प्रेम दिवस पर गुलज़ार की त्रिवेणी से बेहतर नज़्म क्या होगी जो सीधे मन को छूती और सोचने पर भी मजबूर कर देगी है। गुलज़ार स्वयं कहते हैं – शुरू शुरू में तो जब यह फॉर्म बनाई थी, तो पता नहीं था यह किस संगम तक पहुँचेगी – त्रिवेणी नाम इसीलिए दिया था कि पहले दो मिसरे, गंगा-जमुना की तरह मिलते हैं और एक ख़्याल, एक शेर को मुकम्मल करते हैं लेकिन इन दो धाराओं के नीचे एक और नदी है – सरस्वती । जो गुप्त है नज़र नहीं आती; त्रिवेणी का काम सरस्वती दिखाना है । तीसरा मिसरा कहीं पहले दो मिसरों में गुप्त है, छुपा हुआ है ।
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