सोनभद्र। नगर स्थित आरटीएस क्लब में संगीतमयी रामकथा के तीसरे दिन कथावाचक पं० दिलीप कृष्ण भारद्वाज द्वारा श्री राम जन्म की कथा सुन भक्त भाव- विभोर हो गये।मानस मर्मज्ञ पं० दिलीप कृष्ण भारद्वाज ने प्रभु श्री राम के जन्म में उनके लीला का बखान करते हुए कहा कि…….
बार बार कौसल्या बिनय करइ कर जोरि।
अब जनि कबहूँ ब्यापै प्रभु मोहि माया तोरि॥
कौसल्याजी बार-बार हाथ जोड़कर विनय करती हैं कि हे प्रभो! मुझे आपकी माया अब कभी न व्यापे।
बालचरित हरि बहुबिधि कीन्हा,अति आनंद दासन्ह कहँ दीन्हा॥
कछुक काल बीतें सब भाई,बड़े भए परिजन सुखदाई॥
भगवान ने बहुत प्रकार से बाललीलाएँ कीं और अपने सेवकों को अत्यन्त आनंद दिया। कुछ समय बीतने पर चारों भाई बड़े होकर कुटुम्बियों को सुख देने वाले हुए।
चूड़ाकरन कीन्ह गुरु जाई।
बिप्रन्ह पुनि दछिना बहु पाई॥
परम मनोहर चरित अपारा।
करत फिरत चारिउ सुकुमारा॥
तब गुरुजी ने जाकर चूड़ाकर्म-संस्कार किया। ब्राह्मणों ने फिर बहुत सी दक्षिणा पाई। चारों सुंदर राजकुमार बड़े ही मनोहर अपार चरित्र करते फिरते हैं।
मन क्रम बचन अगोचर जोई। दसरथ अजिर बिचर प्रभु सोई॥
भोजन करत बोल जब राजा। नहिं आवत तजि बाल समाजा॥
जो मन, वचन और कर्म से अगोचर हैं, वही प्रभु दशरथजी के आँगन में विचर रहे हैं। भोजन करने के समय जब राजा बुलाते हैं, तब वे अपने बाल सखाओं के समाज को छोड़कर नहीं आते।
कौसल्या जब बोलन जाई।
ठुमुकु ठुमुकु प्रभु चलहिं पराई॥
निगम नेति सिव अंत न पावा। ताहि धरै जननी हठि धावा।
कौसल्या जब बुलाने जाती हैं, तब प्रभु ठुमुक-ठुमुक भाग चलते हैं। जिनका वेद ‘नेति’ (इतना ही नहीं) कहकर निरूपण करते हैं और शिवजी ने जिनका अन्त नहीं पाया, माता उन्हें हठपूर्वक पकड़ने के लिए दौड़ती हैं।
धूसर धूरि भरें तनु आए।
भूपति बिहसि गोद बैठाए॥
वे शरीर में धूल लपेटे हुए आए और राजा ने हँसकर उन्हें गोद में बैठा लिया।
भोजन करत चपल चित इत उत अवसरु पाइ।
भाजि चले किलकत मुख दधि ओदन लपटाइ।।
भोजन करते हैं, पर चित चंचल है। अवसर पाकर मुँह में दही-भात लपटाए किलकारी मारते हुए इधर-उधर भाग चले।
बालचरित अति सरल सुहाए। सारद सेष संभु श्रुति गाए॥
जिन्ह कर मन इन्ह सन नहिं राता।
ते जन बंचित किए बिधाता॥
श्री रामचन्द्रजी की बहुत ही सरल (भोली) और सुंदर (मनभावनी) बाललीलाओं का सरस्वती, शेषजी, शिवजी और वेदों ने गान किया है। जिनका मन इन लीलाओं में अनुरक्त नहीं हुआ, विधाता ने उन मनुष्यों को वंचित कर दिया (नितांत भाग्यहीन बनाया)।
भए कुमार जबहिं सब भ्राता। दीन्ह जनेऊ गुरु पितु माता॥
गुरगृहँ गए पढ़न रघुराई।
अलप काल बिद्या सब आई॥
ज्यों ही सब भाई कुमारावस्था के हुए, त्यों ही गुरु, पिता और माता ने उनका यज्ञोपवीत संस्कार कर दिया। श्री रघुनाथजी (भाइयों सहित) गुरु के घर में विद्या पढ़ने गए और थोड़े ही समय में उनको सब विद्याएँ आ गईं।इस अवसर पर भाजपा जिलाध्यक्ष अशोक मिश्रा, पूर्व भाजपा जिलाध्यक्ष धर्मवीर तिवारी, उ०प्र० वन्यजीव बोर्ड के सदस्य श्रवण जी, अनुसूचित मोर्चा के जिला अध्यक्ष अजीत रावत, बीपीन श्रीवास्तव दया पांडे भाजपा युवा मोर्चा के महामन्त्री विनय श्रीवास्तव, भाजपा प्रवक्ता अनूप तिवारी, भाजपा नेता ओम प्रकाश दुबे, सभासद अभिषेक गुप्ता, अमन वर्मा, दिशान्त द्विवेदी, विपिन श्रीवास्तव, अनिल वर्मा, सुमन केसरी, अखिलेश कुमार समेत रामकथा समिति के सदस्य व हजारों के संख्या में श्रद्धालु मौजूद थे। आज के जजमान पूर्व चेयरमैन मुरारी गुप्ता पत्नी संगीता गुप्ता रही।
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