लखनऊ हिंसा में दी गई वसूली नोटिस अवैधानिक
प्रदेश के विपक्षी दलों ने कहा योगी करे राजधर्म का पालन
लखनऊ, । लखनऊ हिंसा मामले में लोगों के उत्पीड़न के लिए दी गई वसूली नोटिस अवैधानिक है और यह राजस्व संहिता व उसकी नियमावली का खुला उल्लंघन है. इसके तहत जितनी भी उत्पीड़नात्मक कार्यवाही की गई है वह सभी विधि विरुद्ध है. इसलिए तत्काल प्रभाव से वसूली नोटिस को रद्द कर वसूली कार्यवाही को समाप्त करना चाहिए. यह मांग आज प्रदेश के प्रमुख विपक्षी दलों व संगठनों डिजिटल मीटिंग में लिए प्रस्ताव में कहीं।
प्रस्ताव से सहमत होने वालों में सीपीएम के राज्य सचिव डॉ हीरालाल यादव, सीपीआई के राज्य सचिव डॉ गिरीश शर्मा, लोकतंत्र बचाओं अभियान के इलियास आजमी, सोशलिस्ट पार्टी इंडिया के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष संदीप पांडे, स्वराज अभियान की प्रदेश अध्यक्ष एडवोकेट अर्चना श्रीवास्तव, स्वराज इंडिया के प्रदेश अध्यक्ष अनमोल, वर्कर्स फ्रंट के अध्यक्ष दिनकर कपूर प्रमुख नाम है।
राजनीतिक प्रस्ताव में कहा गया की योगी जी ने मुख्यमंत्री बनने के लिए संविधान की रक्षा की जो शपथ ली है। उसकी ही वह खुद और उनकी सरकार उल्लंघन कर रही है. पूरे प्रदेश में मनमर्जीपूर्ण ढंग से संविधान और कानून का उल्लंघन करते हुए शासन प्रशासन द्वारा कार्रवाई की जा रही है। प्रस्ताव में कहा गया कि लखनऊ हिंसा के मामले में ही आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के राष्ट्रीय प्रवक्ता पूर्व आईजी एस. आर. दारापुरी, सदफ जाफर, दीपक कबीर, मोहम्मद शोएब जैसे राजनीतिक-सामाजिक कार्यकर्ताओं और नीरिह व निर्दोष नागरिकों का विधि विरुद्ध उत्पीड़न किया जा रहा है।उनके घरों पर दबिश डालकर ऐसा व्यवहार किया जा रहा है मानो वह बड़े अपराधी हो. उन्हें बेदखल किया जा रहा है, उन्हें दी गई नोटिस खुद ही अवैधानिक है। राजस्व संहिता व नियम में 143(3) कोई धारा व नियम ही नहीं है यहीं नहीं जिस प्रपत्र 36 में नोटिस दी गयी है उसमें 15 दिन का वक्त देने का विधिक नियम है जबकि दी गयी नोटिस में मनमर्जीपूर्ण ढंग से इसे सात दिन कर दिया गया।प्रदेश में हालात इतने बुरे है कि एक रिक्शा चालक को तो प्रशासन ने गिरफ्तार कर जेल तक भेज दिया।जबकि राजस्व संहिता जो खुद विधानसभा से पारित है वह प्रशासन को यह अधिकार देती ही नहीं है।
राजनीतिक प्रस्ताव में कहा गया कि वहीं दूसरी तरफ प्रदेश में अपराधियों, भू माफिया, खनन माफियाओं और हिस्ट्रीशीटरों का मनोबल बढ़ा हुआ है। राजनीतिक दलों के कार्यालयों पर हमले हो रहे है. कानून व्यवस्था समेत हर मोर्चे पर योगी माडल एक विफल माडल साबित हुआ है. अपराधियों से निपटने की भी सरकार की नीति राजधर्म का पालन नहीं करती है।
प्रस्ताव में कहा गया कि महात्मा गांधी तक के हत्यारों को कानून के अनुरूप सजा दी गई लेकिन आरएसएस और भाजपा के राज में संविधान का तो कोई महत्व ही नहीं रह गया है. ठोक दो व बदला लो की प्रशासनिक संस्कृति वाले योगी सरकार में संविधान व कानून के विरूद्ध कहीं किसी का घर गिरा दिया जा रहा है, किसी का एनकाउंटर कर दिया जा रहा है और राजनीतिक- सामाजिक कार्यकर्ताओं के ऊपर फर्जी मुकदमे कायम कर उन्हें जेल भेज दिया जा रहा है।
उत्तर प्रदेश में हालत इतनी बुरी हो गई है कि माननीय उच्च न्यायालय के आदेश भी इस सरकार में कूड़े के ढेर में फेंक दिए जा रहे हैं और मुख्य न्यायाधीश तक के आदेश की खुलेआम अवहेलना की जा रही है। प्रस्ताव में कहा गया योगी सरकार से प्रदेश की जनता जानना चाहती है कि कानपुर में रात को डेढ़ बजे एक शातिर अपराधी को पकड़ने के लिए पुलिस भेजने का आदेश किसने दिया था. लोकतंत्र का यह तकाजा है कि इस सवाल का जवाब प्रदेश की सरकार को देना चाहिए क्योंकि इसमें पुलिसकर्मियों की हत्या हुई है और इसकी जवाबदेही तय की जानी चाहिए।
प्रस्ताव में अंत में कहा गया जिस संविधान की शपथ लेकर योगी सत्ता में है उसके द्वारा तय राज धर्म का वह पालन करे और संविधान व कानून के अनुरूप व्यवहार करें. सरकार को अपनी उत्पीड़नात्मक कार्यवाही पर पुनर्विचार करके तत्काल प्रभाव से विधि के विरुद्ध भेजी गई सारी वसूली नोटिस को रद्द करना चाहिए और जिन अधिकारियों ने भी इस फर्जी नोटिस को तैयार किया है या इसके तमिला के लिए लोगों का उत्पीड़न किया है उनको तत्काल दंडित करना चाहिए।
SNC Urjanchal News Hindi News & Information Portal