लाइफस्टाइल डेस्क. जीव संरक्षणकर्ताओं ने विलुप्त माने जाने वाले 100 साल पुराने विशालकाय मादा कछुए को ढूंढ निकाला है। इस बड़े आकार वाले कछुए को केलोनोइडिस फेंटेस्टिकस कहा जाता है। जिसे आखिरी बार 1906 में देखा गया था। संरक्षणकर्ताओं के मुताबिक, यह प्रजाति प्रशांत महासागर के एक द्वीपसमूह के दक्षिणी क्षेत्र में स्थित फर्नेनडिना आईलैंड पर पाई गई है। जिसे नाव की मदद से सांता क्रूज आईलैंड के संरक्षण केंद्र लाया गया है। यह आईलैंड दक्षिण अमेरिका के इक्वाडोर प्रांत के गैलापेगोस द्वीपीय क्षेत्र में स्थित है।2017 में इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) ने इसे बेहद विलुप्तप्राय: जीवों की श्रेणी में शामिल किया था।
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जीवों के संरक्षण के लिए काम करने अमेरिकी संस्था गैलापेगोस संरक्षण के वाशिंगटन टेपिया के कहते हैं कि इस प्रजाति के कछुए की उम्र 100 साल भी ज्यादा है। यह बहुत पुराना जीव है। इक्वाडोर के गैलापेगोस आईलैंड को खासतौर पर बेहद अलग तरह के जीवों और पौधों के लिए जाना जाता है। इसे वैज्ञानिक चार्ल्स डार्विन तक को प्रेरित किया था और जैव विकास के अध्ययन में उन्होंने 1859 में इसकी प्रजाति की उत्पत्ति का जिक्र भी किया था।
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इक्वाडोर के पर्यावरण मंत्री मार्सेलो मेटा ने ट्विटर पर 100 साल पुराने कछुए की खोज की घोषणा की है। मंत्रालय के आधिकारिक बयान के अनुसार, संरक्षणकर्ता उम्मीद कर रहे हैं इसकी दूसरी प्रजातियां भी जल्द मिल जाएंगी। इन्हें भी आईलैंड पर ट्रैक किया जा रहा है। कछुए की केलोनोइडिस फेंटेस्टिकस प्रजाति खासतौर पर फर्नेनडिना में पाई जाती है। जहां अक्सर ज्वालामुखी फटने की घटनाएं सामने आती रहती हैं।
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कछुआ विलुप्त प्रजाति का ही है इसकी जांच के लिए उसका जेनेटिक टेस्ट किया जाएगा। गैलापेगोस में इस कछुए की करीब 15 प्रजातियां थीं जिनमें से यह एक है। दो पहले ही खत्म हो चुकी हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि हो सकता है ज्वालामुखी से निकलने वाले लावे के बहाव के कारण इनकी प्रजातियां बिछड़ गई हों।
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18 वीं और 19वीं शताब्दी में इनकी संख्या में तेजी से कमी आई। कछुए की ये प्रजाति लंबे समय तक बिना खाना और पानी के जीवित रह सकती है। इस कारण नाविक इसे अपने साथ ले जाते थे और जरूरत पड़ते पर खाते थे। आईलैंड पर मौजूद चूहे, सुअर और कुत्ते अक्सर इनके अंडों को खा जाते थे इस कारण भी इनकी संख्या सीमित होती गई और विलुप्त जीवों की श्रेणी में मान लिया गया।