जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से ज्योतिष में चंद्रमा परिचय…..

जीवन मंत्र । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से ज्योतिष में चंद्रमा परिचय…..


चंद्रमा एक समय ग्रह है। यह कर्क राशि का स्वामी है। और यह ग्रह वृश्चिक राशि के ३ अंश पर परम नीच का होता है। यह ग्रह शुक्ल पक्ष में ज्यादा बलवान माना जाता है इसके अतिरिक्त चंद्र जल तत्त्व प्रधान, वायव्य (उत्तर-पश्चिम) दिशा का स्वामी, रात्रि बाली, चर संज्ञक, एवं सत्व गुणी है। यह श्वेत, शुभ एव गौर वर्ण का, वात-कफ प्रकृति, चंचल स्वभाव वाला, और तरुण स्त्री ग्रह है। यह ग्रह वायव्य दिशा, सोमवार, दक्षिणायन, चतुर्थ भाव एवं रात्रि को बलि होता है।
पृथ्वी के सबसे नजदीक भ्रमणशील होने के कारण शास्त्रों में चंद्रमा को मन (अंतःकरण) का प्रतीक (चंद्रमा मनसो जातः) कहा गया है। चंद्रमा को नैसर्गिक तौर पर सुरु, मंगल, बुध, गुरु का मित्र तथा शुक्र, शनि, राहु का शत्रु माना गया है। चौथे भाव का कारक होने पर चंद्रमा को मन, संवेदनाओ, माता, धन, स्त्री का कारक माना गया है। इसके अतिरिक्त चंद्रमा से स्त्री सुख, सौंदर्य, भावनात्मक, कल्पनाशक्ति, ज्योतिष में रुचि, सम्पति, यात्रा, राज्य कृपा, चावल, श्वेत वस्त्र, लवण आदि का भी विचार किया जाता है। उच्चराशिस्थ एवं शुक्ल पक्षीय पूर्ण चंद्रमा शुभ तथा नीच राशिस्थ या कृष्ण पक्ष षष्ठी से अमावस्य तक का चंद्र और राहु आदि पाप ग्रह युत या दृष्ट चंद्र क्षीण एवं अशुभ फल माना जाता है।
चंद्र अशुभ होने से जातक अतिचंचल, उतावलापन, उद्धिग्न, स्वार्थी, विलासी अस्थिर एव अशान्त मन वाला होता है। अरिष्टकर होने से मानसिक दौर्बल्य, उन्माद, मस्तिष्क विभ्रम, नेत्र पीड़ा, आलस्य, मानसिक पीड़ा व्याकुलता, शीत-कफ दोष, कंठ से हृदय तक के रोग, एवं स्त्री जनित गर्भाशय के रोग भी अशुभ चंद्र के कारण होते है। जातक का स्वभाव छिद्रा वेशी, मिथ्या भ्रमणशील, जिद्दी, क्रोधी दोषदर्शी, मिथ्याभाषी, अनावश्यक खर्चीला, एवं परेशान व चिड़चिड़े स्वभाव का होता है।इनको गुप्त रोग आदि होने की भी संभावनाएं रहती है। शुभ प्रभाव में जातक का उत्तम स्वास्थ्य, उदार हृदय, सुंदर बदन और आकर्षक नेत्र भूमि-भवन, धन वाहनादि सुख सुविधाओं से युक्त, व्यवहार कुशल, हंसमुख एवं परोपकारी स्वभाव का होता है।

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