रेस हो चुकी हैं। 1920 में यूरोपियन ग्रांप्री से मोटरगाड़ियों की रेसिंग का कॉन्सेप्ट ईजाद हुआ था। इसके बाद घरेलू स्तर पर ही इस तरह की रेस का आयोजन किया जाता था। पहली बार 1946 में फॉर्मूला1 शब्द सामने आया।
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कमीशन स्पोर्टिव इंटरनेशनल (सीएसआई) ने प्रीमियर सिंगल सीटर रेसिंग कैटेगरी के तौर पर इसकी परिभाषा दी। इसी तरह कम क्षमता वाली कारों की रेसिंग को फॉर्मूला-2 और फॉर्मूला-3 में बांटा गया। 1950 में ब्रिटिश ग्रांप्री के साथ पहली बार फॉर्मूला1 रेस का आयोजन किया गया। अमेरिका के जॉनी पर्संस ने रेस जीती। उस समय भी एफ1 रेस को लेकर इतनी दिलचस्पी थी कि 1 लाख से ज्यादा लोग रेस देखने के लिए जुटे थे। तब से अब तक 23 देशों के 105 ड्राइवर कभी न कभी एफ1 रेस जीत चुके हैं। कई ड्राइवरों ने एक बार, तो कई ने एक से ज्यादा बार रेस जीती।
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अमेरिका के चैंपियन एफ1 रेस माइकल शूमाकर ने सबसे ज्यादा 91 बार रेस जीती है। चाइनीज ग्रांप्री की बात करें तो ये रेस 2004 से होती आ रही है। सबसे ज्यादा बार चाइनीज ग्रांप्री जीतने वाले ड्राइवर लुइस हेमिल्टन (5) और सबसे ज्यादा जीतने वाली टीम मर्सिडीज (5) है। सर्किट की लंबाई 5.4 किमी और रेस की दूरी 305 किमी होती है। 56 लैप की रेस होती है। डिफेंडिंग चैंपियन सेबेस्टियन वेटल हैं।
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सबसे पहली फॉर्मूला1 रेस जून 1950 में ब्रिटेन के सिल्वरस्टोन सर्किट पर हुई थी। तब पनडुब्बी जैसी दिखने वाली सिंगल सीटर कार रेस में दौड़ती थीं, जिनके इंजन करीब 1500 सीसी के रहते थे। अब जो कारें रेस में उतर रही हैं, उनके टर्बोचार्ज इंजन होते हैं- यानी टर्बाइन जैसी ताकत वाले इंजन। कारों का 2000 मिमी का व्हीलबेस अब 3500 मिमी तक का हो चुका है। तब कारों में 12 पिस्टन और 6 सिलेंडर वाला इंजन इस्तेमाल होता था। अब वी-6 इंजन आ चुका है, जिसे सबसे कॉम्पैक्ट इंजन बताया जा रहा है। तब सिंगल प्लेट क्लच का इस्तेमाल होता था, जिसकी वजह से कार का इंजन जल्द खराब होने की संभावना रहती थी। अब कारों में मल्टी प्लेट क्लच का इस्तेमाल होता है।
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फेरारी एफ1 इतिहास की सबसे सफल टीम रही है। टीम ने 235 बार रेस जीती। इसकी वजह टीम में माइकल शूमाकर की मौजूदगी भी रही है, जो 1996 से 2006 तक फेरारी से जुड़े रहे। 2015 से सेबेस्टियन वेटल भी फेरारी टीम में हैं। 182 जीत के साथ मैक्लारेन टीम दूसरे नंबर पर और 114 जीत के साथ विलियम्स तीसरे नंबर पर है। मर्सिडीज को 89, रेडबुल को 59 जीत मिली हैं।
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जर्मनी के रेसर माइकल शूमाकर ने सबसे ज्यादा 91 बार रेस जीती है। दूसरे नंबर पर यूके के लुइस हेमिल्टन (74) और तीसरे पर जर्मनी के सेबेस्टियन वेटल (52) हैं। इसके अलावा एलेन प्रोस्ट (51) ने भी 50+ जीत हासिल की। वहीं 31 ड्राइवर ऐसे हैं, जिन्होंने सिर्फ एक बार ग्रांप्री जीती है। 33 रेसर्स ऐसे हैं, जिन्होंने 10 या उससे ज्यादा बार रेस में जीत हासिल की। फर्नांडो अलोंसो ने 32 बार रेस जीती है।
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अब तक 39 अलग-अलग देशों के ड्राइवर फॉर्मूला1 रेस में हिस्सा ले चुके हैं। सबसे ज्यादा 163 ड्राइवर ब्रिटेन ने दिए हैं। अमेरिका (158) इस मामले में दूसरे और इटली (99) तीसरे स्थान पर है। भारत के 2 रेसर एफ1 तक पहुंचे हैं- नारायण कार्तिकेयन और करुण चंदोक। कार्तिकेयन 2005 में भारत के पहले एफ1 रेसर बने थे। कुल 34 देश कभी न कभी एफ1 रेस होस्ट कर चुके हैं।