
नई दिल्ली। लॉकडाउन के कारण अर्थव्यवस्था में आई गिरावट से देश को उबारने के लिये मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश के बाद गुजरात ने भी अपने यहां श्रम कानूनों में बदलाव कर मजदूरों के अधिकार पर वार किया है।इन सरकारों अध्यादेश के जरिये करार के अनुसार नौकरी करने वालों को हटाने, नौकरी के दौरान हादसे का शिकार होने पर मुआवजा और समय पर वेतन देने जैसे कुछ नियमों को छोड़कर अन्य सभी श्रम कानूनों को तीन वर्ष के लिए स्थगित कर दिया है।
तीनों राज्यों ने तीन वर्ष से ज्यादा समय के लिए उद्योगों को न केवल श्रम कानूनों से छूट दी है, बल्कि उनके पंजीकरण और लाइसेंसिंग प्रक्रिया को भी ऑनलाइन और सरल कर दिया है।नए उद्योगों को कानून की विभिन्न धाराओं के तहत पंजीकरण कराने और लाइसेंस प्राप्त करने की प्रक्रिया अब 1 दिन में पूरी होगी।इसके साथ ही उद्योगों को उत्पादन बढ़ाने के लिए शिफ्ट में परिवर्तन करने, श्रमिक यूनियनों को मान्यता देने जैसी कई छूट दी गई हैं।राज्य सरकारों की इन घोषणाओं से एक तरफ उद्योग जगत राहत महसूस कर रहा है तो वहीं श्रमिक संगठन आशंका जता रहे हैं कि इससे कर्मचारियों पर काम का दबाव और बढ़ेगा।इसके पीछे तर्क दिया गया है कि कोरोना वायरस से निपटने के लिए लागू देशव्यापी लॉकडाउन के चलते कारोबारी गतिविधियां पूरी तरह से ठप हो गई थीं।ऐसे में इन्हें गति देने के लिए यह कदम उठाया गया है।नए निवेश को आमंत्रित करने, औद्योगिक प्रतिष्ठानों की स्थापना के लिए यह जरूरी था कि राज्य में लागू श्रम कानूनों से कंपनियों को अस्थायी तौर पर कुछ छूट दी जाए।
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