साइंस डेस्क.28 फरवरी 1928 को वैज्ञानिक सीवी रमन ने ‘रमन प्रभाव’ की खोज की थी। इस खोज के सम्मान में1986 सेइस दिन को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के रूप में मनाया जाता है। पारदर्शी पदार्थ से गुजरने पर प्रकाश की किरणों में आने वाले बदलाव पर की गई खोज के लिए 1930 में सीवी रमन भौतिकी के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार पाने वह एशिया के पहले वैज्ञानिक थे। बहुत कम लोग जानते हैं सीवी रमन को कक्षा से ज्यादा लैब में समय बिताना पसंद था। पिता कुशल वीणा वादक होने के कारण उन्हें बचपन से ही संगीत से खास लगाव था और घर बनी छोटी सी लाइब्रेरी ने इनके जीवन पर गहरा असर छोड़ा और विज्ञान में कई प्रयोग किए।
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- सी. वी. रमन ने ही पहली बार बताया था कि आसमान और पानी का रंग नीला क्यों होता है? दरअसल रमन एक बार साल 1921 में जहाज से ब्रिटेन जा रहे थे। जहाज की डेक से उन्होंने पानी के सुंदर नीले रंग को देखा।
- उस समय से उनको समुद्र के पानी के नीले रंग पर रेलीग की व्याख्या पर शक होने लगा। जब वह सितंबर 1921 में वापस भारत आने लगे तो अपने साथ कुछ उपकरण लेकर आए।
- सीवी रमन ने उपकरणों की मदद से आसमान और समुद्र का अध्ययन किया। वह इस नतीजे पर पहुंचे कि समुद्र भी सूर्य के प्रकाश को विभाजित करता है जिससे समुद्र के पानी का रंग नीला दिखाई पड़ता है।
- जब वह अपने लैब में वापस आए तो रमन और उनके छात्रों ने प्रकाश के बिखरने या प्रकाश के कई रंगों में बंटने की प्रकृति पर शोध किया।
- उन्होंने ठोस, द्रव्य और गैस में प्रकाश के विभाजन पर शोध जारी रखा। फिर वह जिस नतीजे पर पहुंचे, वह ‘रमन प्रभाव’ कहलाया।
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- रमन प्रभाव बताता है कि जब प्रकाश किसीपारदर्शी पदार्थ से गुजरता है तो उस दौरान प्रकाश की तरंगदैर्ध्य में बदलाव दिखता है। यानी जब प्रकाश की एक तरंग एक द्रव्य से निकलती है तो इस प्रकाश तरंग का कुछ भाग एक ऐसी दिशा में फैल जाता है जो कि आने वाली प्रकाश तरंग की दिशा से भिन्न है।
- प्रकाश के क्षेत्र में उनके इस काम के लिए 1930 में फिजिक्स में नोबेल प्राइज मिला। प्रकाश के क्षेत्र में किए गए उनके काम का आज भी कई क्षेत्रों में प्रयोग हो रहा है।
- रमन स्पैक्ट्रोस्कोपी का इस्तेमाल दुनिया भर के केमिकल लैब में होता है, इसकी मदद से पदार्थ की पहचान की जाती है। औषधि क्षेत्र में कोशिका और उत्तकों पर शोध के लिए और कैंसर का पता लगाने तक के लिए इसका इस्तेमाल होता है।
- मिशन चंद्रयान के दौरान चांद पर पानी का पता लगाने के पीछे भी रमन स्पैक्ट्रोस्कोपी का ही योगदान था।