डांगियावास/जोधपुर(सांवर चौधरी).भारत-चीन के बीच हुए 1962 के युद्ध में शहादत देने वाले भीकाराम ताडा की वीरांगना 57 साल बाद 27 फरवरी को अपने सुहाग के प्रतीकों का समर्पण करेंगी। वह भी उनकी मूर्ति का अनावरण कर उसके चरणों में। इतने बरसों तक वह अपने पति काे जिंदा मानते हुए सुहागन बनी रहीं। शायद इसलिए भी कि शहीद मरते नहीं, अमर रहते हैं और दूसरा इसलिए कि उस दौर में शहीदों के पार्थिव देह कभी उनके घरों तक पहुंचते ही नहीं थे। जब देह के दर्शन नहीं हुए तो कोई पत्नी उन्हें जिंदा नहीं माने यह कैसे मान लें।
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वीरांगना का यह जज्बा भले ही गांव व समाज को अखरा होगा, परंतु उन्होंनेइन्हीं भावनाओं से अपने दो छोटे बच्चों को पिता की वीरता के किस्से सुना कर बड़ा ही नहीं किया, दोनों को देश की सेवा में समर्पित कर दिया। एक आर्मी में और दूसरा नेवी में भर्ती हो गया। तीसरी पीढ़ी का पौत्र भी भारतीय सेना में भर्ती होकर देश सेवा कर रहा है। ऐसी वीरांगना का ध्येय संभवत: अब पूरा हो गया तब उन्होंने अपने पति को शहीद मान कर उनकी मूर्ति गांव में लगवाई, अब दो दिन बाद वह खुद इस मूर्ति का अनावरण करेंगी और वहीं पर अपना सुहाग समर्पित कर देंगी।
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पीपाड़ तहसील के खांगटा गांव के भीकाराम ताडा का जन्म 1 जुलाई 1943 को हुआ था। छोटी उम्र में ही उनकी शादी गट्टू देवी के साथ हो गई थी। साढ़े 18 साल की उम्र में 1961 में आर्मी के पायनियर कोर बेंगलुरू में भर्ती हो गए।एक साल बाद ही उन्हें 1962 में चीन से हुई जंग में जाना पड़ा, लेकिन 8 सितंबर 62 को उन्होंने देश के लिए शहादत दे दी। शहादत के बाद पार्थिव देह घर नहीं आयाथा। इस पर गट्टू देवी ने अपना सुहाग उतारने से मना कर दिया कि मेरे पति जिंदा हैं और एक दिन जरूर आएंगे।
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मंगलवार को शहीद की मूर्ति का अनावरण
बरस बीत गए, सेना ने भी भीकाराम ताडा को शहीद मान लिया, लेकिन वीरांगना ने कभी नहीं स्वीकारा कि पति शहीद हो गए हैं। 57 साल के लंबे इंतजार के बाद आखिर गट्टू देवी ने भी अब 75 वर्ष की उम्र में यह मान लिया कि अब मेरे पति नही आ सकते, मैं भी उन्हें शहीद मानती हूं। उनके कहने पर गांव के चौराहे पर शहीद भीकाराम ताडा की मूर्ति लगाई गई है। गांव के जनप्रतिनिधि प्रकाश बोराणा ने बताया कि मंगलवार शाम को भव्य जागरण का आयोजन होगा व 27 फरवरी बुधवार को गट्टू देवी के हाथों मूर्ति का अनावरण किया जाएगा। इस कार्यक्रम में जोधपुर आर्मी की ओर से गार्ड ऑफ ऑनर दिया जाएगा। साथ ही कई जनप्रतिनिधि व ग्रामीण मौजूद रहेंगे।
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तानों से नहीं टूटी वीरांगना, अब भी खुद ही समर्पण करेंगी
परिजनों ने बताया कि गट्टू देवी ने पति की याद सहेजे हुए 57 वर्ष तक अपना सुहाग नहीं उतारा। इस दौरान इनको हमेशा गांव के लोगों का ताना सुनना पड़ता था। लोग कहते थे कि पति तो शहीद हो गया है ये सुहाग क्यों नहीं उतारतीं? इस तरह के तानों के बाद भी गट्टू देवी ने खुद को सुहागन बनाए रखा। लंबे इंतजार के बीच उम्र के आखिरी पड़ाव में उन्होंने पति को शहीद मान लिया… बस दो दिन और रहे हैं जब वह पति की मूर्ति के समक्ष सुहाग प्रतीकों का समर्पण कर देंगी। -
बेटों ने बताया कि मां कहती थी कि फौज में जाने के बाद उनके पिता सिर्फ एक बार घर आए थे, जंग छिड़ी तो लड़ने चले गए। फिर लौट कर नहीं आए। घर में बिताएं उन्हीं दिनों की स्मृतियां बच्चों को किस्सों में सुनाती रहती थीं। वह पिता बन बच्चों को बड़ा करती रही। बच्चों को अपने पिता की वीरता और देश भक्ति की कहानियां सुनाती थीं। मां की प्रेरणा ने बच्चों में भी देश भक्ति का जज्बा भरा। पहले बड़ा बेटा बक्साराम आर्मी में भर्ती हुआ, फिर छोटा बेटा श्रीराम भी नौ-सेना में भर्ती होकर देश सेवा करने लगा। पूरा घर ही जब देश-प्रेम में समर्पित था तो उनका पौत्र रामनिवास आर्मी में शामिल हो दुश्मनों के दांत खट्टे कर रहा है।