#81 प्रकरणों में 19653.58 करोड़ की धन fcराशि नहीं की गई सरेंडर
. # एक करोड़ से अधिक की धनराशि समर्पित न करने वाले 120 प्रकरणों में 37842.25 करोड़ रुपये का गोलमाल.
#वैयक्तिक जमा खातों में भी भारी हेरफेर किये जाने पर भी CAG की कठोर टिप्पणी, जिम्मेदार अफसरों पर कार्यवाही की संस्तुति.
#वित्त विभाग का ढीला रवैया, फायनेंसियल हैंडबुक में दिए गए प्रावधान की कोई खोज खबर नहीं,
शासन को भेजी जाने वाली वित्तीय मामले की “त्रैमासिक रिपोर्ट” में भी गोलमाल।
लखनऊ । उत्तर प्रदेश शासन सत्ता का केंद्र लोकभवन में पूर्व प्रधानमन्त्री अटल बिहारी बाजपेयी की प्रतिमा का अनावरण करते हुए प्रधानमंत्री मोदी अपने संबोधन में कर्तव्यों और दायित्वों के निर्वहन का सन्देश देते हैं, इसके पहले मोदी एसोचेम की बैठक को संबोधित करते हुए अर्थ ब्यवस्था में अनुशासन के महत्त्व को समझाते हैं और सीएम योगी उत्तर प्रदेश को 3 ट्रिलियन डालर की इकोनोमी बनाने के लिए आधार तैयार करने में लगे हैं तो शासन की अफसरशाही को भी जिम्मेदार होना पडेगा. लेकिन ये उत्तर प्रदेश की अफसरशाही है जो उठाये गए सवालों पर अपनी कुम्भकर्णी निद्रा से नहीं जाग पाती है.
31 मार्च 2018 को समाप्त हुए वर्ष के लिए राज्य सरकार के वित्त पर CAG की रिपोर्ट को आधार माना जाय तो कुल अनुदानों/विनियोगों के 81 प्रकरण ऐसे थे जिनमें राजस्व मद की धनराशि 10136.77 करोड़ तथा पूंजीगत मद में धनराशि 9516.81 करोड़ की बचत तो हुई लेकिन वित्तीय वर्ष की समाप्ति होने पर उसका कोई भाग सरेंडर नहीं किया गया। इसी प्रकार विभिन्न विभागों से सम्बंधित 120 प्रकरणों में राजस्व एवं पूंजीगत बजट के दत्त-मत्त तथा भारित मद में कुल 37842.25 करोड़ रूपये की धनराशि शामिल थी जो प्रत्येक प्रकरण में 1 करोड़ एवं उससे अधिक की बचतों को समर्पित न किये जाने से सम्बंधित हैं।
CAG के प्रतिवेदन संख्या 3 वर्ष 2019 के परिशिष्ट 2.8 एवं 2.9 पर CAG द्वारा इसका विस्तृत विवरण प्रकाशित किया गया है. इसी तरह वैयक्तिक जमा खाता में अनावश्यक तरीके से रोकी रखी गयी धनराशियों के सम्बन्ध में कड़ी आपत्ति जताते हुए CAG द्वारा वित्तीय नियमों के पालन करने में असफल रहे विभागीय अधिकारियों के विरुद्ध कार्यवाही की संस्तुति की गयी है।
बताते चलें कि वर्ष 2014 से खाद्य विभाग का और 2016-17 से ग्रामीण अभियंत्रण विभाग का बजट लैप्स प्रकरण जिससे सरकार के विनियोग लेखे को गलत कराया में अभी तक केवल लीपापोती ही हुई है. “अफसरनामा” द्वारा उठाये गये इस मुद्दे पर अभी अनुपूरक बजट में जारी की गयी CAG की रिपोर्ट की मुहर लग गयी है. वित्तीय वर्ष 2016-17 में ग्रामीण अभियंत्रण के बजट लैप्स के मुद्दे को “अफसरनामा” द्वारा उठाया गया था, यदि वित्त विभाग के द्वारा इस प्रकार के प्रकरण का संज्ञान लिया गया होता तो वित्तीय वर्ष 2017-18 में इसकी पुनरावृत्ति नहीं हो पाती।
“अफसरनामा” द्वारा उठाये गये प्रकरण में वित्तीय वर्ष 2016-17 में शासन के वित्त विभाग द्वारा ग्रामीण अभियंत्रण विभाग के खर्चे के लिए रूपये 351.23 करोड़ की धनराशि का बजट प्राविधान किया गया था लेकिन इसमें से एक अंश की धनराशि न तो स्वीकृत हुई और न ही समर्पित. इसके अलावा इस सम्बन्ध में विभाग के वित्त नियंत्रक ने न तो अपर मुख्य सचिव, ग्रामीण अभियंत्रण और न ही अपर मुख्य सचिव, वित्त को बताना जरूरी समझा. चूंकि इस मामले में RES के ACS स्वयं सम्पूर्ण प्राविधानित बजट अवमुक्त नहीं कर पाये थे इसलिए बात बढ़ाना जरूरी नहीं लगा होगा अन्यथा क्या कारण हो सकता है कि बजट के नियंत्रण के लिए तैनात वित्त नियंत्रक की कोई जिम्मेदारी निर्धारित नहीं हो पायी. यहीं नहीं ग्रामीण अभियंत्रण विभाग में लैप्स बजट को छिपाने का जिम्मेदार वित्त नियंत्रक ही प्रकरण का जांच अधिकारी भी बन गया और मामले में गोल मोल क्लोजर रिपोर्ट भी लगा दी. खबरों में तमाम तथ्य सामने आने के बाद भी वित्त विभाग क्यों उदासीन बना रहा? वित्तीय सांख्यिकीय विभाग के आँकड़ों और आदर्श कोषागार, जवाहर भवन से कोई रिपोर्ट क्यों नहीं ली गयी? इस पर अभी तक पर्दा पड़ा हुआ है।
वित्त विभाग का ढीला रवैया, फायनेंसियल हैंडबुक के इस प्रावधान की कोई खोज खबर नहीं, शासन को भेजी जाने वाली वित्तीय मामले की “त्रैमासिक रिपोर्ट” में भी गोलमाल ।
सूबे में वित्तीय अनियमितता और घोटालों के प्रकरण लगातार सामने आ रहे हैं लेकिन फिर भी जिम्मेदार वित्त अधिकारियों से विभागों एवं संगठनों की वित्तीय स्थिति के सम्बन्ध में मांगी जाने वाली त्रैमासिक रिपोर्ट पर शासन के वित्त विभाग मौन है जिसके कारणों को तलाशना जरूरी है।
बताते चलें कि फायनेंसियल हैंडबुक वाल्यूम 5 के, भाग 1 के, प्रस्तर 189 व अन्य में दिए गये प्रावधानों का पालन कराया जाना शासन के वित्त विभाग की जिम्मेदारी है लेकिन इसमें लापरवाही हर स्तर पर देखी जा रही है. शासन स्तर पर वित्त विभाग के ढीले ढाले रवैये के अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि फायनेंसियल हैंडबुक में दिए गए प्रावधानों की कोई खोज खबर नहीं ली जाती है. जिससे कि वित्तीय अनियमितताओं और घोटालों पर काफी हद तक रोक लगायी जा सकती है।
फायनेंसियल हैंडबुक में दिए गए प्रावधान के अनुसार प्रत्येक विभाग में पदासीन वित्त सेवा के सर्वोच्च अधिकारी को इस बात की “त्रैमासिक रिपोर्ट” भेजनी चाहिए कि विभाग में सभी वित्तीय मामले सही हैं अन्यथा गड़बड़ी की स्थिति में उसका सम्पूर्ण विवरण शासन के वित्त विभाग को भेजा जाना आवश्यक होता है. लेकिन अपनी जिम्मेदारियों से मुह छिपाते इन अफसरों पर शासन में बैठे जिम्मेदारों का मौनव्रत भी कहीं न कहीं इसका जिम्मेदार है. यदि सरकार को अपनी जीरो टोलरेंस की नीति को प्रभावी तौर पर कायम रखना है तो इस वित्तीय कुप्रबंधन पर भी लगाम लगाते हुए इसके पीछे के खेल को समझना होगा।
फायनेंसियल हैंडबुक वाल्यूम 5 में निम्न बातों का जिक्र किया गया है।
“In every department a Accounts Section has been established whose in-charge is the Senior Finance and Accounting Services officer appointed in that department. This Accounts Section provides help to the Head of the Department on financial matters related to that department. Budget Control, proper maintenance of records related to accounts and compliance of financial discipline in the department according to rules indicated in financial hand-book is carried out by Financial Controller appointed in that department.”
Internal Audit, testing of budget
“Internal Audit, testing of budget estimate, sending it to the department and to ensure that all material purchasing done in the department are in accordance with the financial rules are also the responsibilities of Financial Controller.”
Issuing C.C.L in remittance
“The head of the Accounts Organisation will submit a report in the months of April, July, October and January every year to the Finance Department of the Government giving brief details of the work done by him during the preceding quarter, the serious irregularities noticed by the Accounts Organisation in the course of internal audit or otherwise and the important cases in which the Head of the Department differed with him.”
पारदर्शिता, जीरो टोलरेंस और अपव्यय रोकने की वकालत करने वाली योगी सरकार जब तक इस बुनियादी जिम्मेदारियों के प्रति लापरवाह अधिकारियों/कर्मचारियों पर लगाम नहीं लगाएगी तब तक उसका यह मिशन पूरा नहीं हो सकता. मोदी-योगी की एक-एक रूपये के हिसाब की मंशा तभी मूर्त रूप लेगी जब इस तरह की जिम्मेदारियां पूरी जिम्मेदारी से पूरी होंगी. {साभार)