असहमति एक लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति है किंतु इसे निश्चित मानदंडों के भीतर रहते हुए अभिव्यक्त किया जाना चाहिए“: लोक सभा अध्यक्ष


प्रत्येक सांसद और विधायक राष्ट्र के आदर्शों,आशाओं और विश्वास का अभिरक्षक है: लोक सभा अध्यक्ष

उत्तरप्रदेश विधान सभा ने संसदीय व्यवस्था की महान परम्परा को अक्षुण्ण रखा है जिससे नए बेंचमार्क स्थापित हुए हैं: राज्यपाल, मध्य प्रदेश

“व्यवधानों से न केवल लोकतान्त्रिक संस्थाओं के कार्यकरण की निर्धारित प्रक्रिया अवरूद्ध होती है बल्कि लोकतंत्र की मूल भावना के प्रति लोगों की आस्था भी क्षीण होती है“: मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश

लखनऊ। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने आज उत्तर प्रदेश विधान सभा कक्ष, लखनऊ मे राष्ट्रमंडल संसदीय संघ भारत क्षेत्र के सातवें सम्मेलन का उद्घाटन किया। इस अवसर पर श्री बिरला ने कहा कि गत सात दशकों के दौरान सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्र में हमारी संसद की उपलब्धियां उल्लेखनीय रही हैं। निर्वाचन प्रक्रिया में लोगों की उतरोत्तर बढती भागीदारी इस बात का सशक्त प्रमाण है कि लोगों की लोकतंत्र के प्रति आस्था और विश्वास बढ़ा है और जितना लोकतंत्र के प्रति लोगों का विश्वास बढ़ा है, उतनी ही जनप्रतिनिधियों की जिम्मेदारी भी बढ़ी है।
श्री बिरला ने कहा कि प्रत्येक सांसद और विधायक राष्ट्र के आदर्शों, आशाओं और विश्वास का अभिरक्षक है और गरीब तबकों की आवाज उठाने में उनकी अहम भूमिका होती है। उन्होंने कहा कि संसदीय वाद-विवाद में जीवंतता और सक्रियता का संचार होता है और इसीलिए ज्ञानपूर्ण वाद-विवाद के लिए बोलने की स्वतंत्रता आवश्यकता है। यह विचार व्यक्त करते हुए कि असहमति एक लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति है,उन्होंने कहा कि इसे निश्चित मानदंडों के भीतर रहते हुए अभिव्यक्त किया जाना चाहिए और संसदीय वाद विवाद निर्धारित नियमों के आधीन होना चाहिए। इसी के साथ उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि किसी लोकतंत्र में निर्वाचित प्रतिनिधि सरकार और जनता के बीच सेतु का काम करता है क्योंकि जनप्रतिनिधि निरंतर जनता के साथ अंतर-संवाद करता रहता है। अतरू विधायकों का यह कर्त्तव्य बनता है कि किसी भी नीति के निर्माण के समय उनका पक्ष मजबूती से सदन में रखे और आम नागरिकों के सरोकारों के अनुरूप सरकार की नीतियों को प्रभावित करे।
सम्मेलन के पहले विषय ’बजटीय प्रस्तावों की संवीक्षा के संबंध में विधायकों की क्षमता निर्माण’ का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि बजट सरकार का सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक नीति उपकरण है और बजट पर संसद और विधान सभाओं में सार्थक और उपयोगी चर्चाएं हो सके, इसके लिए सदस्यों का क्षमता निर्माण आवश्यक है। इसके अतिरिक्त संसदीय समितियों की भूमिका महत्वपूर्ण है। उन्होंने जोर देकर कहा कि संसदीय और विधान मंडलों की समितियां सरकार के बजट, नीतियों, कार्यक्रमों, योजनाओं, परियोजनाओं एवं उसके कार्यान्वयन का मूल्यांकन करती है और इनके सदस्यगण विभिन्न् मुद्दों पर अपनी दलगत प्रतिबद्धता से ऊपर उठकर कीमती सुझाव समिति को देते हैं। उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त की कि संसदीय समितियां सुशासन का मार्ग प्रशस्त करने के अतिरिक्त, पारदर्शिता और जवाबदेही के लक्ष्य को प्राप्त करने में भी बड़ी भूमिका निभा रही हैं। इसलिए बजट पर संसद और विधान सभाओं में सार्थक और उपयोगी चर्चाएं सुनिश्चित करने के लिए सदस्यों का क्षमता निर्माण आवश्यक है। दूसरे विषय अर्थात ‘’विधायी कार्यों की ओर विधायकों का ध्यान केंद्रित करना’ का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि सदस्यों को नियमों और प्रक्रियाओं का गहन ज्ञान और संवैधानिक प्रावधानों की पर्याप्त समझ होनी चाहिए ।
दिसंबर 2019 में देहरादून में संपन्न हुई भारत के विधायी निकायों के पीठासीन अधिकारियों के 79वें सम्मेलन में पारित संकल्पों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि सम्मेलन में संसद और विधान मंडलों की भूमिका को और विस्तृत और प्रभावी बनाने एवं जनप्रतिनिधियों की भागीदारी को और सशक्त करने के उद्देश्य से कई महत्वपूर्ण संकल्प पारित किए गए थे।
मध्यप्रदेश के राज्यपाल श्री लालजी टंडन ने अपने भाषण में कहा कि उत्तर प्रदेश विधान सभा कई ऐतिहासिक चर्चाओं की गवाह रही है और यहाँ से उभरे कई सम्मानित सांसदों ने महत्वपूर्ण संवैधानिक पदों को ग्रहण किया है। उन्होंने उत्तर प्रदेश विधान सभा की सराहना की कि उसने संसदीय व्यवस्था की महान परम्परा को अक्षुण्ण रखा है जिससे इस क्षेत्र में नए बेंचमार्क स्थापित हुए हैं। उन्होंने कहा कि पीठासीन अधिकारियों के दायित्व बहुत चुनौतीपूर्ण हैं क्योंकि उन्हें न केवल सरकार और विपक्ष के सदस्यों को चर्चा में समुचित योगदान के लिए अवसर देना है बल्कि यह भी सुनिश्चित करना है कि सदन का कार्य समुचित रूप तथा गरिमामयी संसदीय भाषा में चले।
इस अवसर पर बोलते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि भारत ने हमेशा राष्ट्रमंडल के लोकतांत्रिक मूल्यों आदर्शों और सिद्धांतों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताई है क्योंकि भारतीय लोकतंत्र की मूल भावना भी राष्ट्रमंडल संसदीय संघ की भावना के अनुरूप है जिसमें देश की एकता और अखण्डता, स्वतंत्रता, पंथनिरपेक्षता, भाईचारा, समानता और न्याय समाहित है। उन्होंने कहा कि भारत पूरे राष्ट्रमंडल में लोकतंत्र और विकास का समर्थन करने और उसे बनाये रखने के लिए राष्ट्रमंडल संसदीय संघ के सभी प्रयासों की सराहना करता है। मुख्यमंत्री जी ने आगे कहा कि अनेकता में एकता ही भारत की विशेषता है। यहाँ खान-पान, रहन-सहन, जाति, मत-पंथ, भाषा सहित अनेक क्षेत्रों में विभिन्नता पाई जाती है। उन्होंने कहा कि ऐसे में 130 करोड़ से अधिक आबादी वाले इस देश में सभी को एक साथ लेकर चलना चुनौतियों से भरा है परन्तु हमारे देश ने सर्वसम्मति से तालमेल स्थापित करके अपने अनेकता और विविधता को अपनी लोकतांत्रिक प्रणाली में बड़ी सफलतापूर्वक समायोजित कर लिया है और विश्व में शांति और सौहार्द का संदेश दिया है।
उन्होंने आगे कहा कि राष्ट्रमंडल संसदीय संघ के सभी देश भी एक परिवार के रूप में हैं और हमारा लक्ष्य लोकः समस्ताः सुखिनो भवन्तु होना चाहिए अर्थात सम्पूर्ण मानवता सुख-समृद्धि और शाश्वत आनन्द प्राप्त करे। उन्होंने विचार व्यक्त किया कि हमारी संसद तथा राज्य विधान मण्डल लोकतंत्र के केन्द्र के रूप में कार्य करते हैं। लोकतंत्र को और सुदृढ़ करने के लिए यह महत्वपूर्ण है कि हम इन प्रतिनिधिक संस्थाओं की गरिमा और शुचिता को अक्षुण्ण बनाए रखें। उन्होंने कहा कि अनेक अवसरों पर सदन की कार्यवाही व्यवधानों से बाधित होती है और सदन का बहुमूल्य समय नष्ट होता है। इन व्यवधानों से न केवल इस संस्थाओं कें कार्यकरण की निर्धारित प्रक्रिया अवरूद्ध होती है बल्कि लोकतंत्र की मूल भावना के प्रति लोगों की आस्था भी क्षीण होती है। अतः जनप्रतिनिधि होने के नाते हमारी प्राथमिकता सदन में जनता के विश्वास को बनाये रखना और उसे निरन्तर सुदृढ़ करना है तथा संसदीय लोकतंत्र की सर्वोच्च परम्पराओं को स्थापित करना है।
उत्तर प्रदेश विधान सभा के अध्यक्ष श्री हृदय नारायण दीक्षित ने अपने स्वागत भाषण में कहा कि राष्ट्रमंण्डल संसदीय संघ भारतीय प्राचीन संसदीय दर्शन के पूर्णतः अनुरूप है। भारत में प्राचीन काल से ही लोकतांत्रिक मूल्य तथा संस्थायें सृदृढ़ रही है। यहाँ की परम्पराओं ने लोकतांत्रिक आदर्शो एवं प्रतिनिधिक संस्थाओं के प्रति निष्ठा बनाये रखी है। सभा और समिति यहाँ ऋग्वैदिक काल से ही विद्यमान है। इसलिए लोकतंत्र भारत की प्रकृति और प्रवृत्ति है।उन्होंने कहा कि लोकतंत्र का स्वरूप लगातार विस्तृत हो रहा है और भारत जैसे विकासशील देशों में नवीन संसदीय परम्पराओं का निरंतर विकास हो रहा है। विधायी संस्थाएँ अपनी परम्परागत भूमिकाओं के अतिरिक्त अन्य विभिन्न क्षेत्रों में भी क्रियाशील हो रही है और ऐसे में जनप्रतिनिधियों की भूमिका भी व्यापक और बहुमुखी होना स्वाभाविक है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि उत्तर प्रदेश में आयोजित यह सम्मेलन राष्ट्रमंडल संसदीय संघ के इतिहास में एक नया आयाम जोड़ेगा।
नेता प्रतिपक्ष, उत्तर प्रदेश विधान सभा, श्री राम गोविन्द चैधरी ने अपने भाषण में कहा कि संसदीय प्रणाली में विपक्ष की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। सदन में यदि विपक्ष न हो तो सत्ता पक्ष के स्वेच्छाचारी होने की संभावना बनी रहती है। विपक्ष सदन में प्रश्न पूछकर, विभिन्न नियमों में प्रस्ताव लाकर,बजट में कटौती प्रस्ताव लाकर सत्ता पक्ष को चैकन्ना रखता है और जनहित के कार्यों के लिए सचेष्ट करता रहता है। उन्होंने विचार व्यक्त किया कि विपक्ष नागरिकों के अधिकारों का सर्वश्रेष्ठ संरक्षक होता है। उन्होंने जोर देकर कहा कि स्वस्थ संसदीय प्रणाली के लिए आवश्यक है कि सदन में प्रत्येक जनप्रतिनिधि को दलगत राजनीति से ऊपर उठकर कार्य करना चाहिए।
अपने धन्यवाद उद्बोधन में माननीय सभापति, उत्तर प्रदेश विधान परिषद श्री रमेश यादव ने कहा कि राष्ट्रमंडल संसदीय संघ का एक दीर्घ इतिहास रहा है। सौ वर्षों से भी अधिक समय से यह संघ अपनी महत्वपूर्ण सेवायें दे रहा है। राष्ट्रमंडल के सम्मेलनों और कार्यक्रमों के माध्यम से सभी देशों की विधायी संस्थाएँ और अधिक सृदृढ़ हुई हैं।
इस अवसर पर, श्री बिरला ने उत्तर प्रदेश विधान सभा द्वारा प्रकाशित एक स्मारिका का विमोचन भी किया।इससे पहले लोकसभा अध्यक्ष श्री ओम बिरला ने विधान सभा फोयर में एक प्रदर्शनी का उद्घाटन किया। इस प्रदर्शनी में उत्तर प्रदेश विधान सभा के विकास की यात्रा को उकेरा गया है।
मध्यान्ह में, सम्मेलन के पहले विषय ‘बजटीय प्रस्तावों की संवीक्षा के संबंध में विधायकों का क्षमता निर्माण‘ पर चर्चा आरम्भ हुई। की-नोट भाषण देते हुए राज्य सभा के उपसभापति श्री हरिवंश ने कहा कि भारत को एक आर्थिक महाशक्ति बनाने की आकांक्षा हर लोक प्रतिनिधि के हृदय में है। इसके लिए यह आवश्यक है कि बजट को समझने और उसकी समीक्षा करने के लिए उनके पास आवश्यक कौशल और तकनीकी जानकारी हो। उन्होंने कहा कि यह विधि निर्माताओं का दायित्व है कि वे तकनीकी शब्दावली को समझे और सामाजिक आर्थिक संकेतकों के अनुसार अपनी रणनीति तैयार करें। इस सन्दर्भ में उन्होंने तकनीकी विशेषज्ञों की भूमिका पर बल दिया जिससे वित्तीय नियमों, नियंत्रक और महालेखाकार के प्रतिवेदनों और बजट से सम्बन्धित अन्य तकनीकी आयामों से सदस्यों को अवगत कराया जा सके। कई माननीय पीठासीन अधिकारियों ने इस विषय पर अपने विचार रखे।

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