जय-जयकार भी सुन ली खौलते तेल में भी कुदाया- कुमार विश्वास की व्यंग्य शृंखला

[ad_1]


‘रूठे रूठे पिया, मनाऊं कैसे’ गीत गुनगुनाते हुए हाजी दरवाजा पीट रहे थे। दरवाजा खोला तो बाकायदा ठुमके लगाते हुए किसी कुशल नट की भंगिमाओं के साथ प्रवेश किया। मैं हंसते-हंसते दोहरा हो गया। संभलकर मैंने पूछा, ‘कौन-सी नौटंकी कंपनी ज्वाइन कर ली हाजी? काम-धंधा तो तुम्हारा ठीक-ठाक ही चल रहा था, अभी-अभी कुंभ में आस्थावानों को आस्था-स्नान और सियासत वालों का सियासी कौआ-स्नान करवाकर निपटे हो। अभी तो नोट गिनते हाजी, कहां ठुमका-वुमका लगाते घूम रहे हो?’ हाजी अदा से आंखें मटकाते हुए बोला, ‘अजी हमारी कहां औकात नौटंकी कंपनी ज्वाइन करने की। अभी तो एक से एक अदाकार पड़े हैं नौटंकी करने वाले। नाम गिनवाऊं?’

मैं समझ गया कि वे बात को किस तरफ ले जाएंगे। मैं दूसरी तरफ ले जाना चाह रहा था। मैंने पूछा, ‘वो सब छोड़ो हाजी, ताजा हाल बताओ हवा का। किधर को मुड़ी अब?’ हाजी बोले, ‘हवा तो अभी कई बार मुड़ेगी महाकवि! लेकिन जिसकी हवा निकल गई, उसकी तो अब न भरने की। अबके तो ऐसी निकली है कि अगला जिसके खिलाफ डंडा लेकर दौड़ा था, अब उसी के आगे दंडवत पड़ा है कि गठबंधन कर लो। ऐसे में कांग्रेस भी मोगैम्बो हुआ पड़ा है कि जय-जयकार भी सुन ली और फिर खौलते तेल में कुदा भी दिया।

इधर तुम्हारे वाले बेचारे हाथ में एक पर्ची पर छह नाम लिए पहचान कौन- पहचान कौन खेल रहे हैं। च्च… च्च… च्च बताओ! इतना जालिम भी कोई होता है भला कि मना-मनाकर हार गए और अगला बेदर्दी बालमा हो रिया है!’ मैंने खुद को ज्यादा रोकने की कोशिश नहीं की, ‘देखो हाजी! अब ये सियासत क्या-क्या दिन दिखाती है, यह तो तुम्हें पता भी है। हाजी ने पूरी बात गंभीरता से सुनी। फिर बोले, ‘आज तो खरी-खरी कही तुमने, तुम्हारे ही जन्मदिन पर किसी के मुंह से ये शेर सुना था।’

‘जो हवाएं बदलने निकले थे
वो हवाओं के यार बन बैठे’

Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today


डॉ. कुमार विश्वास, व्यंग्यकार

[ad_2]
Source link

Translate »