धर्मेन्द्र सिंह भदौरिया/ सिद्धी व्यास, नई दिल्ली/मुंबई/अहमदाबाद .अहमदाबाद के 64 वर्षीय अशोक अब स्मृति (दोनों नाम परिवर्तित) बन चुके हैं। उन्होंने उम्र के 6 दशक पार करने के बाद सर्जरी करवा कर बतौर महिला नई पहचान हासिल की है। वे अब खुद को पूर्ण बताती हैं। स्मृति ने अपने चिकित्सक से कहा, ‘मैं बचपन से ही अपने शरीर को लेकर खुश नहीं थी। मुझे बहुत पहले ही एहसास हो गया था कि मुझे महिला के रूप में रहना है। जीवन के 64 साल घुटन के साथ बिताए हैं। सर्जरी करवा कर अब मैं साढ़े छह दशक के बाद खुद को पूर्ण अनुभव कर रही हूं।’ यह तो सिर्फ एक बानगी है। अब देश में जेंडर चेंज यानी लिंग परिवर्तन का ट्रेंड बढ़ रहा है।
भास्कर ने जब इसके ट्रेंड को जाना तो पता चला कि मुंबई, दिल्ली और अहमदाबाद के ही तीन डॉक्टर करीब 324 ऑपरेशन कर चुके हैं। करीब डेढ़ लाख रुपए से लेकर 10 लाख रुपए तक में इसके ऑपरेशन हो रहे हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि ऐसा तीन कारणों से हो रहा है। पहला- कोर्ट के निर्णय ऐसे मरीजों के पक्ष में आने के कारण, दूसरा- समाज में स्वीकार्यता बढ़ने के कारण और तीसरा- मेडिकल सुविधा बेहतर हो जाने से।
डॉक्टर बताते हैं कि लिंग परिवर्तन के इलाज में सबसे महत्वपूर्ण मनोवैज्ञानिक जांच होती है। कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी हॉस्पिटल (केडीएएच), मुंबई के एंड्रोलॉजी एंड रीकंस्ट्रंक्टिव यूरोलॉजी डिपार्टमेंट के हेड डॉ. संजय पांडे कहते हैं कि यह बीमारी जेंडर डिस्फोरिया है। इसमें मरीज को लगता है कि जो शरीर उसको मिला है उसके लिए वो फिट नहीं हैं। इसके दो ही तरीके हैं। पहला आप ब्रेन को साइकोथैरेपी देते रहिए और दबाव डालिए कि वो अपने शरीर को स्वीकार करे। ब्रेन चूंकि स्वीकार नहीं कर पाता है इसलिए कई बार ऐसे लोग आत्महत्या तक कर लेते हैं।
दूसरा रास्ता है कि वो सर्जरी करवा लंे। डॉ. पांडे कहते हैं कि हमने पिछले 10 साल में ट्रांसजेंडर के 97 केस किए हैं। जो लोग इस ऑपरेशन के लिए मेंटली या फिजिकली फिट नहीं हैं हम उन्हें वापस लौटा देते हैं। हमने ऐसे 27 केस लौटाए हैं। डॉ. पांडे कहते हैं कि शुरुआत में (2009-10) पुरुष से महिला के केस हमारे पास ज्यादा आते थे। यह अनुपात 65:35 का था, लेकिन आज यह स्थिति बदल रही है। अब महिला से पुरुष बनने की संख्या भी बढ़ रही है।
दिल्ली के सीताराम भारतीय इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड रिसर्च के सर्जन डॉ. एसवी कोतवाल बताते हैं कि उन्होंने ऐसा पहला ऑपरेशन नवंबर 2005 में किया था। वे अब तक करीब 180 ऑपरेशन कर चुके हैं। मेडिकल प्रोफेशन में कई नए रिसर्च हुए हैं जो यह प्रमाणित करते हैं कि यह एक बीमारी है। वे कहते हैं कि यह नवजात शिशु से ही शुरू हो जाती है।
डॉ. कोतवाल बताते हैं कि जब बच्चा मां के पेट में होता है तो पहले तीन महीने में बॉडी डेवलप होती है। ब्रेेन आखिरी के ट्रायमेस्टर में डेवलप होता है। अगर ब्रेन और बॉडी के डेवलपमेंट में कोई गड़बड़ी हो जाती है तो बच्चे के शरीर का जेंडर और दिमाग का जेंडर अलग हो जाता है। वे कहते हैं कि ट्रांसजेंडर सोसायटी में हमेशा से रहे हैं। जब इलाज नहीं था तो वे चुपचाप सहन करते थे लेकिन अब विकल्प हैं। यह साइकोलॉजिकल नहीं मेडिकल कारण है। मेंटल इलनेस नहीं है। मृत व्यक्तियों के ब्रेन पर हुई व्यापक रिसर्च से भी पता चला है कि सामान्य ब्रेन से ट्रांसजेंडर के ब्रेन अलग थे।
डॉक्टर संजय पांडे बताते हैं कि 18 से 32 वर्ष की उम्र तक के मरीज सबसे ज्यादा आते हैं। विदेशों में जेंडर डिस्फोरिया की पहचान इस उम्र से पहले ही हो रही है। ऐसे में वहां जल्द इलाज शुरू हो जाता है। हालांकि जेंडर चेंज करवाने वाली महिला या पुरुष बच्चे पैदा नहीं कर सकते। पुरुष से महिला की सर्जरी एक ही चरण में पूरी हो जाती है। यह तीन से पांच घंटे में होती है। महिला से पुरुष की सर्जरी में समय लगता है। इसमें पहले महिला के अंग हटाने पड़ते हैं, उसके बाद नए अंग बनाते हैं। यह सर्जरी तीन चरणों में होती है। गौरतलब है कि भारत में इसकी कोई स्टडी नहीं है, लेकिन यूरोप में 40 हजार पुरुषों में से एक और 43 हजार महिलाओं में से एक के साथ इस प्रकार की समस्या होती है। डॉ. पांडे ने बताया कि मैंने वर्ल्ड कांग्रेस की एक वर्कशॉप के लिए लाइव सर्जरी की है। जिसे यू-ट्यूब पर 20 हजार से ज्यादा बार देखा जा चुका है।
अहमदाबाद के डॉ. पी.के. बिलवा का कहना है कि मैंने अब तक ऐसी 47 सर्जरी की हैं। गुजरात में पिछले कुछ वर्ष से लिंग परिवर्तन ऑपरेशन करवाने वालों की संख्या बढ़ी है। गुजरात के आर्थिक-सामाजिक रूप से समर्थ होने के चलते भी ऐसे केस बढ़ रहे हैं।
इस तरह होती है जेंडर चेंज की प्रक्रिया :जेंडर चेंज का ट्रीटमेंट वर्ल्ड प्रोफेशनल एसोसिएशन फॉर ट्रांसजेंडर हेल्थ (डब्ल्यू पेथ) के अनुसार होता है। डॉक्टर बताते हैं कि इस पूरी प्रक्रिया में सर्वाधिक महत्वपूर्ण साइकियाट्रिक टेस्ट होता है, उसी में कई बार लोग बाहर हो जाते हैं। क्योंकि एक बार सेक्स चेंज होने के बाद फिर कुछ नहीं हो सकता। दो साइकियाट्रिस्ट अपना स्वतंत्र ओपीनियन देते हैं। साइकियाट्रिस्ट के टेस्ट में जब यह सिद्ध हो जाता है कि मरीज को जेंडर डिस्फोरिया है तब आगे का इलाज शुरू किया जाता है। इसके बाद हार्मोनल ट्रीटमेंट होता है।
मरीज को समाज में रहना भी सीखना चाहिए इसलिए एक साल तक उस व्यक्ति काे वास्तविक अनुभव की ट्रेनिंग देते हैं। फिर सर्जरी होती है। सर्जरी होने और अस्पताल से डिस्चार्ज होने के करीब दो महीने बाद मरीज अपनी सामान्य जिंदगी में लौट सकता है। इसमें तीन वर्ष तक लगते हैं। इसके बाद व्यक्ति अपने पासपोर्ट, डिग्री आदि जगह अपना नाम बदल सकता है। भारत में थाईलैंड की तुलना में इलाज खर्च एक तिहाई होने के कारण इससे जुड़े मरीज पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश, फिलिपींस और वियतनाम से आते हैं।
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