पुरुषोत्तम चतुर्वेदी की रिपोर्ट
वाराणसी। प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी पितृपक्ष माह में किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी के नेतृत्व में देश के विभिन्न प्रान्तों से जुटी किन्नरों ने अपने ज्ञात और अज्ञात अतृप्त पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिशाचमोचन कुंड पर त्रिपिंडी श्राद्ध किया। हालांकि कोरोना महामारी के चलते ज्यादा किन्नर काशी में नहीं जुट पाई। चारों दिशाओं से आये किन्नरों ने अतृप्त किन्नरों की आत्मा की शान्ति के लिए श्राद्ध किया।
मुन्ना लाल पंडा की अगुवाई में ब्राह्मणों ने विधि-विधान से श्राद्ध पूर्ण कराया। करीब दो घण्टे तक त्रिपिंडी श्राद्ध पूजन चला। इस दौरान लक्ष्मीनारायण के देवी पवित्रा, कामिनी माई सहित तमाम किन्नरों के जुटान पिशाचमोचन कुंड पर हुआ। महंत मुन्ना पंडा ने बताया कि तीर्थ पर किन्नरों ने अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध किया है।
एक त्रिपिंडी पर 44 आत्माओं को मुक्ति मिलती है। उन्होंने बताया कि किन्नर भी अपनी मां के गर्भ से जन्म लेते हैं इसलिए वो भी श्राद्ध कर्म किए। पूजन के दौरान मुख्य आचार्य नीरज पांडेय व सहयोगीजन की उपस्थिति रही। मुख्य पंडा पिशाच मोचन आनंद पांडेय, श्री मणिकर्णिका तीर्थ पुरोहित गौरव द्विवेदी व गंगा महासभा के राष्ट्रीय मंत्री मयंक कुमार आदि लोगों का सहयोग रहा।
हम सनातन धर्मी हैं
महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने बताया कि किन्नर अखाड़ा यह मानता है कि हमारी कौम के लोगों को समाज तिरस्कृत करके निकाल देता है। हम सनातन धर्मी हैं और इस सनातन धर्म के 16 संस्कार जरूरी हैं और ये श्राद्धकर्म का संस्कार रह जाता है। बताया की इतिहास में पहली बार महाभारत काल के शिखंडी द्वारा पिंडदान किए जाने के सैकड़ों वर्षों के बाद किन्नरों ने अपने पूर्वजों का पिंडदान कर एक नई परम्परा की शुरुआत की थी।
अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और उनके मोक्ष की प्राप्ति के लिए सारे किन्नरों ने काशी में तर्पण किया। हिन्दू सनातन धर्म के अनुसार पिंडदान नहीं करने पर किन्नर लोगों की आत्मा भटकती रहती है इसलिए हम लोगों ने वर्ष 2016 से किन्नरों की आत्मा की शांति के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध करते हैं।