शादी जीवन-भर का साथ है, शिक़ायत नहीं

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लाइफस्टाइल डेस्क. विवाह संस्कार दो परिवारों को जोड़ता है, दो लोग सारी ज़िंदगी साथ रहने की क़सम खाते हैं और यह जन्म-जन्म का बंधन है – इस तरह की और भी कई बातें हमारे देश में शादी के बारे में कही जाती हैं। लेकिन कुछ लोग चाहे पति हो या पत्नी अपने रिश्ते को लेकर कुछ नाख़ुश से हो जाते हैं। ख़ासतौर पर पति, जो पत्नी का फोन आते ही कुंवारे दोस्तों से कहने लगते हैं कि ‘भई, बहुत अच्छी ज़िंदगी जी रहे हो तुम लोग। इस झंझट में कभी न फंसना।’ उधर कुछ पत्नियां भी ‘इनका कोई क्या करे?’ जैसी शिकायतें दबी ज़बान से करने लगती हैं। समस्याएं सबकी अलग-अलग होंगी, लेकिन वो चंद बातें जो हर रिश्ते के आधार में होती हैं, उनका केवल हम इन शिकायत करने वालों के लिए ज़िक्र करेंगे।

इन बातों का रखें ध्यान

  • ध्यान दीजिएगा कि जो सलीके और समझौते अविवाहित होने पर अपने दोस्तों या अन्य रिश्तों के मामले में हमें याद रहते हैं, शादी के बाद वही हम अपने सबसे ख़ास रिश्ते के लिए भूल जाते हैं।
  • जब बहन, भाई, भाभी, पिता, मां, दोस्त कोई काम करने से मना कर देते हैं, तो बुरा नहीं लगता, लेकिन वही इंकार जीवनसाथी की तरफ़ से आए, तो बहुत बड़ा मुद्दा क्यों बन जाता है?
  • कोई और कैसा दिख रहा है, पार्टी के लिए क्या पहन रहा है, इस मामले में हम अपनी मर्ज़ी अमूमन नहीं थोपते, फिर शादी के बाद जीवनसाथी को क्यों मजबूर करते हैं?
  • घर में मां, भाभी, बहन, भाई, पिता की मदद करने वाले इंसान, पति की भूमिका में आते ही एकाएक हाथ-पांव समेट कर बैठ जाते हैं। आश्चर्य की बात है ना!
  • दोस्त की पसंद-नापसंद पर िटप्पणी करने, उनका मज़ाक उड़ाने या उनके तैयार होने में लगने वाले समय आदि का मज़ाक उड़ाने का ख़तरा आप क़तई मोल नहीं लेते, तो यही बात पत्नी के मामले में क्यों भुला दी जाती है?
  • अपने आपको व्यस्त और मस्त रखने वाली स्त्री शादी होते ही अपनी हर ख़ुशी, हर काम के लिए पति की राह तकने लगती है। इसी सिलसिले में शुरू होते हैं, ‘कहां हो’ वाले फोन कॉल्स। साथ का मतलब हर वक़्त का साथ नहीं हो सकता। इससे निजता की ख़ुशी नहीं मिलती, नतीजतन खीझ उपजती है। जीवनसाथी को स्पेस देना, उसके समय का मान करना, दोनों का एक-दूजे की निजता का ख़्याल और मर्ज़ी की अहमियत समझना आपकी शिकायतों को दूर रख सकता है।
  • जिनकी शादी हो चुकी है, उनकी ज़िंदगी से तुलना करते समय, केवल निबाह की मिसालों को न देखें, समझौतों की स्थितियों को भी देखें।
  • हर शादी में निबाह की विशेष स्थितियां हो सकती हैं और समझौतों की आम स्थितियां भी। शिकायत करने वाले अमूमन ख़ास स्थितियों को मिसाल मान कर ख़ुद से तुलना कर बैठते हैं और अपने रिश्ते में कमी ढूंढ लेते हैं।
  • सच तो यह है कि रिश्ते दो-तरफ़ा निबाह से ही चलते हैं। न तो कोई एक समझौते करे, तो काम चलता है और न ही दोनों का अहं उठाकर चलना कोई हल है।
  • अगर रिश्तों की ख़लिश या शिकायतें ही पाले रहेंगे, तो निबाह और रिश्ते की मज़बूती पर असर पड़ेगा।

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