नीलम वर्मा
पेड़ों पर नई कोपलें उग आई हैं, सरसों के पीले पुष्प लहराकर मानो फाग गा रहे हैं, मंद शीतल बयार छूकर आनंद से भर रही है, गेहूं की बालियां खिलने लगी हैं, मानो प्रकृति भी रंगों के उत्सव में झूम जाने को आतुर है। मस्ती में है सारा आलम। पेड़ों पर आई नई-नवेली पत्तियों को छेड़ती हवाएं, सरसों, गेहूं की झूमती बालियां, महकता महुआ, पीपल के पत्तों के झुनझुने, ठंड से निजात पाकर चहचहाते पंछी, बौराया आम। फिज़ाओं में रंग छींटते लाल गुलमोहर, पीला अमलतास और केसरिया टेसू देख रहे हैं आप? सुन रहे हैं प्रकृति का बुलावा? जी हां! रंग और शोख़ी का त्योहार होली, आवाज़ दे रहा है, जीने का सही सलीक़ा एक बार फिर याद दिलाता हुआ।
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इंसान को प्रकृति से जोड़ते हैं ये त्योहार, ये मौसम के रंग ओढ़ते भी हैं, ख़ासतौर पर होली। बंद दरवाज़े और लिहाफ़ से बाहर निकलकर ज़रा देखें तो होली के बहाने प्रकृति आपको कैसे प्रेरित कर रही है। सारे पात शाखों से गिराकर पेड़ सिखा रहे हैं कि विपरीत परिस्थितियाें को जब अपने अनुकूल करना आपके बस में न हो तब ख़ुद को बदलें। और फिर परिस्थितियों के अनुकूल होते ही, नई शुरुआत करें। ध्यान से देखें, उस नाज़ुक हरी कोपल को और अपने अंदर नई आशा का संचार होने दें।
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नज़र को जज़्ब करने दें प्रकृति की ‘देने’ की अदा। फूल हो या फल, पेड़ भरपूर बेहिसाब देते हैं। देखा कहीं और प्रकृति-सा स्वार्थरहित, बड़े दिल वाला उदारदाता? आप सीखें ‘देना’ बिना अपेक्षा के। खुले दिल से दूसरों के लिए कुछ करके देखिए, रूहानी सुकून महसूस होगा। प्रकृति सिखाती है सिर्फ़ अपनी इच्छाएं पूरी करने में लगे इंसान सबकुछ मिल जाने के बाद भी अंदर से ख़ाली महसूस करते हैं। देना जान जाएं, तो फूलों-सा खिल उठेंगे। फूलों के बाग़-सा मन का आंगन झूम उठेगा।
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यह त्योहार आपको आमंत्रित करता है। बाहर निकलें और फिर प्रकृति की तरह भरपूर जिएं, जैसे एक बच्चा जीता है। अपने अंदर के बच्चे को जी लेने दें। अपनों के बीच, हंसें खिलखिलाएं, ठहाके लगाएं, शैतानियां करें, नाचें-गाएं। यही सबकुछ तो समेेटे है होली का त्योहार। टोली बनाएं, कहीं इकट्ठा हो जाएं। सारे कामकाज भूलें, बस एक दूसरे का सान्निध्य आनंद लें। बोन-फायर। जी हां, यह तो शगल है आज का। हल्की ठंड में आग की गर्माहट जो आपके रिश्तों में भी गर्माहट ले आएं।
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रंग-गुलाल बरसाएं, गले लग जाएं। जो बात हज़ार शब्द न कह सके, एक बार गले लगकर या फिर सिर्फ़ यही कहकर जतानी हो कि आप मेरे लिए महत्वपूर्ण हैं, तो इससे अच्छा मौक़ा और कब होगा? बच्चों की तरह बेपरवाह होकर गाना, नाचना इस त्योहार का रिवाज़ है। यह त्योहार न सिर्फ़ आपसी भेद मिटाता है बल्कि बड़ों को फिर से बच्चा बन जाने का मौक़ा भी देता है। तो आज जी लीजिए बिल्कुल छोटे बच्चे की तरह। ढोलक की थाप, बेसुरे दोस्तों के साथ, होली का सुरूर और आप।
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होली पर आप से दरकार है शरारतों की भी। जानते हैं न आप खिलंदड़पना तनाव दूर करने में कितना कारगर होता है? हल्की-फुल्की चुहल का नतीजा, सकारात्मक माहौल और बहुत-सी मुस्कराहटें भी हो सकता है। तो होली पर हो लें हल्के। सनद रहे, मज़ाक करने और मज़ाक उड़ाने में फ़र्क़ होता है। अच्छे चुटकुले, ख़ुद पर बीती मज़ेदार घटनाएं, पुरानी बातें, जो आज भी हंसाती हैं, प्यारभरी नोंक-झोंक, इस त्योहार की जान हैं।