जीवन मंत्र । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से विषयोग परिभाषित…….
व्यक्ति की कुण्डली में विष योग का निर्माण ‘शनि और चन्द्रमा’ के कारण बनता है। शनि और चन्द्र की जब युति( दो कारकों का जुड़ा होना) होती है तब विष योग का निर्माण होता है। अतः कुंडली मिलान से जानें आपकी कुंडली में विष योग है या नही
‘विष योग’ उत्पन्न होने के कारण
लग्न में अगर चन्द्रमा है और चन्द्रमा पर शनि की ३, ७ अथवा १० वे घर से दृष्टि होने पर भी इस योग का निर्माण होता है।
कर्क राशि में शनि पुष्य नक्षत्र में हो और चन्द्रमा मकर राशि में श्रवण नक्षत्र का रहे अथवा चन्द्र और शनि विपरीत स्थिति में हों और दोनों अपने-अपने स्थान से एक दुसरे को देख रहे हो तो तब भी विष योग की स्थिति बन जाती है।
यदि कुण्डली में आठवें स्थान पर राहु मौजूद हो और शनि (मेष, कर्क, सिंह, वृश्चिक) लग्न में हो तब भी विष योग की स्थिति बन जाती है।
‘विष योग’ से होने वाली परेशानियां
यह योग मृत्यु, भय, दुख, अपमान, रोग, दरिद्रता, दासता, बदनामी, विपत्ति, आलस और कर्ज जैसे अशुभ योग उत्पन्न करता है तथा इस योग से जातक (व्यक्ति) नकारात्मक सोच से घिरने लगता है और उसके बने बनाए कार्य भी काम बिगड़ने लगते हैं।
पहचानें ‘विष योग’ को
चन्द्र शनि की युति को विषयोग माना जाता है।इसके अशुभ फलों की चर्चा ही ज्यादा होती है। लेकिन यह बहुत से शुभ फल भी प्रदान करता है। ऐसा जातक सन्तुलित विचार का होता है। प्रत्येक कार्य सोच समझ कर करता है। गम्भीर रहना पसंद करते है। इनकी सोच बहुत विलक्षण होती है। पुरातन को मानते हुए भी नवीन विचारो के होते है। कुछ नया करने की इन में चाहना रहती है। जीवन के २९ वें वर्ष तक संघर्ष व् कष्ट झेल कर सफल होते है। ये जातक संयुक्त परिवार चाहते है परंतु संयुक्त परिवार मिलता नही है। इनका स्वास्थ्य मध्यम रहता है। प्राचीन परम्पराओ को मानते है व् धार्मिक प्रवृत्ति के होते है परंतु अंधविश्वासी व् आडम्बर युक्त नही होते है।
ये भावनाओ में बह जाते है। इसलिये इनका भावनात्मक शोषण होता है।
ये एक तरफा कार्य करते है। इन्हें लोग समझ नही पाते है इसलिए कष्ट सहते है।
यदि आप अपनी कुंडली किसी अच्छे और विद्यवान ज्योतिष को दिखाते हैं तो वह कुंडली का विश्लेषण कर, आपको विष योग बनने के समय को बता सकता है।
निम्नलिखित सरल उपायों से विष योग की पीड़ा को कम किया जा सकता है
विष योग की पीड़ा को कम करने के लिए महादेव शिव की आराधना व उपासना शुभ रहती है। ‘ऊँ नमः शिवाय’ मन्त्र का नित्य रोज (सुबह-शाम) कम से कम १०८ बार करना चाहिए।
शिव भगवान के ‘महा म्रंत्युन्जय मन्त्र’ का जाप, प्रतिदिन (५ माला जाप) करने से भी पीड़ा कम हो जाती है।
राम भक्त, हनुमान जी की पूजा, पूरे नियम के साथ करना भी इस योग में शुभ बताया गया है।
शनिवार को शनि देव का संध्या समय तेलाभिषेक करने से भी पीड़ा कम हो जाती है।
शनि चंद्र के वैदिक अथवा बीज मंत्र से नियमानुसार जप एवं दशांश हवन करने से विषयोग में लाभ मिलता है।
शनि एव चंद्र के उपयुक्त दान नियत दिन पर करने से भी विषयोग में कमी आती है।