लाइफस्टाइल डेस्क. आईआईटी मद्रास के शोधकर्ताओं ने पाया है कि इथेनॉल (अल्कोहल) में पके गाजर से बायो-कम्पैटिबल लेजर उत्पन्न की जा सकती है। रिसर्च के मुताबिक, यह टेक्नोलॉजी उन वस्तुओं को देखने में मदद कर सकती है जिन्हें नग्न आंखों से नहीं देखा जा सकता। इसे रिसर्च लैबोरेटरी में माइक्रोस्कोपी, टेंप्रेचर सेंसिंग (थर्मामीटर) जैसे कामों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। असिस्टेंट प्रोफेसर शिवरामा कृष्णन का कहना है कि इससे पहले संतरे और टमाटर के जूस पर भी प्रयोग किया जा चुका है।
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आईआईटी मद्रास की ओर से जारी बयान के मुताबिक, गाजर की मदद से लेजर को इको-फ्रेंडली तरीके से तैयार किया गया है। अब तक लेजर उत्पन्न करने में इंडियम गैलियम-आर्सेनिक और गैलियम नाइट्रेट का इस्तेमाल किया जाता है। जो काफी जहरीला है यह पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता है। इसलिए हमारा लक्ष्य ऑर्गेनिक चीजों से लेजर पैदा करना है। लेजर का इस्तेमाल बायो-इमेजिंग की फील्ड में किया जाता है।
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शिवरामा कृष्णन के मुताबिक, हमने इसे किचन लेजर का नाम दिया है। यह काफी मजेदार प्रयोग रहा है। हमने कई ऑर्गेनिक चीजों से लेजर पैदा करने की कोशिश की लेकिन सिर्फ गाजर से ही यह संभव हो सका क्योंकि इसमें बायो पिग्मेंट कैरोटिनॉयड्स अधिक था। प्रयोग के लिए पर्याप्त कैरोटिनॉयड्स की मात्रा बढ़ाने के लिए इसे अल्कोहल में पकाया गया।
प्रकाश को उत्तेजित उत्सर्जन की प्रक्रिया से सीधी रेखा की किरण में बदला जाता है जिसे लेजर कहते हैं। वर्तमान में लेजर का प्रयोग पुंज हथियार बनाने में और मेडिकल के क्षेत्र में ऑपरेशन करने के लिए अधिक किया जाता है। इसके अलावा प्रिंटर, स्कैनर, डीवीडी, बार कोड और 3 डी तस्वीरें तैयार करने में लेजर का प्रयोग किया जाता है। दिन प्रति दिन इसका प्रयोग बढ़ रहा है लेकिन वैज्ञानिकों का लक्ष्य इसे इकोफ्रेंडली तरीके से तैयार करने का है।
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