बभनी/सोनभद्र (अरुण पांडेय)
आसनडीह विद्यालय में पुष्पवर्षा व बच्चों को तिलक लगाकर किया स्वागत।
बच्चों के अंदर अलौकिक प्रतिभा जगाने को विवश थे शिक्षक- खंड शिक्षा अधिकारी।
बभनी। कोरोना महामारी के कारण शिक्षा व्यवस्था बेपटरी हो चुकी जहां विद्यालयों में शिक्षक हर रोज नए-नए चीजों के बारे में जानकारी दिया करते थे पूरी तत्परता से पढ़ाते हुए नौनिहालों के भविष्य संवारने में लगे होते थे और बच्चे हर रोज एक नया ख्वाब देखते थे अविभावकों का चेहरा भी खुशियों से भरा मिलता था सरकार हर सुविधा उपलब्ध कराने में जुटी हुई हैवहीं वर्ष भर से कोरोना महामारी ने सारे उद्देश्यों को चकनाचूर कर दिया बच्चे घर में रहने लगे बच्चों के कुछ जो लावारिसों की तरह घूमते नजर आने लगी जिस बात को लेकर अविभावकों के अंदर इनके भविष्य को लेकर चिंता सताने लगी हर रोज विद्यालयों में पढ़ाने वाले शिक्षकों के मनोबल टूटने लगे। विनोद कुमार मु. आरीफ चंद्रजीत सिंह संदीप सिंह सुनील सिंह अभिषेक शशि शंकर श्रीवास्तव अवधेश ममता ने बताया कि विद्यालय में आने के बाद बच्चों के न होने पर हमें उदासी भरे चेहरों से पूरे दिन घूंटना पड़ता था आज तीसरे दिन लगातार विद्यालय खुलने पर अंधेरे कमरों में सैकड़ों दियों की रौशनी मिल गई हमारे परिसर में मुरझाए फूलों की नई कलियां खिलती हुई दिखने लगीं वहीं आसनडीह उच्च प्राथमिक विद्यालय में बच्चों का पुष्पवर्षा करते हुए तिलक लगाकर बच्चों का स्वागत किया गया। बताते चलें कि विकास खंड सेसटे म्योरपुर विकास खंड के उच्च प्राथमिक विद्यालय तेलजर के प्रधानाचार्य शंभूनाथ गुप्ता जो बच्चों के भविष्य संवारने को लेकर अपने को अट्ठारह घंटे तक हर पल कुछ नया कर गुजारने को लेकर लगे होते हैं अपनी जिंदगी का सारा समय बच्चों के सपनों को ही साकार करने में लगे होते हैं उनके विद्यालय में अलग-अलग लैब की व्यवस्था किए हैं कई ऐतिहासिक वैज्ञानिक क्रीड़ात्मक साहित्यिक भौगोलिक तथ्यों का समावेश मिलता है चाहे प्रयोगात्मक हो या कलात्मक हर प्रकार से बच्चों को परिपूर्ण बनाए रखते हैं खंड शिक्षा अधिकारी संजय कुमार ने बताया कि बच्चों के भविष्य को लेकर हम सभी काफी चिंतित थे किताब ड्रेस जूता-मोजा संबंधित जो भी सरकारी सुविधाएं आईं हमने हर बच्चों को विद्यालयों में बुलवाकर दे दिया जिससे किताबों के माध्यम से वे घर पर भी पढ़ाई कर सकें बच्चों के अंदर की अलौकिक प्रतिभा जगाने को लेकर हम और हमारे शिक्षक काफी चिंतित थे जो आज हम सभी के चेहरे पर मुस्कान देखने को मिली।
कोरोनाकाल में गरीब व आदिवासी बच्चों के हालात।
बभनी- यदि देखा जाए तो आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र होने के कारण कोरोनाकाल में कितने परिवारों की आर्थिक स्थिति इतनी दयनीय हो चुकी है कि 12-14 वर्ष की उम्र के बच्चे जो एक नई उमंगों की उड़ान भरने में लगे थे हर रोज कुछ नया कर गुजारने कीसोंच रखते थे उनके अंदर जो काबीलियत थी आज वही इस मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया कि आज हंसते खेलते बच्चे घर की आर्थिक स्थिति सही न होने पर इस उम्र में ही होटलों दुकानों ग्राम पंचायतों में मनरेगा मजदूरी करने को विवश हैं जिससे नया सपना देखते हुए उनकी नींद ही गायब हो गई और वे अपने परिवार के जीविकोपार्जन में लगे हुए हैं।