नेशनल डेस्क. पुलवामा हमले के बाद पहली बार मंगलवार को पाकिस्तानी पीएम इमरान खान ने बयान दिया है। उन्होंने कहा कि भारत पर उन पर हमले में शामिल हाेने का आरोप लगा रहा है, जो सरासर बेबुनियाद है। साथ ही उन्होंने कहा है कि भारत लगातार पाकिस्तान पर जंग करने के हालत पैदा कर रहा है। अगर भारत ने जंग शुरू की तो पाकिस्तान भी इसका जवाब देगा। हालांकि ये बयान देते वक्त पाक पीएम इतिहास भूल गए थे, जब 1971 में पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में जंग के दौरान 93 हजार पाक सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने सरेंडर कर दिया था।
एक साथ 93 हजार सैनिक बंदी
– सोलह दिसम्बर 1971 को पूर्वी पाकिस्तान जनरल नियाजी ने अपने 93 हजार सैनिकों के साथ उस वक्त के पूर्वी पाकिस्तान में भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था।
– युद्ध बंदियों पर बांग्लादेश में किसी तरह का हमला होने की आशंका को ध्यान में रखते हुए भारतीय सेना सभी को विशेष रेल के माध्यम से यहां ले आई। इन सभी को बिहार में विशेष शिविरों में रखा गया। 21 दिसम्बर 1971 को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने प्रस्ताव पारित कर सभी को रिहा करने को कहा।
मान्यता बगैर छोड़ने को तैयार नहीं था बांग्लादेश
– भारत सरकार ने रिहा करने से इनकार करते हुए कहा कि इस युद्ध में बांग्लादेश भी एक पक्ष था। इस कारण उसकी सहमति के बगैर इन्हें रिहा नहीं किया जाएगा। बांग्लादेश के राष्ट्रपति शेख मुजीबर ने स्पष्ट कर दिया कि पाकिस्तान की तरफ से उनके देश को मान्यता मिले बगैर इन्हें नहीं छोड़ा जाएगा।
– पाकिस्तान ने मान्यता देने से इनकार करते हुए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत दबाव बनाया, लेकिन भारत सरकार अपने फैसले पर अडिग रही। भारत-पाकिस्तान के बीच दो जुलाई 1972 को हुए शिमला समझौते में पाकिस्तान के झुकने के पीछे इन बंदी सैनिकों की बड़ी भूमिका रही।
बंदी सैनिक रेडियो पर भेजते थे संदेश
– उस समय ऑल इंडिया रेडियो पर पाक सैनिक अपना परिचय देते हुए अपने परिजनों के नाम संदेश प्रसारित करते थे कि वे यहां सकुशल है। बंदी बनाए गए सैनिकों के परिजनों ने पाकिस्तान सरकार पर दबाव बढ़ा। पाकिस्तान के रावलपिंडी में पांच दिसंबर 1972 को इन सैनिकों ने बड़ा प्रदर्शन कर बांग्लादेश को मान्यता देने की मांग की ताकि सभी को रिहा कराया जा सके।
– पाकिस्तान का कहना था कि युद्ध के समय बांग्लादेश का अस्तित्व ही नहीं था। ऐसे में ये सैनिक अपने देश की रक्षा कर रहे थे। ऐसे में इनकी रिहाई में बांग्लादेश को पक्ष बनाना उचित नहीं होगा। बांग्लादेश ने मांग की कि सभी बंदी सैनिक उसे सौंप दिए जाए ताकि उन पर मुकदमा चलाया जा सके। पाकिस्तान ने इसका जोरदार विरोध किया।
आखिरकार प्रदान की मान्यता
– पाकिस्तान की संसद ने दस जुलाई 1973 को एक प्रस्ताव पारित कर भुट्टो को अधिकृत किया कि वे बांग्लादेश को मान्यता प्रदान करने का फैसला करे, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया।
– आखिरकार पाकिस्तान ने 22 फरवरी 1974 को बांग्लादेश को मान्यता प्रदान कर दी। इसके बाद 9 अप्रेल 1974 को तीनों देशों के बीच दिल्ली में समझौता हुआ।
– बांग्लादेश ने बंदियों पर मुकदमा चलाने का फैसला वापस लिया। अप्रेल 1974 के अंत तक सारे बंदियों को भारत ने पाकिस्तान को सौंप दिया।
– भारत को करीब ढाई वर्ष तक बंदी बना कर रखे गए पाकिस्तानी सैनिकों के खानपान पर भारी-भरकम राशि खर्च करनी पड़ी।
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