बुंदेलखंड की प्राकृतिक सुंदरता अवैध खनन से हो रही है नष्ट बनते जा रहे हैं कंक्रीट के जंगल….

झांसी।उत्तर प्रदेश की ऐतिहासिक नगरी झांसी मे शहर के बाहरी छोर पर बुंदेलखंड विश्वविद्यालय है, ऐतिहासिक एवं प्राकृतिक पर्यावरण की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण नगर मे कैमासन पहाड़ी के निकट स्थित है। लाल मिट्टी के इस विशालकाय पहाड़ के एक ओर झांसी कानपुर राजमार्ग पर बुंदेलखंड विश्वविद्यालय है और दूसरी ओर करगुंवा नामक गांव की बसावट है। पहाड़ी के शीर्ष पर पौराणिक महत्व का कामाख्या देवी का मंदिर है। लगभग आठ सौ साल पुराने चंदेल कालीन इस मंदिर का नाम कालांतर में कैमासन मंदिर पड़ गया और इसी के नाम पर समूची पहाड़ी को कैमासन पहाड़ी के नाम से पहचान मिली। मंदिर के दांयी ओर पहाड़ी की तलहटी में स्थित घने वन क्षेत्र में सेना की छावनी है।

मंदिर के बांयी ओर स्थित करगुवां गांव के कुछ निवासियों की मिलीभगत से झांसी शहर के कुछ भू माफिया गिरोहों ने गांव और विश्वविद्यालय की ओर से पहाड़ी पर कब्जा कर लिया है। यह सिलसिला विगत पांच सालों से जारी है। साल 2015 में एक पत्रकार द्वारा उत्तर प्रदेश के राज्यपाल महामहिम राम नाइक जी के संज्ञान में यह विषय लाया गया था। इस पर तत्काल कार्रवाई करते हुये राज्यपाल सचिवालय ने पत्रांक पी-9582/जी. एस. दिनांक 20/11/2015 के द्वारा झांसी के जिलाधिकारी को पहाड़ी पर चल रहे अवैध खनन, निजी सड़क निर्माण एवं अन्य गतिविधियों को तत्काल प्रभाव से रोकने का आदेश दिया। इस पर अमल करते हुये उस समय न सिर्फ अवैध गतिविधियों को रोका गया बल्कि, पूरी पहाड़ी पर राजस्व विभाग ने उक्त क्षेत्र को ‘ग्रीन बेल्ट’ होने और सरकारी जमीन होने का हवाला देते हुये भविष्य में ऐसी गतिविधियों को आपराधिक एवं प्रतिबंधित करार दिया था। पिछले साल 2018 में पहाड़ी को काट कर स्थानीय प्रशासन की अनुमति से समाज कल्याण विभाग ने एक भवन निर्माण कर रैनबसेरा बना दिया। इसके बाद से न सिर्फ इसके आसपास अवैध नर्सिंग होम बन गये हैं बल्कि पूरे पहाड़ को फिर से भू माफिया गिरोहों ने काटकर चार पहिया वाहनों का कच्चा मार्ग बना कर प्लाटिंग शुर कर दी है।

इसकी पुष्टि इन तस्वीरों से भी होती है। स्वयं स्थानीय प्रशासन द्वारा राज्यपाल महोदय के आदेश की अवहेलना की शुरुआत किये जाने के कारण समूचे पहाड़ पर कब्जे के लिये स्थानीय गिरोहों को प्रोत्साहन मिला और इस वजह से पर्यावरण संरक्षण की दिशा में लगे स्थानीय संगठन एवं सामाजिक कार्यकर्ता जिला प्रशासन से शिकायत करने में हिचक रहे है। जब स्थानीय लोगों से इस बारे में पूछताछ की तो बताया गया कि ये अवैध गतिविधियां स्थानीय प्रशासन के संरक्षण में चल रही हैं। इतना ही नहीं पहाड़ी से लगे समूचे इलाके में अवैध रूप से संचालित दर्जनों नर्सिंग होम का मेडिकल कचरा भी भारी मात्रा में पिछले कुछ सालों से लगातार पहाड़ी क्षेत्र में फेंका जा रहा है। इस कारण से वन क्षेत्र को गंभीर पर्यावरणीय नुकसान का सिलसिला सतत रूप से जारी है। भवन एवं सड़क निर्माण में काम आने वाली लाल मिट्टी के इस पहाड़ी से अवैध खनन का आलम यह है कि पिछले साल नवंबर 2018 में खनन के दौरान पहाड़ दरकने से भारी मात्रा में ढही मिट्टी में दबकर तीन मजदूरों की दर्दनाक मौत का हादसा भी हुआ। मगर स्थानीय प्रशासन ने खनन रोकने की महज खानापूर्ति जरूर की लेकिन इसके कुछ समय बाद ही यह सिलसिला खतरनाक रुप लेकर फिर से बदस्तूर जारी हो गया । अभी हालही मे बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय के पीछे पहाड़ी को काटकर समतल करने के काम के लिए बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय प्रशासन से इस सड़क निर्माण के लिए इस पहाड़ी से एलएनटी निकालने के लिए रास्ता देने को कहा था। इसका मतलब है कि रास्ता बनाने के लिए पहाड़ी को समतल किया जाएगा। खनिज विभाग ने सड़क बनाने की अनुमति दे दी है, लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन ने पहाड़ी को काटकर रास्ता देने से सा़फ इन्कार कर दिया है। इसके लिए कुलपति प्रो. जेवी वैश्मपायन ने पिछले दिनों बुन्देलखण्ड के सम्पत्ति अधिकारी के नेतृत्व में एक टीम गठित कर रिपोर्ट देने को कहा था। इस समिति ने बुन्देलखण्ड के पीछे पहाड़ी पर अवैध रूप से चल रहे खनन की रिपोर्ट दी। इस रिपोर्ट के आधार पर कुलसचिव नारायण प्रसाद ने जिलाधिकारी शिवसहाय अवस्थी को पत्र लिखकर बुन्देलखण्ड के पीछे स्थित पहाड़ी पर हो रहे अवैध खनन को रोकने को कहा है। पत्र में कहा गया है कि कैमासन माता के प्राचीन मन्दिर की पहाड़ी के नीचे विश्वविद्यालय स्थित है। बुन्देलखण्ड परिसर स्थित मेजर ध्यानचन्द स्टेडियम के पास की पहाड़ी में खनन कार्य चल रहा है, जिसके कारण इसमें कटाव हो रहा है और इसकी मिंट्टी परिसर में आने की आशंका है। पहाड़ी पर बहुत पेड़ व हरियाली भी है, जो कटान से नष्ट हो जाएंगे। बुन्देलखण्ड में पेड़-पौधों की कमी है, जिसको पूरा करने के लिए शासन द्वारा पौधारोपण किया जा रहा है, दूसरी तरफ पहाड़ी पर खनन से पौधे बर्बाद हो रहे हैं। इस खनन से पर्यावरण को भी काफी नु़कसान होने के साथ बुन्देलखण्ड की सुन्दरता भी नष्ट हो जाएगी। बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय प्रशासन ने मुख्य सचिव, राजस्व परिषद के अध्यक्ष, अपर मुख्य सचिव, मण्डलायुक्त को भी इस पत्र की प्रतिलिपि भेजी है। मगर कोई स्थाई परिणाम सामने नहीं आया।
यह स्थिति सिर्फ झांसी की ही नहीं, बल्कि नदी, पहाड़ और अन्य प्राकृतिक संसाधनों की अनमोल संपदा से नवाजे गये समूचे बुंदेलखंड में प्रकृति का अनियंत्रित अवैध दोहन जारी है। इसका ज्वलंत उदाहरण कैमासन पहाड़ी के दूसरे छोर पर कानपुर राजमार्ग से झांसी शहर के प्रवेश द्वार पर मौजूद एक झील है जो इस शहर का प्रमुख जलस्रोत होती थी। लेकिन सौ एकड़ से अधिक क्षेत्रफल वाली यह झील पिछले कुछ सालों में अवैध प्लाटिंग के कारण अब अपना वजूद खे चुकी है। शहर को अप्रतिम प्राकृतिक सौंदर्य से नवाजने वाली कैमासन पहाड़ी पर अवैध कब्जे और पर्यावरण नियमों की अनदेखी कर इसे नष्ट करने के कुकृत्य में भूमाफिया गिरोहों से अधिक स्थानीय प्रशासन की भागीदारी, इस समस्या को वीभत्स स्वरूप प्रदान करता है। पहाड़ी के वनक्षेत्र को नष्ट कर बनाया गये अवैध निर्माण पर्यावरण के प्रति इस अपराध में स्थानीय प्रशासन की भागीदारी को उजागर करने का पुख्ता प्रमाण है, नगर की प्राकृतिक पहाड़ियां अब अंतिम सांसें गिन रही, प्रकृति की इस अनमोल देन को बचाने के लिये तत्काल इस पर संज्ञान लेते हुये उच्च स्तरीय रोक लगाई जानी चाहिए और सख्त कार्रवाई अमल में लाई जानी चाहिए अन्यथा झाील और पहाड़ी के निचले क्षेत्र की तरह इस पहाड़ी का शीर्ष भाग भी जल्द ही अवैध कब्जों की भेंट चढ़ कर अपने वजूद को खाे बैठेगा। यह इलाके के पर्यावास के लिये भविष्य के खतरे का भी संकेत है। राज्य व केंद्र सरकारों को हालात की गंभीरता के मद्देनजर, समस्या के स्थायी समाधान की दिशा में तत्काल प्रभावी कदम उठाने की आवश्यकता है वरना बुंदेलखंड की प्राकृतिक सुंदरता पूर्णता नष्ट होकर मात्र कंक्रीट के जंगल में तब्दील हो जाएगी।

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