जीवन मंत्र । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से गुरुजी कब मिलते हैं ?
बस दिक्षा लेने से गुरुजी नहीं मिलते। गुरुजी से बातचीत से गुरुजी नहीं समझते। गुरुजी के साथ रहने से गुरुजी का साथ नहीं मिलता।गुरुजी को देखने से गुरुजी नहीं मिलते।गुरुजी को सुनने से ज्ञान नहीं मिलता।
जब एक भक्त भक्ति मार्ग पर चलता है। और उसे भक्ति का आनंद नहीं मिलता।जो उसे चाहिए वह नहीं मिलता । जब भक्त थक के बैठ जाता है।तब वह गुरुजी की खोज करना शुरू कर देता हैं। गुरुजी की खोज वह एक उद्देश्य के साथ करता है। और गुरुजी मिलते ही वह उस उद्देश्य को पुर्ण करने का प्रयास करता है।परंतु जब वह उस उद्देश्य को पूरा नहीं कर पाता।फिर वह नए गुरुजी की तलाश करता है । यह सिलसिला शुरू ही रहता है जब तक वह उद्देश्य पुर्ण नहीं होता।
इन्हें गुरुजी कभी नहीं मिलते
गुरुजी उन्हें मिलते हैं जिनमें गुरुजी के प्रति पुर्ण निष्ठा हो विश्वास हो श्रद्धा हो आस्था हो प्रेम हो भक्ति हो।उन्हें पल पल गुरुजी का आशीर्वाद मिलता रहता हैं शिष्य कहीं भी हो गुरुजी कहीं भी हो फिर भी वह एक दूसरे से बात कर सकते हैं मिल सकते हैं एक दूसरे का हालचाल समझ सकते हैं।गुरुजी शिष्य को ज्ञान देते हैं।यह वह आस्था प्रेम विश्वास की ड़ोरि हैं जो अपने आप बनती चली जाती हैं। जिसमें कोई बात कहने के जरुरत ही नहीं होती।