लाइफस्टाइल डेस्क. बफीर्ली हवाओं के कारण अमेरिका का शिकागो पोलर वर्टेक्स की चपेट में है। तापमान -30 डिग्री सेल्सियस से भी नीचे जा चुका है। ट्रांसपोर्ट, स्कूल और व्यवसाय ठप्प हैं। 21 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। लेकिन दुनिया में ऐसी जगहें भी हैं जहां सर्दियों में तापमान शून्य डिग्री सेल्सियस से नीचे जाता है। रूस के ओइमाकॉन से लेकर लद्दाख और कश्मीर जैसे कई उदाहरण हैं। जानिए दुनिया में सबसे बफीर्ली जगहों पर कैसे रहते हैं लोग…
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- दुनिया का सबसे ठंडा गांव ओइमाकॉन कड़ाके की सर्दी के लिए जाता है। यहां तापमान अक्सर -50 डिग्री से नीचे जाता है। रूस के साइबेरिया में बर्फ की घाटी में बसा 500 आबादी वाला ओइमाकॉन में रहना बेहद मुश्किलों भरा है।
- यहां कभी पानी जमता नहीं है। सालभर 5 हजार फीट तक की गहराई तक बर्फ होने के कारण पानी स्तर पर रहता है। ओइमाकॉन गांव में गाड़ी चलाने से पहले उसे ऐसे गैरेज में रखना पड़ता है जहां हीटर लगा हो।
- यहां के लोगों के खाने का मुख्य हिस्सा मछली, घोड़े का मांस और डेयरी प्रोडक्ट होता है। फलों की खेती या पेड़ न होने के कारण यहां के लोग जंगली बेरी को खाते हैं। ठंड के कारण मछलियों को पकड़ने के बाद मछुआरों को उसे फ्रीज करने की जरूरत नहीं पड़ती।
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- कड़ाके की सर्दी में लद्दाख करीब 6 माह तक दुनिया से कटा रहता है। नवंबर से पहले खाने-पीने और जरूरत का सामान कश्मीर से आता है। इसकी तैयारी कई महीनों पहले से शुरू हो जाती है।
- खानपान की वैरायटी काफी सीमित होने के कारण गेहूं, जौ, मकई से बने व्यंजन, बकरी और भेड़ का मांस डाइट का हिस्सा रहता है। इसके अलावा थुकपा, चैंग, बटर टी और स्क्यू यहां का देसी फूड है। सर्दी में शरीर का तापमान और इम्युनिटी बढ़ाने के लिए लहसून का सूप पीते हैं।
- महिला और पुरुष दोनों ही सर्दियों में वुलन ओवरकोटनुमा ड्रेस पहनते हैं जिसे गउचा कहते हैं। हवा से बचाव के लिए कमर पर रंगबिरंगे वुलन कपड़े को कसकर बांधते हैं जिसे स्केरग कहते हैं। सिर पर वूलेन कैप के साथ याक के बालों, ऊन और लेदर से तैयार जूते पहनते हैं।
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- सर्दी से बचने के लिए अमेरिका बेहद दिलचस्प तरीके अपनाते हैं। जैसे पानी के पाइप को फ्रीज होने से बचाने के लिए लोग नल को थोड़ा सा खुला छोड़ देते हैं,इससे वे फ्रीज होकर फटने से बचे रहते हैं।
- अमेरिकन लो-वोल्टेज और कार्बन फायबर से तैयार इलेक्ट्रिक ब्लैंकेट का इस्तेमाल करते हैं जो बिस्तर को गर्म रखता है।
- ज्यादातर घर लकड़ी के बनाए जाते हैं, जिस कारण वे ज्यादा ठंडे या गर्म नहीं होते।
- नेटिव अमेरिकन ठंड के दिनों में लंबे और बड़े घरों में रहते थे। इन घरों में कबीले के सभी लोग साथ जमा हो जाते थे। ज्यादा लोगों के होने के कारण शरीर की गर्मी से घर का तापमान बढ़ जाता था।
- नेटिव अमेरिकन लोग तापमान 0 से कम जाने पर लकड़ी काटते थे। इससे शरीर में गर्मी बनी रहती थी, और कम तापमान पर लकड़ी आसानी से कट जाती है, जिसे जलाने के लिए भी काम में ले लिया जाता था।
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- यहां 21 दिसंबर से अगले 40 दिन तक पड़ने वाली कड़ाके की सर्दी को चिल्लई कलां कहते हैं इसके बाद के 20 दिनों चिल्ल्ई खुर्द का नाम दिया गया है। ये दिन हाड़ कपाने देने वाली सर्दी के लिए जाने जाते हैं। तापमान -5 डिग्री सेल्सियस से भी नीचे चला जाता है।
- इस मौसम में ज्यादातर लोग सुबह के नाश्ते में हरीसा खाते हैं। यह तरह का हलवा कहा जा सकता है जिसे रातभर पकाया जाता है। इसमें मटन या भेड़ का मांस, चावल और मसालों से तैयार किया जाता है। इसे कश्मीरी ब्रेड के साथ खाते हैं।
- खानपान में ऐसी चीजें शामिल करते हैं जो शरीर गर्म रखती हैं और रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ाती हैं। इसमें ड्राई फ्रूट, मांसाहार, हर्बल टी और मसाला टी शामिल हैं।
- ज्यादातर जगहों पर लो वोल्टेज के कारण रूम हीटर बहुत अधिक काम नहीं करते। लकड़कियों को जलाकर घर का तापमान बढ़ाने की कोशिश की जाती है। ज्यादातर घर लकड़ी के बनाएं जाते हैं जो गर्मी में न तो बहुत अधिक गर्म होते हैं न सर्दियों में अधिक ठंडे।