मुंबई. सेबी ने ब्रोकर्स के लिए फीस घटाने का फैसला किया है। ब्रोकर के लिए हर एक करोड़ रुपए के ट्रांजेक्शन पर फीस 15 रुपए से 33.3% घटाकर 10 रुपए की गई है। एग्री कमोडिटी डेरिवेटिव्स के लिए फीस 15 रुपए की बजाय सिर्फ एक रुपया होगी।
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अगर ब्रोकर्स ने इसका फायदा निवेशकों को दिया, तो उनके लिए भी निवेश करना सस्ता होगा। हालांकि, अंतर बहुत मामूली होगा। सेबी बोर्ड ने शुक्रवार को यह फैसला किया। ये बदलाव 1 अप्रैल 2019 से लागू होंगे।
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कमोडिटी डेरिवेटिव मार्केट का दायरा बढ़ाने के लिए सेबी ने म्यूचुअल फंड और पोर्टफोलियो मैनेजर को इसमें ट्रेडिंग की अनुमति दी है। इसके लिए उन्हें अलग फंड मैनेजर नियुक्त करना पड़ेगा।
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सेबी की एडवाइजरी कमेटी ने घरेलू और विदेशी संस्थागत निवेशकों को कमोडिटी में डेरिवेटिव ट्रेडिंग की अनुमति देने की सिफारिश की थी। पहले चरण में म्यूचुअल फंडों को स्वीकृति दी गई है। दूसरे चरण में बैंकों, बीमा कंपनियों और विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों को अनुमति दी जाएगी।
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म्यूचुअल फंडों द्वारा डेट इंस्ट्रूमेंट के वैल्यूएशन के नियम भी आसान किए गए हैं। इसका मकसद आईएल एंड एफएस जैसे संकट की परिस्थिति में निवेशकों को बचाना है।
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म्यूचुअल फंडों की संस्था एम्फी वैल्यूएशन एजेंसी नियुक्त करेगी। कोई म्यूचुअल फंड निवेश के ग्रेड से नीचे के डेट में पैसे लगाता है तो यह एजेंसी उसका वैल्यूएशन करेगी। अगर म्यूचुअल फंड की वैलुएशन इससे अलग हुई तो उसे इसकी वजह बतानी पड़ेगी।
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स्टार्टअप कंपनियों की लिस्टिंग आसान बनाने के लिए भी सेबी ने कई फैसले किए। स्टार्टअप्स की लिस्टिंग इनोवेटर्स ग्रोथ प्लेटफॉर्म नाम के एक्सचेंज में होती है। इसमें मान्यता प्राप्त निवेशक ही पैसे लगा सकते हैं। सेबी ने निवेशकों के लिए मान्यता लेना आसान कर दिया है।
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एक्रेडिटेड इन्वेस्टर बनने के लिए डीमैट अकाउंट वाले निवेशक को डिपॉजिटरी या स्टॉक एक्सचेंज के पास आवेदन करना पड़ेगा। जांच के बाद तीन साल के लिए मान्यता मिलेगी। विस्तृत नियम बाद में जारी होंगे।
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सूत्रों के अनुसार सालाना कम से कम 50 लाख रुपए कमाई और 5 करोड़ रुपए नेटवर्थ वालों को ही मान्यता मिलेगी। कंपनियों के लिए कम से कम 25 करोड़ रुपए नेटवर्थ जरूरी होगी।
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सेबी ने दिसंबर में भी स्टार्टअप्स की लिस्टिंग के नियम आसान किए थे। लेकिन बहुत कम कंपनियों ने इसमें रुचि दिखाई थी। इसलिए नियम और आसान बनाने का फैसला किया गया।
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रियल एस्टेट और इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट के जरिए फंड जुटाने के नियम भी बदले गए हैं। ये ट्रस्ट कम से कम 100 यूनिट के लॉट में एलॉटमेंट करेंगे। इन्फ्रा ट्रस्ट का एक लॉट कम से कम एक लाख और रियल एस्टेट ट्रस्ट का 50,000 रुपए का होगा।
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बाजार से फंड जुटाने के ये साधन 2014 में ही लॉन्च किए गए थे। लेकिन अभी तक सिर्फ तीन इन्फ्रा ट्रस्ट के जरिए 10,000 करोड़ जुटाए गए हैं। अब तक एक भी रियल एस्टेट ट्रस्ट लॉन्च नहीं हुआ है।
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कर्ज की रिस्ट्रक्चरिंग के दौरान अगर बैंकों और वित्तीय संस्थानों को कंपनी के शेयर जारी किए जाते हैं तो उन्हें ओपन ऑफर लाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। सेबी ने इसकी छूट दे दी है।
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मौजूदा नियमों के अनुसार अगर कंपनी में नए निवेशक की होल्डिंग 25% से ज्यादा होती है तो उसे बाकी शेयरधारकों से शेयर खरीदने के लिए ओपन ऑफर लाना पड़ता है। सेबी के अनुसार ओपन ऑफर से छूट उन्हीं मामलों में मिलेगी जिन्हें दिवालिया कानून (आईबीसी) के तहत मंजूरी मिली हो।