नई दिल्ली।
अयोध्या राम मंदिर जमीन विवाद के समाधान के लिए गठित मध्यस्थता समिति सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार गुरुवार को बंद लिफाफे में प्रगति रिपोर्ट पेश करेगा। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने 11 जुलाई को एक याचिका पर समिति से यह रिपोर्ट मांगी थी। विवादित जमीन के सभी पक्षकारों ने दिल्ली स्थित उत्तर प्रदेश सदन में सोमवार को आखिरी बैठक की थी।
बता दें कि मध्यस्थता समिति ने 18 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट को प्रगति रिपोर्ट जमा कराई थी। तब मुख्य न्यायाधीश गोगोई ने कहा था कि मध्यस्थता समिति की रिपोर्ट गोपनीय है इसलिए इसे अभी रिकॉर्ड पर नहीं लिया जा रहा। कोर्ट ने कहा था कि समिति जल्द अंतिम रिपोर्ट सौंपे। मुख्य न्यायाधीश इस मामले की तीन अगस्त की बजाए दो अगस्त को सुनवाई करेंगे।
गौरतलब है कि एक हिंदू पक्षकार ने बीते नौ जुलाई को उच्चतम न्यायालय से इस मामले में शीघ्र सुनवाई का अनुरोध करते हुए आवेदन दायर किया था। पक्षकार गोपाल सिंह विशारद की ओर से अदालत में कहा गया था कि मध्यस्थता प्रक्रिया में कोई खास प्रगति नहीं हो रही है। इसलिए जल्द सुनवाई के लिए तारीख लगाई जाए। न्यायालय ने आवेदन पर विचार करने को कहा था।
विशारद की ओर से पेश वरिष्ठ वकील पीएस नरसिंहा ने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की पीठ के समक्ष इस मामले का उल्लेख करते हुए कहा कि मध्यस्थता प्रक्रिया के पहले चरण में खास प्रगति नहीं हुई है। इसलिए वह चाहते हैं कि मामले का निपटारा करने के लिए तारीखें लगाई जाएं। इस पर पीठ ने उन्हें आवेदन दाखिल करने की इजाजत दी थी।
★मार्च में बनी थी मध्यस्था समिति
सुप्रीम कोर्ट ने आठ मार्च को अदालत के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस एफएमआई खलीफुल्ला के नेतृत्व में तीन सदस्यीय मध्यस्थता पैनल का गठन किया था। समिति में पूर्व जस्टिस एफएम कलिफुल्ला, आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर, सीनियर वकील श्रीराम पंचू शामिल हैं। मई में जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस डीवाय चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस.अब्दुल नजीर की बेंच ने मध्यस्थता समिति को इस मामले को सुलझाने के लिए 15 अगस्त तक का समय दिया था। बेंच ने सदस्यों को निर्देशित किया था कि आठ हफ्तों में मामले का हल निकालें। पूरी बातचीत कैमरे के सामने हो।