लखनऊ 06 नवम्बर। आज की कथा के प्रातः कालीन सत्र मे परिवार वयवस्था ,गृहस्थ जीवन की महत्ता एवं सायं काल के सत्र मे *शिशु निर्माण उनके सभी संस्कारों की महत्ता तथा गुरुवर की ब्रहमा की भूमिका*
शान्ति कुन्ज हरिद्वार के आचार्य सत्य प्रकाश ने चारो आश्रमो पर विस्तार से बात करते हुए ब्रह्मचर्य गृहस्थ आदि आश्रम में गृहस्थ को ही सबसे श्रेषठ बताते हुए बताया कि इस आश्रम के माध्यम से हम सब की सेवा कर सकते है परिवार मे रहने वाले सदस्यो के अतिरिक्त रिशतेदारों मित्रो नातेदारो मंदिर भिक्षुको पशुओ पक्षियों चीटी चुनगुन सहित सभी की से अपने द्वारा कमाये गये धन का उपयोग करता है। अपने लिये कुछ हो न हो लेकिन माता पिता अतिथियों के लियेसब कुछ करना चाहता है।
सबका हो जाये अपने लिये कुछ न भी बन पङे तो भी ठीक है। इसीलिये गुरुवर ने कहा कि परिवार में चार संयम आहार इन्द्रिय वाणी संयम का बहुत महत्व बताया है और कहा है की गृहस्थ एक तपोवन है जिसमें सेवा सहायता सहिष्णुता की साधना करनी पङती है।परिवार आश्रम में जो कुछ सहा जाता है वह अन्य आश्रमों में नहीं किया जा सकता है
आज की कथा के मध्य निशा विमला प्रभा बहनो ने अनेकों गीत प्रस्तुत किये जिसमे से*पवन सुगन्धित जैसे मन को नन्दनवन कर देता* ,*आओ करे हम गुरू को नमन*, *सुनो कथा प्रज्ञा पुराण की , *नारी ही सतयुग लायेगी* बहुत ही पसन्द किये गये
सायं काल के सत्र मे आचार्य सत्य प्रकाश जी ने शिशुओं के निर्माण के बारे में जानकारी देते हुए सभी 16 संस्कारो के बारे में विस्तार से बात करते हुए बताया कि अचछे बालक के निर्माण के लिए आवश्यक है कि उनके सभी संसकार समय-समय पर अवश्य कराने चाहिये। उनहोंने कहा कि यह हम सब पर गुरुवर की कृपा है जिसके कारण हम मे सहकार का भाव परिवार के सदस्यो के लिये बने रहते है