लाइफस्टाइल डेस्क. केरल में कन्नूर जिले में एक ऐसा शॉपिंग स्टॉल भी है जहां कोई दुकानदार नहीं बैठता। कस्टमर आते हैं सामान खरीदते हैं और एमआरपी में लिखी कीमत को एक बॉक्स में रखकर चले जाते हैं। इसकी कोई निगरानी नहीं करता। इसकी शुरुआत 1 जनवरी 2019 को एनजीओ जनशक्ति ने की थी।ऐसा ही एक स्टोर स्विटजरलैंड में भी बना है जिसे ऑनेस्टी शॉप के नाम से जाना जाता है।
-
स्टॉल कन्नूर के गांव वन्कुलाठुवायल में है। यहां आने वाले ज्यादातर लोग स्टॉल के नियमाें से वाकिफ हैं। स्टॉल में साबुन, मोमबत्तियां जैसे दैनिक दिनचर्या के सामान बेचे जाते हैं। खास बात है इन्हें ऐसे लोगों ने तैयार किया जो बिस्तर से नहीं उठ पाते हैं।
-
स्टॉल का नाम प्रतीक्षा रखा गया है। अब तक यहां कोई भी चोरी नहीं हुई है। जनवरी में जब स्टॉल की शुरुआत हुई थी तो रोजाना 1 हजार रुपए की कमाई होती थी। वर्तमान में रोजाना औसतन 750 रुपए की कमाई होती है। जनशक्ति ट्रस्ट के सुकुनन के मुताबिक, हर 10 दिन में बॉक्स में रखे पैसे गिने जाते हैं।सुकुनन कहते हैं कि एनजीओ की शुरुआत 1978 में हुई थी। जिसका लक्ष्य लोगों को शिक्षित करना था।
-
एनजीओ काफी समय से बीमार लोगों को दवा उपलब्ध कराने का काम भी कर रहा है। हर माह करीब एक हजार रुपए की दवाएं ऐसे मरीजों को बांटी जाती हैं जो बिस्तर से नहीं उठ पाते। इनमें से ही ऐसे मरीजों को अलग किया गया जो बिस्तर पर बैठे-बैठे ही रोजमर्रा की चीजें जैसे साबुन, वाशिंग पाउडर आदि को बना सकते हैं लेकिन उनकी मार्केटिंग करने में असमर्थ हैं।
-
इसे एक स्टॉल में तब्दील करने का आइडिया खलील नाम के शख्स की वजह से आया। खलील पिछले 23 साल तक खाड़ी के देशों में बतौर पेंटर काम कर चुके हैं। एक बार गिरने के कारण खलील की पीठ में गंभीर चोट आई थीं और इसी एनजीओ के माध्यम से उनका इलाज कराया गया था। एक लंबा समय बिस्तर पर बिताने के दौरान वह रोजमर्रा की चीजों को तैयार करते थे। जिसे गांव वाले खरीदने आते थे। सुकुमन को स्टॉल खोलने का विचार यहीं सेआया और यहां एक बॉक्स रखा गया। सामान लेने के बाद खरीदार इसमें पैसा डालते थे।