90% कॉस्मेटिक्स में नैनो कण का धड़ल्ले से उपयोग इनसे कैंसर तक का डर

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ननु जोगिंदर सिंह, पवन कुमार, दिल्ली .सेहत के लिए खतरनाक नैनो पार्टिकल्स का सौंदर्य उत्पादों में धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रहा है। इनमें चांदी के कण वाला साबुन, जिंक नैनो पार्टिकल की कोटिंग वाला कपड़ा, कार्बन वाला फेसवॉश आदि शामिल हैं। इन प्रोडक्ट पर ये भी नहीं लिखा होता है कि इन्हें किस तरह, कितनी देर, कितनी मात्रा में इस्तेमाल किया जा सकता है।

रिसर्च गेट पर उपलब्ध विभिन्न रिसर्च पेपर्स के अनुसार देश के 90% सौंदर्य उत्पादों में इनका इस्तेमाल हो रहा है। सरकार ने भी इसके लिए कोई गाइडलाइन या नियम नहीं बनाया है। जबकि इनसे कैंसर जैसी गंभीर बीमारी तक का खतरा है। कैंसर रिसर्च काउंसिल ऑस्ट्रेलिया, जनरल ऑफ कॉस्मेटिक्स डर्मेटोलॉजीकल साइंसेस एंड एप्लीकेशन आदि ने नैनो पार्टिकल्स को कैंसर जैसी बीमारियों के लिए घातक बताया है।

ये शरीर के डीएनए तक को खराब कर देते हैं। नैनो पार्टिकल किसी भी तत्व का सबसे छोटा हिस्सा होते हैं। आमतौर पर इनका साइज एक से 100नैनो मीटर के बीच होता है। इनका इस्तेमाल कंपनियां इसलिए करती हैं, क्योंकि इससे उत्पाद का असर बढ़ता है और कंपनियों को यह सस्ता भी पड़ता है।

दरअसल ऐसे उत्पादों की गुणवत्ता के लिए मानक बनाने वाली संस्था ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड (बीआईएस) के नियम काफी पुराने हैं और नैनो पार्टिकल्स के बारे में इनमें कुछ स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं हैं। इस बारे में भास्कर से बात करते हुए ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) डॉ. एस. ईश्वरा रेड्‌डी कहते हैं कि कॉस्मेटिक्स में कौन-कौन से नैनो पार्टिकल का इस्तेमाल भारत में हो सकता है इसकी एक सूची बीआईएस की है। इस लिस्ट के अनुसार उपयोग सही है, लेकिन इससे अलग भी कई ऐसे खतरनाक तत्वों का इस्तेमाल हो रहा है। इसी वजह से दो माह पहले देशभर में कॉस्मेटिक्स प्रोडक्ट्स पर छापेमारी की गई थी और बड़ी-बड़ी कंपनियों को कारण बताओ नोटिस भी जारी किया गया था।

वहीं एम्स के डॉ. अमित टिंडा कहते हैं कि नैनो टेक्नोलॉजी ने कॉस्मेटिक इंडस्ट्री को बदला है। कई तरह के तत्वों का इस्तेमाल हो रहा है। वे बताते हैं कि विदेशों में हुए शोध के अनुसार टाइटेनियम ऑक्साइड नैनो पार्टिकल आमतौर पर स्किन में प्रवेश नहीं करते। हमारे यहां कॉस्मेटिक्स में इसका इस्तेमाल यूवी प्रोटेक्टेंट के तौर पर बहुत हो रहा है। लेकिन भारत के गर्म और नमी वाले मौसम में स्किन पर इसका प्रभाव अलग हो सकता है। इसलिए इससे शरीर को होने वाले किसी खतरे से इनकार नहीं किया जा सकता।

पंजाब यूनिवर्सिटी में इंडिया अलायंस अर्ली कॅरियर फेलो और अमेरिका में नैनो पार्टिकल्स के विषय पर पीएचडी कर चुकीं डॉ. मधु खत्रे कहती हैं कि इंसान और वातावरण पर इन पार्टिकल्स के प्रभाव की स्टडी की जाना चाहिए। हाल ही में अमेरिका की एक एजेंसी ने जब भारत में मछलियों पर इन प्रोडक्ट की स्टडी की तो दो नैनो मटीरियल्स का असर खतरनाक पाया गया। दरअसल मछली और इंसान के शरीर में अधिकतम समानताओं को देखते हुए मछली पर प्रयोग किए गए। स्टडी में डीजल में इस्तेमाल हो रहे नैनो पार्टिकल्स के प्रभाव को परखा गया। ये नैनो पार्टिकल्स वातावरण में पहुंच रहे हैं। इस दिशा में गाइडलाइंस बनाए जाने की बहुत जरूरत है।

दूसरे देश क्या कर रहे हैं :ऑस्ट्रेलिया में कास्मेटिक्स की वजह से बढ़ते स्किन कैंसर के मामलों के बाद पहले 2011 में और फिर 2016 में सरकार ने इनमें नैनो मटेरियल के लिए नियमों में बदलाव किया है। यहां तक कि सनस्क्रीन के लिए तो बिल्कुल अलग गाइडलाइंस जारी की है।

वहां इंडस्ट्रियल केमिकल एक्ट में भी बदलाव करते हुए गाइडलाइंस जारी की गई है। अब इस्तेमाल हुए नैनो मटेरियल का उल्लेख प्रोडक्ट के पैकेट पर जरूरी है। अमेरिका में भी एफडीए ने नैनो पार्टिकल्स के लिए स्पष्ट गाइडलाइंस जारी की है। यूके ने तो जरूरी कर दिया है कि सभी प्रोडक्ट्स पर यह जानकारी दी जाएगी कि इनका अधिकतम कितने समय और कितनी मात्रा में उपयोग किया जा सकता है।

अमेरिका में दो की इजाजत, हम दर्जनों इस्तेमाल कर रहे हैं :लगभग 40 साल पहले मॉइश्चराइजिंग क्रीम के जरिये नैनो पार्टिकल्स का कॉस्मेटिक्स में इस्तेमाल शुरू हुआ था। अब देश में टाइटेनियम ऑक्साइड, जिंक ऑक्साइड, एल्युमिना, नैनो सिल्वर, नैनो गोल्ड, सिलिकॉन डाइऑक्साइड, कैल्शियम फ्ल्यूराइड और कॉपर का इस्तेमाल सौंदर्य उत्पादों में हो रहा है। जबकि अमेरिका की रैगुलेटरी बॉडी एफडीए ने सिर्फ दो तरह के नैनो मटेरियल को सुरक्षित बताया है। एक- गोल्ड, जो इंसान के शरीर में एक्टिव नहीं होता। दूसरा- आयरन, जो हमारे शरीर को नुकसान नहीं पहुंचाता। अन्य किसी मटेरियल को सुरक्षित नहीं बताया गया है।

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90% of the use of Nano particles in cosmetics, fear of cancer

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