विपक्षी दलों के लिए अखिलेन्द्र ने भेजा खुला पत्र भूमि आयोग का गठन हो और भूमि सुधार लागू किया जाए

सोनभद्र, 20 जुलाई 2019, दिल दहला देने वाला उभा नरसंहार काण्ड़ महज कानून व्यवस्था का मामला नहीं है बल्कि यह प्रदेश में भूमि सम्बंधों में बड़े बदलाव की मांग करता है। इसलिए अगर विपक्ष सही मायने में उभा गांव के पीड़ित परिवारों को न्याय दिलाना चाहता है तो उसे जमीन के सवाल को हल करने के लिए भूमि आयोग व भूमि सुधार के लिए सरकार पर दबाब डालना चाहिए ताकि भविष्य में अन्य जगहों पर उभा काण्ड़ जैसे आदिवासियों, दलितों और गरीबों के नरसंहार को रोका जा सके। प्रदेश में चल रहे विधानसभा सत्र में सपा, बसपा, कांग्रेस के लोग योगी सरकार को बाध्य करें कि वनाधिकार कानून को अक्षरशः लागू करे और जिन जमीनों पर आदिवासी व वनाश्रित बसे हुए है उन्हें पट्टा दें, गांव सभा की अतिरिक्त जमीन की घोषणा हो उन्हें खेतिहर मजदूरों और गरीब किसानों को बांटा जाए, जो जमीनें औद्योगिक विकास के लिए ली गई और भूमाफिया ने कब्जा कर रखा है उसे किसानों को वापस किया जाए, सभी फर्जी ट्रस्ट की जांच हो तथा उनके कब्जे में पड़ी जमीनों को सरकार अधिगृहित करें और गरीबों में बांटकर सहकारी खेती के लिए उन्हें सहयोग दे, उन्हें प्रोत्साहित करें। विपक्ष सरकार पर दबाब बनाएं कि वह उभा गांव में तत्काल प्रभाव से फर्जी ट्रस्ट और उसके खरीद फरोख्त की न्यायिक जांच कराये, इस जमीन को सरकार अधिगृहित करें और जो लोग उस पर बसे हुए है उन्हें उन जमीनों को पट्टा दें, मृतक परिवार के लोगों को वाजिब मुआवजा दें, उन पर लगे गुण्ड़ा एक्ट के मुकदमें वापस लें। यह बातें आज विपक्षी दलों के नाम जारी अपने खुले पत्र में स्वराज अभियान के राष्ट्रीय नेता अखिलेन्द्र प्रताप सिंह ने उठाई।
अखिलेन्द्र का पत्र प्रेस को जारी करते हुए स्वराज इंडिया के नेता दिनकर कपूर ने बताया कि पत्र में विपक्ष से कहा गया है कि वह जमीन के सवाल को हल करने के बारे में अपनी स्थिति स्पष्ट करें। भूमि आयोग का गठन व भूमि सुधार प्रदेश के लिए बेहद जरूरी है। प्रदेश में जमीन के सवाल के हल के लिए मंगलदेव विशारद आयोग से लेकर तमाम कमेटियों की संस्तुतियां पड़ी हुई है। इधर के वषों में भूमि के अधिग्रहण का मुद्दा बड़े आंदोलन का विषय प्रदेश में रहा है। भूमि सुधार प्रदेश में कृषि विकास, रोजगार और सामाजिक न्याय की आधारशीला है। ‘जो जमीन को जोते बोए सो जमीन का मालिक होए‘ का नारा केवल कम्युनिस्टों का ही नहीं, सोशलिस्टों का भी रहा है और डा0 अम्बेडकर ने भी भूमि के राष्ट्रीयकरण की जोरदार वकालत की थी। लेकिन यह दुखद है कि सपा और बसपा की सरकारों ने भूमि सुधार तो लागू नहीं ही किया मनमाने ढ़ग से किसानों की भूमि का अधिग्रहण किया और लम्बे समय से बने वनाधिकार कानून को प्रदेश में ईमानदारी से लागू होने नहीं दिया। पत्र में कहा गया कि अगर विपक्ष उभा काण्ड़ से सही सीख लेना चाहता है तो उसे यह मानना होगा कि प्रदेश में अभी भी जमीन का सवाल हल

करना बाकी है और भूमि आयोग के गठन के लिए उसे

सरकार पर दबाब डालना चाहिए ताकि भविष्य में उभा काण्ड़ जैसा काण्ड़ न हो, आदिवासियों, दलितों और गरीबों को नरसंहार से बचाया जा सके।
उधर आज स्वराज अभियान के जिला संयोजक कांता कोल के नेतृत्व में एक टीम ने उभा गांव के पीड़ित परिवारों से मुलाकात की। टीम में सेवालाल कोल, श्रीकांत सिंह, केशो मौर्या आदि लोग रहे। वहीं दुद्धी में मजदूर किसान मंच के जिला संयोजक राजेन्द्र प्रसाद गोंड़ की अध्यक्षता में हुई बैठक में आदिवासियों के नरसंहार की तीखी निंदा की गयी। बैठक में मौजूद नेताओं ने कल आदिवासी वनवासी महासभा के नेता व मुरता प्रधान चंद्रदेव गोंड़ को नजरबंद करने की भी कड़ी निंदा की। बैठक में कृपाशंकर पनिका, मंगरू प्रसाद गोंड़, रामदेव गोंड़, इंद्रदेव खरवार, मनोहर गोंड़ आदि मौजूद रहे।

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