लाइफस्टाइल डेस्क. अमेरिका की नालियों में कनाडा के जंगल बह रहे हैं। अमेरिका में बढ़ते टॉयलेट पेपर के इस्तेमाल का सबसे ज्यादा असर कनाडा के बोरियल जंगल और जलवायु परिवर्तन पर दिख रहा है। इसकी पुष्टि नेशनल रिसोर्स डिफेंस काउंसिल और स्टैंड अर्थ की रिपोर्ट में हुई है।
-
रिपोर्ट के मुताबिक, टॉयलेट पेपर का निर्माण करने वाली बड़ी कंपनियां इसे बनाने में टिकाऊ चीजों का इस्तेमाल करने से बच रही हैं जिसका असर जलवायु परिवर्तन और कनाडा के जंगल पर पड़ रहा है। पेड़ों के कटने का कारण वर्जिन पल्प है जिसका इस्तेमाल टॉयलेट पेपर को सॉफ्ट बनाने में किया जा रहा है।
-
बोरियल जंगल कनाडा के 60% हिस्से में फैला हुआ है और पेड़ों की 600 तरह की प्रजातियां पाई जाती हैं। यह हर साल ढाई करोड़ गाड़ियों से निकलने वाले कार्बन को सोखने में सक्षम है। 2.8 करोड़ एकड़ में फैले बोरियल जंगल में पेड़ों के कटने की संख्या साल दर साल बढ़ती जा रही है।
-
रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिकी लोग टॉयलेट पेपर बनाने वाली बड़ी कंपनियों के विज्ञापनों से काफी प्रभावित हैं। इस कारण पूरी दुनिया के मुकाबले अमेरिकन एक खास सॉफ्ट टॉयलेट पेपर इस्तेमाल करना पसंद करते हैं। एक्सपोर्ट किए जाने वाले कनाडा के वन उत्पादों में से 23% हिस्सा टॉयलेट पेपर का है।
-
रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिकी विशेष रूप से इस संकट के लिए दोषी हैं। वे दुनिया की महज 4 फीसदी आबादी के लिए टिश्यू पेपर बनाते हैं फिर भी वैश्विक खपत का 20 फीसदी टिश्यू पेपर वे ही इस्तेमाल करते हैं। चार सदस्यों वाला एक अमेरिकन परिवार सालभर में करीब 45 किलो टॉयलेट पेपर कर इस्तेमाल करता है।
-
रिपोर्ट के अनुसार, सभी कंपनियां इसके लिए जिम्मेदार नहीं है, कुछ ऐसी भी हैं जो रिसाइकल मटेरियल से टॉयलेट पेपर का निर्माण कर रही हैं। कम सॉफ्ट होने के कारण ऐसे पेपर का इस्तेमाल ऑफिस, फ्लाइट जैसी जगहों में किया जा रहा है।