पुरी (संदीप राजवाड़े/भूपेश केशरवानी).ओडिशा में पुरी जिले का रघुराजपुर गांव। यहां 40 परिवारों के करीब 400 लोग रहते हैं। यहां की खासियत है पट चित्रकला। यह रघुराजपुर को दूसरे गांवों से अलग बनाती है। यहां हर घर 10 साल के बच्चे से 70 साल तक के बुजुर्ग इसी कला साधना में जुटे रहते हैं। आलम यह है कि इस कला की प्रसिद्धि देश दुनिया में फैल गई है। विदेशों में यहां के पट चित्रों की कीमत 20 रुपए से 5 लाख रुपए तक है। गांव की बेटियां यह हुनर सीखकर शादी के बाद अपने ससुराल में इसे आगे बढ़ाती हैं। वहीं, गांव में आने वाली बहुएं भी इसे अपना लेती हैं। कई हुंनरमंद पद्मश्री से लेकर राज्य स्तरीय व राष्ट्रीय सम्मान तक हासिल कर चुके हैं।
रोज 5-6 घंटे काम, एक पट चित्र 5 महीने में तैयार होता है :55 साल की सखी स्वाइन बताती हैं, ‘4 फीट लंबा और 2 फीट चौड़ा पट चित्र बनाने में करीब 5 महीने लगते हैं। हर दिन 5-6 घंटे बारीकी से काम करना होता है। तब जाकर एक पेंटिंग के 50- 60 हजार रुपए मिलते हैं।’ वहीं,‘रीना नायक बताती हैं कि शादी के बाद ही उन्होंने इस कला को सीखा और अपनी पहचान बनाई।
‘अब हमारी विरासत महफूज हाथों में है’ :
गांव के 70 वर्षीय कलाकार शंकर बेहरा बताते हैं, ‘हमारे पूर्वजों को चिंता थी कि इस कला को आगे कौन बढ़ाएगा। लेकिन आज गांव के 80% युवा इसे आगे बढ़ रहे हैं। इनमें ज्यादातर लड़कियां हैं। राष्ट्रपति से सम्मानित लक्ष्मीधर सुबुधि बताते हैं, उनकी 5 बेटियां और एक बेटा पट चित्र कलाकार हैं। उन्हें गर्व है कि उनकी विरासत अगली पीढ़ी के हाथों महफूज रहेगी।
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