जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से जन्म तिथि और स्वभाव…….

जीवन मंत्र । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से जन्म तिथि और स्वभाव…….

प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक और फ़िर
प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा तक दो पक्षो की तिथिया होती है,अमावस्या तक कृष्ण पक्ष की तिथिया कहलाती है और प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा तक की तिथिया शुक्ल पक्ष
की तिथिया कहलाती है। तिथि का प्रभाव
भी जातक पर उसी प्रकार से पडता है जैसे
ग्रह और नक्षत्र का पडता है।

तिथियों का विवरण इस प्रकार से है-

प्रतिपदा : धनी और बुद्धिमान होना

द्वितीया: मान मर्यादा मे आगे कुल का नाम बढाने वाला विदेशवास और कानून को जानने वाला

तृतीया: धन और सम्पत्ति को ध्यान मे रखने वाला कार्य और राज्य से लाभ लेने वाला सन्तान और पिता के प्रति समर्पित

चतुर्थी : इस तिथि मे पैदा होने वाला जातक यात्रा प्रिय होता है वाहनोका शौकीन होता है कामोत्तेजना अधिक होती है सांस का मरीज होता है

पंचमी:जातक धार्मिक होता है धर्म स्थानो की तरफ़ अधिक लगाव होता है न्याय ऊंची शिक्षा और विदेश के प्रति अच्छी जानकारी होती है

षष्ठी :दिमाग से तेज होता है शरीर मे दुर्बलता होती है बुद्धि से सभी काम निपटाने की हिम्मत रखता है
सप्तमी : जातक मे बीमारी के कई कारण बनते है सत्य बोलने की तरफ़ ध्यान होता है रात मे किये गये काम नही बन पाते है

अष्टमी : जातक धन की तरफ़ अधिक
आकर्षित रहता कर्जा करने और लोगो का धन हडपने की आदत होती है,चिन्ता से
बीमार रहना माना जाता है

नवमी : जातक का रुझान प्रसिद्धि की तरफ़ अधिक होता है राज्य और गुप्त काम के अन्दर माहिर होता है,यौन सम्बन्ध बनाने मे माहिर होता है

दसवीं :जातक अपने चरित्र की तरफ़ अधिक ध्यान रखता है,कठिन समय को पहिचानने वाला होता है जहां भी जाता है लोग कहना मानने लगते है
एकादशी : जातक धनी होता है कानून
को मानने और मनवाने वाला होता है
पूर्वजो की सम्पत्ति और मर्यादा को कायम
रखना चाहता है

द्वादसी : जातक सुन्दर विचारो को ग्रहण करने वाला होता है लोगो को जातक के विचार पसंद आते है और मित्रता से सभी काम पूरे करने वाला होता है

त्रियोदसी: जातक की धन के प्रति अधिक
चाहत होती है लेकिन कितना ही कमाया जाये बचत नही होती है पुरुषों को स्त्रियों के प्रति और स्त्रियों को पुरुषो के प्रति अधिक आकर्षण होता है खेल कूद मनोरंजन और जल्दी से धन कमाने के साधन आदि मे आगे रहता है

चतुर्दशी : जातक को शत्रुता वाले कामो की तरफ़ अधिक ध्यान रहता है गूढ बातो को निकालकर शत्रुता करने की आदत होती है रोजाना के कामो में ब्याज से काम करना किराये से काम करवाने की इच्छा रखना बीमारी से कमाना पुलिस आदि की सहायता लेना और देना आदि बाते देखी जाती है

पूर्णिमा: जातक के अन्दर जो भी इच्छा होती है उसे पूरा करने के लिये साम दाम दण्ड भेद आदि सभी नीतियों से काम
को पूरा करने के लिये उद्धत रहता है
विचारो की श्रेणी मे वह विचार पनप पाते है
जो सकारात्मक होते है,देवी शक्ति पर विश्वास करना और महिने में आठ दिन अपने ही बनाये हुये कष्टो मे जूझना आदि देखा जाता है

अमावस्या: जातक् का ध्यान शिक्षा देने और शिक्षा को प्राप्त करने के
लिये आजीवन रहता है वह
किसी भी काम मे अपने को पूर्ण
नही समझ पाता है जहां भी जाता है
अपनी शिक्षा के अनुसार वाणी का प्रयोग
करने लगता है,लोग गुरु के नाम से जानते है साथ ही अपने पूर्वजो की मर्यादा का भी ध्यान रखता है स्वयं के काम भी जैसे नित्य क्रिया आदि समय से पूर्ण करता है सन्तान भी समय पर सहारा देने वाली होती है तांत्रिक शक्तियों पर विश्वास अधिक होते

चिकित्सा ज्योतिष में हर ग्रह शरीर के किसी ना किसी अंग से संबंधित होता है. कुंडली में जब संबंधित ग्रह की दशा होती है और गोचर भी प्रतिकूल चल रहा होता है तब उस ग्रह से संबंधित शारीरिक समस्याओं व्यक्ति को होकर गुजरना पड़ सकता है. आइए ग्रह और उनसे संबंधित शरीर के अंग व होने वाले रोगों के बारे में जानने का प्रयत्न करते हैं.

सूर्य

सूर्य को हड्डी का मुख्य कारक माना गया है. इसके अधिकार क्षेत्र में पेट, दांई आँख, हृदय, त्वचा, सिर तथा व्यक्ति का शारीरिक गठन आता है. जब जन्म कुंडली में सूर्य की दशा चलती है तब इन्हीं सभी क्षेत्रों से संबंधित शारीरिक कष्ट व्यक्ति को प्राप्त होते हैं. यदि जन्म कुंडली में सूर्य निर्बली है तभी इससे संबंधित बीमारियाँ होने की संभावना बनती है अन्यथा नहीं. इसके अतिरिक्त व्यक्ति को तेज बुखार, कोढ़, दिमागी परेशानियाँ व पुराने रोग होने की संभावनाएँ सूर्य की दशा/अन्तर्दशा में होने की संभावना बनती है.

चंद्रमा

चंद्रमा को मुख्य रुप से मन का कारक ग्रह माना गया है. यह ह्रदय, फेफड़े, बांई आँख, छाती, दिमाग, रक्त, शरीर के तरल पदार्थ, भोजन नली, आंतो, गुरदे व लसीका वाहिनी का भी कारक माना गया है. इनसे संबंधित बीमारियों के अतिरिक्त गर्भाशय के रोग हो सकते हैं. नींद कम आने की बीमारी हो सकती है. बुद्धि मंद भी चंद्रमा के पीड़ित होने पर हो सकती है. दमा, अतिसार, खून आदि की कमी चंद्रमा के अधिकार में आती है. जल से होने वाले रोगों की संभावना बनती है. बहुमूत्र, उल्टी, महिलाओ में माहवारी आदि की गड़बड़ भी चंद्रमा के कमजोर होने पर हो सकती हैं. अपेन्डिक्स, स्तनीय ग्रंथियों के रोग, कफ तथा सर्दी से जुड़े रोग हो सकते हैं. अंडवृद्धि भी चंद्रमा के कमजोर होने पर होती है.

मंगल

मंगल के अधिकार में रक्त, मज्जा, ऊर्जा, गर्दन, रगें, गुप्तांग, गर्दन, लाल रक्त कोशिकाएँ, गुदा, स्त्री अंग तथा शारीरिक शक्ति आती है. मंगल यदि कुंडली में पीड़ित हो तब इन्हीं से संबंधित रोग मंगल की दशा में हो सकते हैं. इसके अतिरिक्त सिर के रोग, विषाक्तता, चोट लगना व घाव होना सभी मंगल से संबंधित हैं. आँखों का दुखना, कोढ़, खुजली होना, रक्तचाप होना, ऊर्जाशक्ति का ह्रास होना, स्त्री अंगों के रोग, हड्डी का चटक जाना, फोडे़-फुंसी, कैंसर, टयूमर होना, बवासीर होना, माहवारी बिगड़ना, छाले होना, आमातिसार, गुदा के रोग, चेचक, भगंदर तथा हर्णिया आदि रोग हो सकते हैं. यह रोग तभी होगें जब कुंडली में मंगल पीड़ित अवस्था में हो अन्यथा नहीं.

बुध

बुध के अधिकार क्षेत्र में छाती, स्नायु तंत्र, त्वचा, नाभि, नाक, गाल ब्लैडर, नसें, फेफड़े, जीभ, बाजु, चेहरा, बाल आदि आते हैं. बुध यदि कुंडली में पीड़ित है तब इन्हीं क्षेत्रो से संबंधित बीमारी होने की संभावना बली होती है. इसके अलावा छाती व स्नायु से जुड़े रोग हो सकते हैं. मिर्गी रोग होने की संभावना बनती है. नाक व गाल ब्लैडर से जुड़े रोग हो सकते हैं. टायफाईड होना, पागलपन, लकवा मार जाना, दौरे पड़ना, अल्सर होना, कोलेरा, चक्कर आना आदि रोग होने की संभावना बनती है.

बृहस्पति

बृहस्पति के अन्तर्गत जांघे, चर्बी, मस्तिष्क, जिगर, गुरदे, फेफड़े, कान, जीभ, स्मरणशक्ति, स्पलीन आदि अंग आते हैं. कुंडली में बृहस्पति के पीड़ित होने पर इन्हीं से संबंधित बीमारियाँ होने की संभावना बनती है. कानों के रोग, बहुमूत्र, जीभ लड़खड़ाना, स्मरणशक्ति कमजोर हो जाना, पेनक्रियाज से जुड़े रोग हो सकते हैं. स्पलीन व जलोदर के रोग, पीलिया, टयूमर, मूत्र में सफेद पदार्थ का आना, रक्त विषाक्त होना, अजीर्ण व अपच होना, फोड़ा आदि होना सभी बृहस्पति के अन्तर्गत आते हैं. डायबिटिज होने में बृहस्पति की भूमिका होती है.

शुक्र

के अन्तर्गत चेहरा, आंखों की रोशनी, गुप्तांग, मूत्र, वीर्य, शरीर की चमक व आभा, गला, शरीर व ग्रंथियों में जल होना, ठोढ़ी आदि आते हैं. शुक्र के पीड़ित होने व इसकी दशा/अन्तर्दशा आने पर इनसे संबंधित बीमारियाँ हो सकती है. किडनी भी शुक्र के ही अधिकार में आती है इसलिए किडनी से संबंधित रोग भी हो सकते हैं. आँखों की रोशनी का कारक शुक्र होता है इसलिए इसके पीड़ित होने पर नजर कमजोर हो जाती है. यौन रोग, गले की बीमारियाँ, शरीर की चमक कम होना, नपुंसकता, बुखार व ग्रंथियों में रोग होना, सुजाक रोग, उपदंश, गठिया, रक्त की कमी होना आदि रोग शुक्र के पीड़ित होने पर होते हैं.

शनि

शनि के अधिकार क्षेत्र में टांगे, जोड़ो की हड्डियाँ, मांस पेशियाँ, अंग, दांत, त्वचा व बाल, कान, घुटने आदि आते हैं. शनि के पीड़ित होने व इसकी दशा होने पर इन्हीं से संबंधित रोग हो सकते हैं. शारीरिक कमजोरी होना, मांस पेशियों का कमजोर होना, पेटदर्द होना, अंगों का घायल होना, त्वचा व पाँवों के रोग होना, जोड़ो का दर्द, अंधापन, बाल रुखे होना, मानसिक चिन्ताएँ होना, लकवा मार जाना, बहरापन आदि शनि के पीड़ित होने पर होता है.

राहु

राहु के अधिकार में पांव आते है, सांस लेना आता है, गरदन आती है. फेफड़ो की परेशानियाँ होती है. पाँवो से जुड़े रोग हो सकते हैं. अल्सर होता है, कोढ़ हो सकता है, सांस लेने में तकलीफ हो सकती है. फोड़ा हो सकता है, मोतियाबिन्द होता है, हिचकी भी राहु के कारण होती है. हकलाना, स्पलीन का बढ़ना, विषाक्तता, दर्द होना, अण्डवृद्धि आदि रोग राहु के कारण होते हैं. यह कैंसर भी देता है.

केतु

इसके अधिकार में उदर व पंजे आते हैं. फेफड़ो से संबंधित बीमारियाँ देता है. बुखार देता है, आँतों में कीड़े केतु के कारण होते हैं. वाणी दोष भी केतु की वजह से ही होता है. कानों में दोष भी केतु से होता है. आँखों का दर्द, पेट दर्द, फोड़े, शारीरिक कमजोरी, मस्तिष्क के रोग, वहम होना, न्यून रक्तचाप सभी केतु की वजह से होने वाले रोग होते हैं. केतु के कारण कुछ रोग ऎसे भी होते हैं जिनके कारणों का पता कभी नहीं चल पा

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