विश्व विरासत में शामिल भारत के 36 टूरिस्ट प्लेस जो कई मायनों में हैं खास

[ad_1]


लाइफस्टाइल डेस्क. भारत में यूनेस्को अब तक 36 टूरिस्ट प्लेसेस को वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स में शामिल कर चुका है। यूनेस्को किसी भी जगह को वर्ल्ड हेरिटेज में शामिल करते समय कई बातों का ध्यान रखता है। जैसे उसका महत्व, खासियत, संस्कृति और इतिहास। आज वर्ल्ड हेरिटेज डे हैइस मौके पर जानते हैं भारत में घोषित वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स और उनकी खासियत…

    • दुनिया के सात अजूबों में शामिल ताजमहल के आगरा में स्थित है। इसे मुग़ल बादशाह शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताजमहल की याद में बनवाया था।
    • ताजमहल मुग़ल वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना है। इसकी वास्तु शैली फ़ारसी, तुर्क, भारतीय और इस्लामी वास्तुकला के घटकों का अनोखा मेल है।
    • ताजमहल का केंद्र बिंदु है एक वर्गाकार नींव आधार पर बना सफेद संगमरमर का मक़बरा।
    • खजुराहो के कलात्मक मंदिर का निर्माण 950 से 1050 एडी के बीच 100 साल के पीरियड में हुआ। उस वक्त खजुराहो में कुल 85 मंदिर बनाए गए थे, जिनमें अब सिर्फ 22 बचे हुए हैं।
    • खजुराहो मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित है जो अपने प्राचीन एवं मध्यकालीन मंदिरों के लिये प्रसिद्ध है। यह मध्य प्रदेश के खजुराहो को प्राचीन काल में खजूरपुरा और खजूर वाहिका के नाम से भी जाना जाता था। यहां बहुत बड़ी संख्या में प्राचीन हिन्दू और जैन मंदिर हैं।
    • मंदिरों का शहर खजुराहो पूरे विश्व में मुड़े हुए पत्थरों से निर्मित मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। इसे इसके अलंकृत मंदिरों की वजह से जाना जाता है जो कि देश के सर्वोत्कृष्ठ मध्यकालीन स्मारक हैं।
    • संभोग की विभिन्न कलाओं को इन मंदिरों में बेहद खूबसूरती के उभारा गया है। इसका निर्माण चंदेल राजाओं ने कराया था।
    • हम्पी, कर्नाटक की तुंगभद्रा नदी के किनारे स्थित है। ये प्राचीन गौरवशाली साम्राज्य विजयनगर का अवशेष है। इसीलिए इतिहास और पुरातत्व के लिहाज से हम्पी बेहत अहम जगह मानी जाती है।
    • मान्‍यता के अनुसार जब राम लक्ष्मण के साथ सीता को ढूंढने निकले थे, तब राम बाली और सुग्रीव से मिलने यहां आए थे। यहां हर साल करीब 15 लाख पर्यटक आते हैं।
    • हम्पी को प्राचीन काल में कई नामों से जाना जाता था, जैसे- पम्पा क्षेत्र, भास्कर क्षेत्र, हम्पे, किष्किंधा क्षेत्र आदि। हम्पी नाम कन्नड़ शब्द हम्पे से पड़ा है और हम्पे शब्द तुंगभद्रा नदी के प्राचीन नाम पम्पा से आया था।
    • हम्पी का इतिहास तो वैसे काफी प्राचीन है, लेकिन यहां विजयनगर साम्राज्य की स्थापना 1336 में हरिहर राय और बुक्का राय ने की थी। दोनों भाई थे। कहा जाता है कि कुछ समय में ही ये संपन्न और धनी राज्य बन गया।
    • महाराष्‍ट्र में औरंगाबाद शहर से लगभग 107 किलोमीटर की दूरी पर अजंता की ये गुफाएं पहाड़ को काट कर विशाल घोड़े की नाल के आकार में बनाई गई हैं।
    • अजंता में 29 गुफाओं का एक सेट बौद्ध वास्‍तुकला, गुफा चित्रकला और शिल्‍प चित्रकला के उत्‍कृष्टतम उदाहरणों में से एक है। इन गुफाओं में चैत्‍य कक्ष या मठ है, जो भगवान बुद्ध और विहार को समर्पित हैं, जिनका उपयोग बौद्ध भिक्षुओं द्वारा ध्‍यान लगाने और भगवान बुद्ध की शिक्षाओं का अध्‍ययन करने के लिए किया जाता था।
    • गुफाओं की दीवारों तथा छतों पर बनाई गई ये तस्‍वीरें भगवान बुद्ध के जीवन की विभिन्‍न घटनाओं और विभिन्‍न बौद्ध देवत्‍व की घटनाओं का चित्रण करती हैं। अजंता में निर्मित कुल 29 गुफाओं में वर्तमान में केवल 6 ही, गुफा संख्या 1, 2, 9, 10, 16, 17 शेष है। इन 6 गुफाओं में गुफा संख्या 16 एवं 17 ही गुप्‍तकालीन हैं। अजंता के चित्र तकनीकी दृष्टि से पूरी दुनिया में प्रथम स्थान रखते हैं।
    • एलोरा की गुफाएं न केवल तीन धर्मों (बौद्ध, ब्राह्मणमत और जैन धर्म) की साक्षी हैं बल्कि यह सहिष्णुता की भावना को भी दर्शाती हैं जो प्राचीन भारत की विशेषता थी, जहां इन तीनों धर्मों को अपने धार्मिक स्थलों और अपने समुदायों को एक ही स्थान पर स्थापित करने का अवसर मिला।
    • महाराष्ट्र में, औरंगाबाद के निकट 2 किलोमीटर से भी अधिक के क्षेत्र में फैले ये 34 बौद्ध मठ और मंदिर, एक ऊंची बेसाल्ट की खड़ी चट्टान की भित्ति में साथ-साथ खोद कर निकाले गए थे।
    • अपनी 600 से 1000 ईसवी के बीच के स्मारकों की निरंतर श्रृंखला के साथ, एलोरा की गुफाएं प्राचीन भारत की सभ्यता को पुनर्जीवित करती हैं।
    • बोधगया बिहार में स्थित है और ऐतिहासिक रूप से उरूवेला, समबोधि, वज्रासन या महाबोधि के नाम से जाना जाता था। बोधगया अपने कद्रदानों को आध्यात्म और वास्तुकला आश्चर्य का अनुभव कराता है।
    • बौद्ध साहित्य के अनुसार, गौतम बुद्ध फाल्गू नदी के किनारे आए और बोधिवृक्ष के नीचे साधना की। बोधगया ही वह स्थान है जहां बुद्ध ने अपने ज्ञान की खोज को समाप्त किया और यहीं उन्हें अपने प्रश्नों के उत्तर मिले।
    • बोधगया पर्यटन के तहत बुद्ध की 80 फीट ऊंची प्रतिमा, कमल का तालाब, बुद्ध कुण्ड, चीनी मन्दिर और मठ, बर्मीस मंदिर, भूटान का बौद्ध मठ, राजायत्न, ब्रह्मयोनि, अन्तराष्ट्रीय बौद्ध हाउस और जापानी मन्दिर, थाई मन्दिर और मठ, तिब्बती मठ और एक पुरातत्वीय संग्रहालय जैसे कई अन्य रोमांचक आकर्षणों भी आते हैं।
    • बेहद खूबसूरत और रहस्यमयी कोणार्क का सूर्य मंदिर पुरी के उत्तर पूर्वी किनारे पर समुद्र तट के पास बना है। कोणार्क शब्द, कोण और अर्क शब्दों के मेल से बना है।
    • यह 13वीं शताब्दी का सूर्य मंदिर है जो ओडिशा के कोणार्क में स्थित है। मंदिर के गहरे रंग के लिये इसे काला पगोडा कहा जाता है। ऐसा माना जाता है की यह मंदिर पूर्वी गंगा साम्राज्य के महाराजा नरसिंहदेव 1 ने 1250 CE में बनवाया था।
    • यह मंदिर बहुत बडे रथ के आकार में बना हुआ है। मंदिर के पहिये धूपघड़ी का काम करते हैं जिसकी सहायता से हम दिन-रात दोनों ही समय सही समय का पता लगा सकते है।
    • हाल ही में सरकार की ‘एडॉप्ट ए हेरिटेज’ स्कीम के तहत डालमिया ग्रुप ने लालकिला को पांच साल के कॉन्ट्रेक्ट पर इसे गोद लिया है। यहां जमी हजारों क्विंटल और कई फीट धूल हटाने औरइसे संवारने के लिए डालमिया ग्रुप हर साल करीब 5 करोड़ रुपए खर्च कर रहा है।
    • मुगल काल में इसे किला-ए-मुबारक के नाम से जाना जाता था। लाल किला मुगल बादशाह शाहजहां की नई राजधानी, शाहजहांनाबाद का महल था। यह दिल्ली शहर की सातवीं मुस्लिम नगरी थी। जिस मुगल साम्राज्‍य की नींव मुगल बादशाह बाबर ने 16वीं सदी में रखी थी, उसका अंत भी इसके दीवान-ए-खास सेअंतिम सम्राट बहादुरशाह जफर की रुखसती के साथहुआ।
    • लाल किले की प्राचीर से ही पहली बार प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने घोषणा की थी कि, अब भारत एक स्‍वतंत्र देश है।
    • लाल पत्थरों में कमाल की वास्तुकला कभी काेहिनूर हीरे से चमकी तो कभी क्रांतियों के दमन के कारण ये पत्थर और लाल हो गए।
    • सांची बौद्ध स्तूप के लिए जाना जाता है। यह मध्यप्रदेश के विदिशा जिले से महज 10 किलोमीटर दूर है। सांची के स्तूप का निर्माण ईसा पूर्व से 12वीं शताब्दी तक चलता रहा है।
    • सांची को काकनाय, बेदिसगिरि, चैतियागिरि आदि नामों से जाना जाता था। सर्वमान्य तथ्य यह है कि कलिंग युद्ध की भयानक मारकाट के बाद अशोक ने कभी न युद्ध करने का निर्णय लिया। इस युद्ध अशोक ने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया। उसने पूरे भारत में स्तूपों का निर्माण कराया जिनमें से सांची भी एक था।
    • सांची में चैत्य, विहार, स्तूप और मंदिरों को देखा जा सकता है। यह हैरानी का विषय है कि भारत के सबसे पुराने मंदिरों में से कुछ मंदिर यहां है।
    • दक्षिणी भारत का महान चोल मन्दिर चोल साम्राज्‍य और तमिल सभ्‍यता की वास्तुकला और विचारधारा के विकास का अनोखा साक्ष्य है।
    • यह द्रविड़ शैली का मंदिर है जिसकी विशेषता पिरामिड टावर के रूप में है। मंदिर के भीतरी भाग में जहां देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित की जाती थी, उसे गर्भगृह कहा जाता था।
    • विमान चोलकालीन मंदिरों की एक महत्वपूर्ण विशेषता थी।इस अ
    • चोलकालीन मंदिरों में राजाओं की मूर्तियां स्थापित की जाती थी। इसके पीछे मुख्य उद्देश्य राजा को देवता के रूप में प्रचारित करना था।
    • यह असम का एकमात्र राष्ट्रीय उद्यान है। काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान एक सींग वाले गैंडे (राइनोसेरोस, यूनीकोर्निस) के लिए जाना जाता है। काजीरंगा में विभिन्न प्रजातियों के बाज, विभिन्न प्रजातियों की चीलें और तोते भी पाए जाते हैं।
    • इस उद्यान में जल स्रोतों के आस-पास कुछ पहरे की मीनारें बनवाई गयी हैं, जहां से आप आस-पास के सुंदर नजारों का आनंद उठा सकते है। इसी के साथ इस ऊंचाई से यहां की हाथी घास में छिपे बैठे जानवरों को भी देख सकते हैं।
    • यहां पर गैंडे, हाथी, एशियाई भैंसे, धमाचौकड़ी करते ह‍िरन और बड़ी संख्‍या में बाघ देखने को म‍िलते हैं। इसके अलावा यहां पर खूबसूरत से पक्षी भी पयर्टकों को अपनी ओर अ‍ाकर्ष‍ित करते हैं।
    • 430 वर्ग किलोमीटर में फैले इस उद्यान में सर्दियों के मौसम में साइबेरिया से कई मेहमान पक्षी भी आते हैं। उबड़-खाबड़ मैदानों, लंबी-ऊंची घास वाले इस उद्यान में गजब की शांत‍ि भी म‍िलती है।
    • महाबलीपुरमदक्षिण-पूर्व भारत की पल्लव सभ्यता का बेहतरीन साक्ष्य है। यह मंदिर शिव पंथ के मुख्य केन्द्रों में एक है। इसके रथ (रथ के रूप में मंदिर), मण्डप (गुफा मंदिर) खुली हवा में विशाल आराम स्थल शिव संस्कृति के प्रमुख केन्द्रों में से एक है।
    • 7वीं शताब्दी में दक्षिण मद्रास के पल्लव सम्राटों द्वारा स्थापित महाबलीपुरम पत्‍तन पर दक्षिण पूर्ण एशिया के साम्राज्यों जैसे कम्बुजा (कंबोडिया) और श्रीविजय (मलेशिया, सुमात्रा, जावा) और चंपा साम्राज्य (अन्ना‍म) के साथ व्‍यापार होता था। लेकिन इसकी भूमिका की प्रसिद्धि महाबलीपुरम में 630 और 728 ई. के बीच निर्मित और सुसज्जित पत्थर के अभ्यारण्यों और ब्राह्मण मंदिरों के रूप में हो गई।
    • पत्थरों को काटकर बनाए गए रथ, अर्जुन की तपस्या (जैसे खुले चट्टानों में उकेरे दृश्‍य) गोवर्धनधारी और महिषासुरमर्दिनी की गुफाएं, और जल-शयन पेरूमल मंदिर (तटीय मंदिर परिसर के पिछले भाग में शयन करने वाले महाविष्णु और चक्रिन) अधिकांश स्मारक नरसिंह वर्मन मामल्ला की अवधि की विशेषता है।
    • सुंदरबन भारत और बांग्लादेश के बीच विभाजित बड़ा मैन्ग्रोव संरक्षित क्षेत्र हैं। हालांकि इस राष्ट्रीय उद्यान का एक बड़ा हिस्सा बांग्लादेश में है।
    • रिजर्व साइज सुंदरबन मैन्ग्रोव सबसे बड़ा संरक्षित क्षेत्र है और 4200 वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में फैला हुआ है। यह रिजर्व कई भारतीय बाघों, जो दुनिया में सबसे लुप्तप्राय प्रजातियों में आते है उनका संरक्षण करता है।
    • 250 बाघों के साथ सुंदरबन में चेतल हिरण और रीसस बंदर भी मौजूद हैं। हालांकि सावधान रहें सुंदरबन किंग कोबरा और वाटर मोनिटर जैसे सांपों की घातक प्रजातियों का भी घर है। यहां की सुंदरता देखने के लिए गाइड की मदद जरूर लें वे आपको यहां खतरों से आगाह कराते हैं।
    • यहां एमबी सुंदरी एक अस्थायी तैरता हुआ घर है जो भाड़े पर मिलता है। इसका मिलना मुश्किल होता है क्यूंकि बुकिंग हमेशा फुल रहती है पर अगर मौका मिल जाए तो यह सुंदरबन के प्रति आपके दृष्टिकोण बदल देगा। एमबी सुंदरी में 8 लोगों का परिवार आसानी से रह सकता है।
    • इसे हुमायूं की मौत के 9 साल बाद उनकी बेगम ने बनवाया था। इसके निर्माण के लिए वास्तुकारों को अफगानिस्तान के हेरात शहर से बुलाया गया था और तैयार होने में करीब 8 साल लग गए थे, जोकि एक मकबरे के लिए बहुत ज्यादा हैं।
    • यमुना नदी के किनारे पर बने इस मकबरे में बहुत ही सुंदर तरीके से कलाकारी की गई है। 30 एकड़ तक फैले इस मकबरे के आस-पास हरियाली ही हरियाली है।
    • इस मकबरे को बनाने के लिए सबसे ज्यादा बलुआ पत्थर का इस्तेमाल हुआ। आजतक किसी भी ऐतिहासिक इमारत को बनाने के लिए इतने पत्थर नहीं लगे।
    • मकबरे में बने चतुर्भुजाकार यानि चारबाग की खूबसूरती भी देख सकते हैं। यह पारसी शैली में बना बगीचा पूरे दक्षिण एशिया में इस प्रकार का पहला बाग है।
    • जयपुर का जंतर मंतर 5 प्रमुख वेधशालाओं में से एक है। इसका निर्माण महाराजा सवाई जय सिंह द्वारा करवाया गया था जो जयपुर के संस्थापक और एक खगोलशास्त्री भी थे।
    • 18 वीं शताब्दी के शुरुआत में उन्होंने पूरे भारत में 5 जंतर मंतर बनवाए, दिल्ली, मथुरा, जयपुर, वाराणसी और उज्जैन में। जयपुर की यह वेधशाला सबसे बड़ी है।
    • यह रचना 19 वास्तु खगोलीय उपकरणों का एक परिसर है, जो अब भी चल रहा है और इसका गणना और शिक्षण के लिए अब भी इस्तेमाल किया जाता है। यह निरीक्षण और सूर्य के चारों ओर कक्षाओं का अध्ययन करने के लिए प्रयोग किया जाता है।
    • यहां की कुछ रचनाएं पत्थर, संगमरमर और तांबे से बनी हुई हैं। जयपुर के जंतर मंतर में दुनिया की सबसे बड़ी पत्थर की सूर्यघड़ी है जिसे वृहत् सम्राट यंत्र कहते हैं।
    • आगरा के किले को कभी-कभी लाल किला भी कहा जाता है। न सिर्फ लाल रंग, बल्कि दिल्ली स्थित लाल किले से इसकी वास्तुशिल्प शैली और डिजाइन भी काफी मिलती है। दोनों ही किले का निर्माण लाल बलुआ पत्थर से किया गया है।
    • ताजमहल के बाद यह आगरा का दूसरा विश्व धरोहर स्थल है। इसका निर्माण मुगल बादशाह अकबर ने 1565 में करवाया था। रोचक बात यह कि किले के प्रवेश द्वार पर एक तख्ती है, जिसपर लिखा है कि इस किले का निर्माण मूल रूप से 1000 इस्वी से भी पहले किया गया था और अकबर ने सिर्फ इसका नवीनीकरण करवाया था।
    • बाद में शाहजहां ने इसे और उन्नत बनाया। उन्होंने संगमरमर और खूबसूरत नक्काशी से इसे और भी दर्शनीय बना दिया। इस किले को अर्धचन्द्राकार आकृति में बनाया गया है और यह यमुना नदी के सामने स्थित है। इसमें परकोटे हैं, जिनके बीच भारी बुर्ज बराबर अंतराल है।
    • फतेहपुर सीकरी एक एतिहासिक शहर है जो 1569 में मुगल सम्राट् अकबर ने स्थापित किया था और 1571 से 1585 तक मुगल साम्राज्य की राजधानी था। यह शहर आगरा से 40 किमी दूर है।
    • ऐसा कहा जाता है कि अकबर सीकरी शहर में रहने वाले संत शेख सलीम चिश्ती के पास गए थे, जिनके आशीर्वाद से अकबर के 3 बेटे हुए। कृतज्ञता ज्ञापन के रूप में अकबर ने सीकरी में एक नया शहर बनाया और अपनी नई राजधानी का नाम फतेहपुर सीकरी (विजय का शहर) रखा।
    • फतेहपुर सीकरी मुगल वास्तुकला के बेहतरीन उदाहरणों में से एक है। यहां एक शानदार मस्जिद, बुलंद दरवाजा, दीवान-ए-आम जैसी कई लुभावनी जगहे हैं।
    • यह शहर भारत-इस्लामी प्रकार की उत्कृष्ट कृति था लेकिन पानी की कमी के कारण इसे जल्द ही छोड़ दिया गया।
    • रानी की वाव अहमदाबाद से लगभग 140 किलोमीटर उत्तर पश्चिमी भाग में, पाटन शहर के पास बसी हुई है, जो सोलंकी वंशजों की प्राचीनतम राजधानी हुआ करती थी।
    • सोलंकी वंशज पहली सहस्त्राब्दी के बदलते युग के दौरान इस क्षेत्र पर शासन करते थे। राजा भीमदेव प्रथम की पत्नी रानी उदयमती ने यह वाव 11 सदी के उत्तरार्ध काल के दौरान बनवाई थी।
    • सात मंज़िला इस वाव में मारू-गुर्जर स्थापत्य शैली का सुं‍दर उपयोग किया गया है, जो जल संग्रह की तकनीक, बारीकियों और अनुपातों की अत्यंत सुंदर कला क्षमता की जटिलता को दर्शाता है।
    • पत्तदकल स्मारक परिसर भारत के कर्नाटक राज्य में एक पत्तदकल नामक कस्बे में स्थित है। यह अपने पुरातात्विक महत्व के कारण प्रसिद्ध है। चालुक्य वंश के राजाओं ने सातवीं और आठवीं शताब्दी में यहां कई मंदिर बनवाए।
    • यहां कुल दस मंदिर हैं, जिनमें एक जैन धर्मशाला भी शामिल है। इन्हें घेरे हुए ढेरों चैत्य, पूजा स्थल एवं कई अपूर्ण आधारशिलाएं हैं। यहां चार मंदिर द्रविड़ शैली के हैं, चार नागर शैली के हैं एवं पापनाथ मंदिर मिश्रित शैली का है।
    • विरुपाक्ष मंदिर यहां का सर्वश्रेष्ठ मंदिर है। इसे महाराज विक्रमादित्य द्वितीय की पत्नी लोकमहादेवी ने 745 ई. में अपने पति की कांची के पल्लव वंश पर विजय के स्मारक रूप में बनवाया था।
    • यह मंदिर कांची के कैलाशनाथ मंदिर से बहुत मिलता जुलता है। वही मंदिर इस मंदिर की प्रेरणा है। यहीं विरुपाक्ष मंदिर एल्लोरा में राष्ट्रकूट वंश द्वारा बनवाए गए कैलाशनाथ मंदिर की प्रेरणा बना। इस मंदिर की शिल्पाकृतियों में कुछ प्रमुख हैं लिंगोद्भव, नटराज, रावाणानुग्रह, उग्रनृसिंह, आदि।
    • ये गुफाएं पौराणिक देवताओं की भव्य मूर्तियों के लिए विख्यात हैं। इन मूर्तियों में त्रिमूर्ति शिव की मूर्ति सर्वाधिक लोकप्रिय है। ये गुफ़ाएं मुंबई से 11 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
    • एलिफेन्टा की पहाड़ी में उमा महेश गुहा मन्दिर का निर्माण लगभग 8वीं शताब्दी में किया गया। एलिफेंटा पर 16वीं शती में मुंबई तट पर बसने वाले पुर्तग़ालियों का अधिकार था।
    • 16वीं शती ई. तक राजघाट नामक स्थान पर हाथी की एक विशाल मूर्ति थी। इसी कारण पुर्तग़ालियों ने द्वीप को एलिफेंटा का नाम दिया था।
    • एलिफेंटा में भगवान शंकर के कई लीला रूपों की मूर्तिकारी जैसे महायोगी, नटेश्वर, भैरव, पार्वती-परिणय, अर्धनारीश्वर, पार्वतीमान, कैलाशधारी रावण, महेशमूर्ति शिव तथा त्रिमूर्ति के मूर्ति चित्र हैं।
  1. नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त वंश के शासक कुमारगुप्त ने की। स्थापना के बाद इसे सभी शासक वंशों का समर्थन भी मिलता गया। महान शासक हर्षवर्धन ने भी इस विश्वविद्यालय के लिए दान दिया।

    नालंदा विश्वविद्यालय के मठों का निर्माण प्राचीन कुषाण वास्तुशैली से हुआ था। यह किसी आंगन के चारों ओर लगे कक्षों की पंक्ति के समान दिखाई देते थे।

    सम्राट अशोक तथा हर्षवर्धन ने यहां सबसे ज्यादा मठों, विहार तथा मंदिरों का निर्माण करवाया। इस प्रकार यह बारहवीं शताब्दी तक सफलतापूर्वक संचालित होता रहा, परंतु तुर्क आक्रमण में तबाह होने के बाद यह दोबारा स्थापित नहीं हो पाया।

    • छत्रपति शिवाजी टर्मिनस भारत की कमर्शियल कैपिटल मुंबई का एक ऐतिहासिक रेलवे-स्टेशन है, जो मध्य रेलवे, भारत का मुख्यालय भी है। छत्रपति शिवाजी टर्मिनस को पहले ‘विक्‍टोरिया टर्मिनस’ के नाम से जाना जाता था।
    • छत्रपति शिवाजी टर्मिनस अपने लघु नाम वी.टी., या सी.एस.टी. से अधिक प्रचलित है। यह भारत के व्यस्ततम स्टेशनों में से एक है। आंकड़ों के अनुसार यह स्टेशन ताजमहल के बाद भारत का सर्वाधिक छायाचित्रित स्मारक है। 2 जुलाई, 2004 को इस स्टेशन को युनेस्को की विश्व धरोहर समिति द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया।
    • छत्रपति शिवाजी टर्मिनस भारतीय पारम्‍परिक वास्‍तुकला से ली गई विषय वस्‍तुओं के मिश्रण व भारत में ‘विक्‍टोरियन गोथिक’ पुन: जीवित वास्‍तुकला का एक उत्‍कृष्‍ट उदाहरण है।
    • इस स्टेशन की अभिकल्पना ‘फ्रेडरिक विलियम स्टीवन्स’, वास्तु सलाहकार ने 1878-1888, में 16.14 लाख रुपयों की राशि पर की थी। इस टर्मिनस का निर्माण 1878 में आरंभ करते हुए 10 वर्षों में किया गया।
    • भारत के पहाड़ी क्षेत्रों रेल की मदद से आने-जाने के लिए रेलवे की व्यवस्था की गई थी। सामूहिक रूप से इसे भारत के पर्वतीय रेलवे के रूप में जाना जाता है|
    • इनमें चार रेल अभी भी चल रही हैं। इसमें दार्जिलिंग हिमालयी रेल, नीलगिरि पर्वतीय रेल, कालका शिमला रेलवे, माथेरान हिल रेलवे शामिल है।
    • कुतुबमीनार का निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1193 में शुरू करवाया था। पर ऐबक केवल काम शुरू ही करवा सका था कि उसकी मृत्यु हो गई। इसके बाद इल्तुतमिश दिल्ली की गद्दी पर बैठा और इसमें तीन मंजिल जुड़वाईं।
    • कुतुबमीनार में आग लगने के बाद उसका पुनर्निर्माण फिरोज शाह तुगलक के समय हुआ। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि कुतुबुद्दीन ऐबक के नाम पर ही इस मीनार का नाम पड़ा जबकि कुछ बताते हैं कि बगदाद के संत कुतुबद्दीन बख्तियार काकी के नाम पर इस मीनार का नाम कुतुबमीनार पड़ा।
    • 72.5 मीटर ऊंची यह मीनार यूनेस्को की विश्व धरोहर स्मारकों की सूची में भी शामिल है।
    • चंपानेर-पावागढ़ पुरातत्व उद्यान, भारत के गुजरात राज्य के पंचमहल जिले में स्थित है। यह उद्यान ऐतिहासिक शहर चंपानेर (गुजरात के सुल्तान महमूद बेगदा द्वारा बनाया गया शहर) के पास है।
    • पावागढ़ की पहाड़ी लाल–पीले रंग के चट्टानों से बनी है जो भारत के सबसे पुराने चट्टानों में से एक है। गुजरात के सोलंकी राजाओं और फिर खिची चौहानों के शासनकाल में पावागढ़ की पहाड़ी हिन्दुओं के लिए प्रसिद्ध किला था।
    • सभी मंदिर नागर शैली में बने हैं। इनमें गर्भगृह, मंडप और प्रवेश द्वार है। चंपानेर के ऐतिहासिक स्मारकों में दुर्ग की श्रृंखला है।
    • ग्रेट हिमालयी राष्ट्रीय उद्यान (जीएचएनपी) हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में है। 1984 में बनाए गए इस पार्क को 1999 में राष्ट्रीय पार्क घोषित किया गया था।
    • यह पार्क अपनी जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध है। इसमें 25 से अधिक प्रकार के वन, 800 प्रकार के पौधे औऱ 180 से अधिक पक्षी प्रजातियों का वास है।
    • हिमालय के भूरे भालू के क्षेत्र वाला यह नेशनल पार्क कुल्‍लू जिले में 620 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। यहां पश्चिमी हिमालय की अनेक महत्‍वपूर्ण वन्‍य प्रजातियां पाई जाती है जैसे मस्‍क डीयर, ब्राउन बीयर, गोराल, थार, चीता, बरफानी चीता, भराल, सीरो, मोनल, कलिज, कोकलास, चीयर, ट्रागोपान, बरफानी कौआ आदि।
    • घाटी में कई स्थानों के नाम उन संतों के नाम पर हैं जो इस महान हिमालय क्षेत्र में साधना के लिए आए थे। कुछ अभ्यारणयों को आज भी उपवन के रूप में संरक्षित रखा गया है।
    • राजस्थान के छह पहाड़ी दुर्ग यूनेस्को के विश्व धरोहर में शामिल है। इनमें चित्तौड़गढ़ दुर्ग, कुम्भलगढ़ दुर्ग, सवाई माधोपुर का रणथंभोर दुर्ग, झालावाड़ का गागरौन दुर्ग, जयपुर का आमेर दुर्ग, जैसलमेर दुर्ग शामिल हैं।
    • ये दुर्ग 8वीं से 18वीं शताब्दी तक चले राजपूत शासन का प्रतीक है। ये राजस्थान की अरावली पहाड़ी पर हैं। ये विरासत राजपुताना शासन और उनकी गौरवगाथा का प्रतीक हैं।
    • यूनेस्को द्वारा गोवा वेल्हा (पुराना गोवा) में स्थित धार्मिक स्मारकों के एक समूह को चर्चेज एंड कॉन्वेंट्स ऑफ गोवा का नाम दिया है। इसे 1986 में विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था। गोवा पुर्तगाली भारत और एशिया की राजधानी थी और सोलहवीं शताब्दी से एक सुसमाचार केंद्र था।
    • मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में स्थित एक पुरापाषाणिक आवासीय पुरास्थल भीमबेटका है। यह आदि-मानव द्वारा बनाए गए शैलचित्रों और शैलाश्रयों के लिए प्रसिद्ध है। इन चित्रों को पुरापाषाण काल से मध्यपाषाण काल के समय का माना जाता है।
    • ये चित्र भारतीय उपमहाद्वीप में मानव जीवन के प्राचीनतम चिह्न हैं। यह स्थल मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से 45 किमी दक्षिणपूर्व में स्थित है। इनकी खोज वर्ष 1957-1948 में डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर द्वारा की गई थी। भीमबेटका क्षेत्र को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, भोपाल मंडल ने अगस्त 1990 में राष्ट्रीय महत्त्व का स्थल घोषित किया।
    • इसके बाद जुलाई 2003 में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल घोषित किया। यहां पर अन्य पुरावशेष भी मिले हैं जिनमें प्राचीन किले की दीवार, लघुस्तूप, पाषाण निर्मित भवन, शुंग-गुप्त कालीन अभिलेख, शंख अभिलेख और परमार कालीन मंदिर के अवशेष सम्मिलित हैं। ऐसा माना जाता है कि यह स्थान महाभारत के चरित्र भीम से सम्बंधित है, इसी के कारण इसका नाम भीमबैठका (कालांतर में भीमबेटका) पड़ा।
    • मानस नेशनल पार्क असम का एक प्रसिद्ध पार्क है। इसे यूनेस्को ने नेचुरल वर्ल्ड हेरिटेज साइट के साथ-साथ प्रोजेक्ट टाइगर रिजर्व, बायोस्फियर रिजर्व और एलिफेंट रिजर्व घोषित किया गया है। यह हिमालय के फुट्हिल पर स्थित है और भूटान तक फैला हुआ है, जहां इसे रॉयल मानस नेशनल पार्क के नाम से जाना जाता है।
    • यह पार्क बालों वाले खरगोश, असम के छतरी वाले कछुए, नाटे कद वाले सुअर और सुनहरे लंगूर सहित कई लुप्तप्राय: जानवरों का घर है। यहां जंगली पानी की भैंस भी बड़ी संख्या में पाई जाती है।
    • इस पार्क में स्तनपायी की 55, पक्षी की 380, सरीसृप की 50 और उभयचर की 3 से ज्यादा प्रजातियां पाई जाती है। यह नेशनल पार्क कोकराझार, चिरांग, बकसा, उदालगुरी और दारांग सहित कई जिलों में पड़ता है। अक्टूबर से मार्च के बीच में यह पार्क घूमना सबसे अच्छा माना जाता है।
    • केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान भरतपुर (राजस्थान) का प्रसिद्द पर्यटन आकर्षण है। यह पार्क जिसे केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान भी कहा जाता है। इसका निर्माण लगभग 250 वर्ष पहले महाराजा सूरजमल ने करवाया था।
    • 1964 में जब तक यह उद्यान पक्षी अभयारण्य के रूप में स्थापित नहीं हुआ था तब तक भरतपुर के महाराजा इस उद्यान का उपयोग बतखों के शिकार के लिए निजी स्थान के रूप में किया करते थे। 1982 में भरतपुर पक्षी अभ्यारण्य को राष्ट्रीय पार्क घोषित कर दिया गया।
    • वर्ष 1985 में यूनेस्को ने इस उद्यान विश्व विरासत स्थान की मान्यता दी। प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में पर्यटक इस लोकप्रिय राष्ट्रीय उद्यान की सैर करने के लिए आते हैं।
    • वर्तमान में इस पार्क में कछुओं की 7 किस्में, मछलियों की 50 किस्में और उभयचरों की 5 किस्में पाई जाती हैं। इसके अलावा यह उद्यान पक्षियों की लगभग 375 किस्मों का प्राकृतिक आवास है।
    • फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान एक फूलों की घाटी का नाम है, जिसे अंग्रेजी में Valley of Flowers कहते हैं। यह उत्तराखण्ड राज्य के गढ़वाल क्षेत्र में है। फूलों की घाटी यूनेस्को द्वारा सन् 1982 में घोषित विश्व धरोहर स्थल नन्दा देवी अभयारण्य नन्दा देवी राष्ट्रीय उद्यान का एक भाग है।
    • किंवदंती है कि रामायण काल में हनुमान संजीवनी बूटी की खोज में इसी घाटी में पधारे थे। इस घाटी का पता सबसे पहले ब्रिटिश पर्वतारोही फ्रैंक एस स्मिथ और उनके साथी आर एल होल्डसवर्थ ने लगाया था, जो संंयोग से 1931 में अपने कामेट पर्वत के अभियान से लौट रहे थे।
    • इसकी बेइंतहा खूबसूरती से प्रभावित होकर स्मिथ 1937 में इस घाटी में वापस आये और, 1938 में “वैली ऑफ फ्लॉवर्स” नाम से एक किताब प्रकाशित करवाई।
    • ये भारत की प्रमुख पर्वत-श्रृंखलाएं हैं और इसमें पश्चिमी तट की समान्तर की पर्वत-श्रेणी शामिल हैं जिसे पश्चिमी घाट कहते हैं। भारत के पश्चिमी तट पर स्थित पर्वत श्रृंखला को पश्चिमी घाट या सह्याद्रि कहते हैं।
    • ये घाट विश्‍व में जैविकीय विविधता के लिए यह बहुत महत्‍वपूर्ण है और इस दृष्टि से विश्‍व में इसका 8वां स्थान है। यह गुजरात और महाराष्ट्र की सीमा से शुरू होती है और महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, तमिलनाडु तथा केरल से होते हुए कन्याकुमारी में समाप्‍त हो जाती है।
    • वर्ष 2012 में यूनेस्को ने पश्चिमी घाट क्षेत्र के 39 स्‍थानों को विश्व धरोहर स्‍थल घोषित किया है।
    • इसकी स्थापना वर्ष 1977 में की गई थी। यह सिक्किम का सबसे बड़ा राष्ट्रीय उद्यान है और सिक्किम के उत्तरी जिले में 850 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला है।
    • यहां की पारिस्थितिकी अछूती है इसलिए यह जानवरों के लिए सुरक्षित है। यहां जानवरों की कई प्रजातियां जैसे कि हिम तेंदुआ, हिमालय काला भालू, लाल पांडा, एवं बार्किंग हिरण (भौंकने वाला हिरण) आदि जाती हैं।
    • यहां पाए जाने वाले पौधों में ओक, देवदार, संटी, मेपल और विलो आदि शामिल हैं। जड़ी-बूटी एवं अन्य औषधीय पौधों के साथ साथ अधिक उंचाई वाले क्षेत्रों में अल्पाइन घास एवं झाड़ियां भी पाई जाती हैं। इस उद्यान में कई पक्षी जैसे कि रक्त तीतर, सत्ये ट्रेगोपेन, ओस्प्रे, हिमालयन ग्रिफ्फोन, लेमर्गियर एवं ट्रेगोपेन तीतर आदि भी देखे जा सकते हैं।
    • अहमदाबाद का ऐतिहासिक नगर या पुराना अहमदाबाद, भारत के गुजरात राज्य के अहमदाबाद नगर का ही एक भाग है। इसकी स्थापना अहमद शाह प्रथम ने 1411 में गुजरात सल्तनत के रूप में की थी। तब से यह गुजरात सल्तनत की, महत्त्वपूर्ण राजनैतिक और गुजरात के वाणिज्यिक केन्द्र की राजधानी बना रहा।
    • वर्तमान में भी यह आधुनिक अहमदाबाद नगर का हृदय केन्द्र बना हुआ है। इसे जुलाई 2017 में यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल घोषित किया था।
    • चंडीगढ़ कैपिटल कॉम्प्लेक्स भारत के चंडीगढ़ शहर के सेक्टर-1 में है। इसे ली कोर्बुज़िए ने डिजाइन किया था। यह की लगभग 100 एकड़ जमीन क्षेत्र में फैला हुआ है और यह चंडीगढ़ की वास्तुकला की एक महान अभिव्यक्ति है।
    • इसमें तीन इमारतें, तीन स्मारक और एक झील है, जिनमें विधान सभा, सचिवालय, उच्च न्यायालय, मुक्त हस्त स्मारक, ज्यामितीय पहाड़ी और टॉवर ऑफ शैडोज़ शामिल हैं।
    1. Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today


      world herirtage day 2019 know UNESCO world heritage sites in india

      [ad_2]
      Source link

Translate »