लाइफस्टाइल डेस्क. शरीर पर टैटू गुदवाने का ट्रेंड 2 हजार से भी ज्यादा पुराना है। कभी कैक्टस के कांटे से टैटू गुदवाने का भी चलन था, इसका खुलासा पुरातत्वविदों ने किया है। जर्नल ऑफ आर्कियोलॉजिकल साइंस में प्रकाशित शोध के मुताबिक, टैटू बनाने में पहले स्कनबुश पौधे की लकड़ी से बनी स्टिक और कैक्टस के कांटे का इस्तेमाल किया जाता था। पुरातत्वविदों के मुताबिक, प्राचीन समय में टैटू बनाने वाली स्टिक की खोज करीब 40 साल पहले हुई थी लेकिन इसका इस्तेमाल टैटू बनाने के लिए होता था यह जानकारी हाल ही में सामने आई है।
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शोधकर्ता एंड्रयू गिलरिथ के मुताबिक, यह इंस्ट्रूमेंट पुरातत्व से जुड़ी खोज में मिला था। एंड्रयू की हालिया रिसर्च के मुताबिक, करीब 1 हजार से अधिक सालों तक टैटू बनाने में इसकी तकनीक का इस्तेमाल किया जाता था। 3.5 इंच का यह टूल स्कंबुश की लकड़ी से बना है इसके एक सिरे पर कैक्टस का कांटा लगा हुआ है। वाशिंगटन स्टेट यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञों ने अत्याधुनिक तकनीक की मदद से 40 साल पहले खोज में मिली स्टिक का अध्ययन किया तो सामने आया कि कैक्टस के कांटे में लगे पिगमेंट का इस्तेमाल टैटू बनाने में किया जाता था।
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एंड्रयू की रिसर्च प्रागैतिहासिक समाज के कल्चर और तौर-तरीकों के बारे में बताती है जिसे समय के साथ भुला दिया गया। एंड्रयू का कहना है कि अमेरिका के दक्षिण और पश्चिम में रहने वाले प्रागैतिहासिक काल के लाेगों की टैटू बनाने की कला के बारे में बहुत कुछ नहीं लिखा गया है। ऐसा इसलिए है क्योंकि सीधे तौर पर इसका कोई प्रमाण नहीं मिला है। पुराने इंस्ट्रूमेंट की मदद से ऐसी कई जानकारी मिलती हैं जिससे अब तक लोग अंजान थे।
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पुरातत्वविदों के मुताबिक, अमेरिका में 2 हजार साल पहले कैक्टस के कांटे का इस्तेमाल स्किन में छेद करने और स्टिक का प्रयोग स्याही लगाने में किया जाता था। जिस क्षेत्र में पुराने अमेरिकी पूर्वज बास्केटमेकर युग द्वितीय के दौरान इसका प्रयोग करते थे उसे अब यूटा के नाम से जाना जाता है। टैटू कई संस्कृतियों का हिस्सा रहा है लेकिन दुनियाभर में इसकी उत्पति आज भी रहस्य बनी हुई है।
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दक्षिणी-पश्चिमी अमेरिका में संरक्षित इंसानों के शरीर पर किसी तरह का टैटू नहीं पाया गया है। लेकिन पुरातत्वविज्ञानियों का कहना है कि टैटू की शुरुआत का पता इसके तैयार करने वाले टूल की मदद से लगाया जा सकता है। एरिजोना और न्यू मैक्सिको में पहले ही कैक्टस के कांटों से टैटू बनाने के पुरात्त्विक प्रमाण मिल चुके हैं। हालिया मिले प्रमाण 1100 और 1280AD के दौर के हैं।