धर्म डेक्स । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से भारतीय वैदिक ज्योतिष मे मृगशिरा नक्षत्र के जातक
भारतीय वैदिक ज्योतिष मे मृगशिरा नक्षत्र के जातक
राशि पथ में 53.20 अंशों से 66.40 अंशों के मध्य मृगशिरा नक्षत्र की स्थिति मानी गयी है। अरबी में उसे अल अकाई’ कहते हैं। इसके अन्य पदाधिकारी नाम हैं- सौम्य, चंद्र, अग्रहायणी, उडुप । चंद्रमा को इस नक्षत्र का देवता तथा मंगल को इसका अधिपति ग्रह माना जाता है। इस नक्षत्र में तीन तारे हैं जिन्हें हिरण अर्थात् मृग के सिर की तरह कल्पित किया गया है। इसके साथ एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई। ब्रह्मा ने जब मृग का रूप धर कर अपनी बेटी रोहिणी का पीछा किया तो इस अपराध के कारण उनका सिर काट दिया गया। यही कटा सिर मृग शिर नक्षत्र के रूप में है। लोकमान्य तिलक के अनुसार इस नक्षत्र का नाम अग्रहायणी इसलिए पड़ा कि वैदिक युग में वसंत सपांत बिंदु इस नक्षत्र के मध्य पड़ता था, अतः इसका नाम अग्रहायणी पड़ा।
इस नक्षत्र के प्रथम दो चरण वृष राशि के अंतर्गत आते हैं और अंतिम दो चरण मिथुन राशि में वृष का स्वामी शुक्र है, मिथुन का बुध गणः देव, योनिः सर्प एवं नाड़ी: मध्य है। चरणाक्षर हैं- बे, बो, क, की।
भृगशिर नक्षत्र में जन्मे जातक बलिष्ठ, सुंदर, लंबे कद के होते हैं। ऐसे जातक सरल प्रवृत्ति के निष्पक्ष, सिद्धांतप्रिय तथा राय देने में हमेशा ईमानदारी बरतते हैं। वे सुशिक्षित तथा विभिन्न कार्यों को करने में सक्षम होते हैं। तथापि उनका एक दोष यह है कि वे किसी पर विश्वास नहीं करते सदैव संशय से घिर रहते हैं। और कहा गया है- ‘संशयात्मा विनश्यति ।’ फल यह होता है कि अक्सर लोग भी ऐन वक्त पर उन्हें धोखा दे जाते हैं। संशय की प्रवृत्ति ऐसे जातकों को भीतर से भीरु भी बना देती है।
ऐसे जातकों का वैवाहिक जीवन सामान्यतः सुखी बीतता है, किंतु पत्नी के सदैव रोगिणी रहने के फल भी कहे गये हैं। जातक का वैवाहिक जीवन यो तो सुखी बीतता है तथापि उसके संशयपूर्ण तथा हठी स्वभाव के कारण संबंध कुछ समय के लिए तनावपूर्ण भी हो सकते हैं।
ऐसे जातकों का बचपन में रुग्ण होना बताया गया है। निरंतर कब्ज के कारण उन्हें उदर रोग भी हो सकते हैं। मृगशिर नक्षत्र में जन्मी जातिकाएं छरहरी, तीखे नयन-नक्श वाली
तथा अत्यंत बुद्धिमती होती हैं। उनमें सदैव सर्तकता, हाजिर जवाबी भी रहती है तथापि उनकी वाणी का व्यंग्य लोगों को तिलमिला देता है। ऐसी जातिकाओं की शिक्षा भी अच्छी होती है तथा वे मैकेनिकल या इलैक्ट्रिक इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रानिक्स आदि क्षेत्रों में भी सफल हो सकती हैं।
ऐसी जातिकाओं में समाज सेवा की भावना भी होती है। ऐसी जातिकाओं का वैवाहिक जीवन सुखी रहता है। भले विवाह पूर्व उनके प्रणय संबंध रहे हो, विवाह के बाद ये पति के प्रति एकनिष्ठ रहती हैं। ऐसी जातिकाओं को अपने मासिक धर्म में आने वाले दोषों की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए अन्यथा वे तरह-तरह के रोगों का शिकार भी हो सकती हैं।
मृगशिरा नक्षत्र के विभिन्न चरणों के स्वामी हैं- प्रथम चरणः सूर्य, द्वितीय चरण: बुध, तृतीय चरण: शुक्र, चतुर्थ चरण: मंगल।
क्रमशः… आगे के लेख मे आर्द्रा नक्षत्र के विषय मे विस्तार से वर्णन किया जाएगा।